दोस्तों, मुजफ़्फ़रपुर के दो अस्पतालों एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में इंसेफ़लाइटिस के शिकार मासूम बच्चे दम तोड़ रहे हैं। कल 3 और बच्चों ने दम तोड़ दिया और 7 नये मरीज इन अस्पतालों में भर्ती हुए। इस मामले में राज्य सरकार की ओर से भले ही कोई कार्रवाई नहीं की गयी हो, केंद्र सरकार द्वारा एक चिकित्सकीय जांच टीम भेजी गयी और उसने एक बार फ़िर पूरे मामले की जांच की। बच्चे इंसेफ़लाइटिस के कारण ही मर रहे हैं या नहीं इसकी जांच के लिए वे अपने साथ ब्लड सैंपल भी ले गये हैं।
आलेख के शीर्षक से अलग हटकर यह जानकारी आलेख की शुरुआत में आपके साथ साझा करने के पीछे एक कारण है। कारण यह कि मुजफ़्फ़रपुर में अबतक 18 बच्चों ने दम तोड़ दिया है और राज्य के सभी मुख्य अखबारों में इसके लिए कोई जगह नहीं है। सवाल उठता है कि क्या अखबार राज्य सरकार की दलाली करने के लिए छापे जाते हैं।
पेशे से मैं भी पत्रकार हूं और एक अखबार में काम करता हूं। इस तथ्य को जानता हूं कि सरकार अखबारों को किस तरह की सुविधायें उपलब्ध कराती है। अनुदानित दर पर कागज से लेकर करों में विभिन्न प्रकार के छूट के अलावा हम पत्रकारों (मान्यता प्राप्त) को वीवीआईपी के तर्ज पर यात्रा कूपन, चिकित्सकीय सहायता आदि उपलब्ध करायी जाती है। इसके अलावा सरकार अखबारों पर विज्ञापन के रूप में कृपा भी करती है। जाहिर तौर पर यह सब सरकार में बैठे लोग अपने बाप-दादा की संपत्ति बेचकर नहीं करते हैं। यह बिहार सरकार के खजाने का पैसा होता है जिसपर हर बिहारवासी का अधिकार है।
नवल किशोर कुमार बिहार के तेजतर्रार पत्रकार हैं तथा अपना बिहार नामक पोर्टल का संचालन करते हैं.