महराजगंज विगत दो चुनावों में अमर मणि की चमक फीकी पड़ने के बाद भी सपा जिले में दो धड़ों में बंटी दिख रही है। नतीजा एक धड़ों के कार्यक्रमों में दूसरे धड़ों के लोग शामिल नहीं हो रहे हैं। अभी बीते रविवार को सपा के पूर्व सांसद व घोषित प्रत्याशी कुंवर अखिलेश सिंह ने नौतनवां से धानी तक रोड शो किया। लेकिन इस रोड शो में भी पहले की ही तरह सपा के कई वरिष्ठ नेता व पदाधिकारी नहीं शामिल हुए जो सपा की जिला इकाई में चल रही अन्दरूनी वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा माना जा रहा है। निश्चित ही यह लड़ाई सपा के मिशन 2014 के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सपा मुखिया मुलायम सिंह 2014 में होने वाले संसदीय चुनाव से केन्द्र में सपा की अगुआई की सरकार बनाने का ताना बाना बुनने में लगे हुए हैं। विगत विधान सभा चुनाव में जिस तरह से सपा प्रदेश में अपने बूते पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुई उससे आगामी संसदीय चुनाव में सपा से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद सपा मुखिया ने लगा रखी है। देश का सबसे बड़ा प्रदेश होने के कारण केन्द्र में प्रधान मंत्री बनने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। अगर सपा विधान सभा के अपने प्रदर्शन को संसदीय चुनाव में दोहरा पाने में सफल होती है तो उसे पचास से साठ के बीच सीटें मिल सकती हैं। इस स्थिति में कांग्रेस का विकल्प बन पाने में भाजपा की असफलता देश में थर्ड फ्रंट को एक बार फिर मजबूत कर सकती है और अगर ऐसा हुआ तो सबसे बड़ा घटक होने के कारण मुलायम सिंह की प्रधान मंत्री पद की दावेदारी पर मुहर लगना आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए सपा के कार्यकर्ताओं का संगठित व समर्पित प्रयास जरूरी है।
बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में जिले के साथ साथ सपा में मणि परिवार के बढ़ते वर्चस्व ने धीरे धीरे सांसद कुंवर अखिलेश सिंह केा जिले की राजनीति में ही नहीं वल्कि संगठन में भी हाशिए पर कर दिया था। इस बीच कुंवर अखिलेश किसी न किसी कारण से राजनीति में सक्रिय भूमिका में भी नहीं रहे जिसके कारण उन्हें अब अपना जनाधार वापस पाने के लिए भी संधर्ष करना पड़ रहा है। लेकिन जबसे सपा ने जिले में उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित किया है तबसे जिले में सपा दो धड़ों में विभाजित हो गई है। सपा सदस्यों और पदाधिकारियों का यह विखराव पिछले दिनों हुए सभी कार्यक्रमों में स्पष्ट दिखाई पड़ा। यहां तक कि हाल में हुए रोड शो में भी सपा के कई नामचीन चेहरे नहीं दिखाई पड़े। कुवंर के अपने जनाधार का हाल भी कुछ खास नहीं रहा नवतनवां से चले काफिले में कोई नया चेहरा जुड़ता नहीं देखा गया लेकिन काफिले के आगे बढ़ने के साथ ही धीरे धीरे साथ चलने वाले चेहरों में कमी आती गई जो इस बात का संकेत है कि मिशन 2014 को फतह करने के लिए को अपनी पुरानी पहचान बदलने के साथ ही संगठन में एका हासिल करने और अपने जनाधार को व्यापक विस्तार देने के लिए भी कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। लेकिन फिलहाल तो जिले में संगठन का दो घड़ों में बंटा होना मिशन 2014 लिए शुभ संकेत नहीं है।
महराजगंज से ज्ञानेंद्र त्रिपाठी की रिपोर्ट …………………….