देहरादून। चुनाव में विकास के लम्बे-चौड़े वायदे करने वाले विधायक विकास निधि खर्च करने में कितने गंभीर है इनकी बानगी मौजूदा वर्ष की विधायक निधि का ब्यौरा दे रहा है। वित्तीय वर्ष बीतने के कगार पर है किन्तु वित्तीय वर्ष के लिए मिली निधि 250 लाख रुपए में से 19 विधायक ऐसे हैं जिन्होंने अभी तक विधायक निधि में से एक भी पैसा खर्च नहीं किया है। विधायक निधि ज्यों की त्यों बचा के रखी है। वहीं इनमें से 8 विधायक ऐसे हैं जिन्होंने निधि में से अब तक मात्र 10 लाख से नीचे की रकम ही विकास कार्यों में खर्च कर पाए हैं।
प्रत्येक विधायक को हर वर्ष अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए विधायक निधि दी जाती है, जिससे विधायक अपने मनमाफिक उस क्षेत्र के विकास के लिए यह निधि का उपयोग कर सकें, लेकिन राज्य के विधायक उस निधि को विकास कार्यों में खर्च करना उचित न समझ कर अपने ऐशोआराम में खर्च कर जनता को विकास के नाम पर ठगने में माहिर बने हुए हैं। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए विधायकों को मिली विधायक निधि 250 लाख यानि ढाई करोड़ में से विधायक विजय पाल सिंह सजवाण, सुरेन्द्र सिंह जीना, अजय टम्टा, मनोज तिवाड़ी, गोविन्द सिंह कुंजवाल, भीमलाल आर्य, सुबोध उनियायाल, विक्रम सिंह नेगी, दिनेश धामी, महावीर सिंह, मंत्री प्रसाद नैथानी, प्रीतम सिंह, सरवत करीम अंसारी, राजेन्द्र सिंह भंडारी अमृता रावत, अरविंद पांडे, हेमेश खर्कवाल, हरीश धामी, नारायण राम ये ऐसे 19 विधायक हैं, जिन्होंने वित्तीय वर्ष बीतने को है लेकिन अभी तक विकास कार्यों का कोई भी प्रस्ताव नहीं भेजा है। निधि इनके खाते में ज्यों की त्यों बची हुई है। वहीं वित्तीय वर्ष में 10 लाख से कम खर्च करने वाले विधायकों में मालचन्द्र (1लाख), अनुसूया प्रसाद मैखुरी (75 हजार), मदन कौशिक (2लाख), इंदिरा हृदयेश (4लाख), जीत राम (सवा पांच लाख), तीरथ सिंह रावत (6.40 लाख), विशन सिंह चुफाल (9.10 लाख), अजय भट्ट(2.40 लाख) हैं।
सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत समस्याएं हर तरफ भले ही मुंह बायें खड़ी हो, माननीयों को यह समस्याएं नहीं दिख रही हैं। प्रदेश के विकास के नाम पर लगातार बढ़ाई जा रही विधायक निधि में विधायक विकास की ओर ज्यादा ध्यान न देकर इस निधि को चुनाव में खर्च करने के लिए बचाते हैं जिससे चुनाव के समय अनाप शनाप खर्च कर पैसे के बल पर महौल अपने पक्ष में करने में जुट जाते हैं। लेकिन आम जनता को विकास के नाम पर सिर्फ ठगा जाता है। राज्य बने 12 वर्ष बीतने के बाद भी प्रदेश विकास से महरूम है। विधायकों को अपने क्षेत्र के विकास के लिए सालाना मिलने वाले करोड़ों रुपए से कितना विकास होता है यह किसी से छुपा नहीं है। कई बार सांसद और विधायक निधि में घपलों और कमीशनखोरी के मामले सामने आते रहे हैं। जिसके बाद इसके औचित्य पर बहस भी हुई लेकिन हर बार संसद और राज्य की विधानसभाओं ने इसे समाप्त करने के बजाय बढ़ाया ही। कारण साफ है कोई भी जनप्रतिनिधि अपनी इस आमदनी को बंद नहीं करना चाहता। क्योंकि यह निधि क्षेत्रों का कम सांसदों और विधायकों का विकास ज्यादा कर रही है। उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य में यदि सिर्फ निधि को ईमानदारी पूर्वक खर्च किया गया होता तो पूरे राज्य की तस्वीर बदल गई होती। लेकिन माननीयों को विकास का ध्यान कहां, विकास का ध्यान तो चुनाव के समय ही आता है जिस समय जनता के सामने विकास का दावा कर उनको ठगा जाता है।
लेखक ललित भट्ट उत्तराखंड में पत्रकार हैं.