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विविध

30 भड़ासी चुटकुले

30-

डैड- ज्योतिषी जी, मुझे कैसे पता चल सकता है कि मेरा बेटा फ्यूचर में क्या बनेगा?

ज्योतिषी- आप उसके टेबल पर सिगरेट, बीयर, रुपये की गड्डी और बुक्स रख दें. उनमें से जो वो उठाएगा, वही बनेगा.

डैड- ओके.

30-

डैड- ज्योतिषी जी, मुझे कैसे पता चल सकता है कि मेरा बेटा फ्यूचर में क्या बनेगा?

ज्योतिषी- आप उसके टेबल पर सिगरेट, बीयर, रुपये की गड्डी और बुक्स रख दें. उनमें से जो वो उठाएगा, वही बनेगा.

डैड- ओके.

अगले दिन बेटा आया. टेबल देखी. रुपयों की गड्डी उठाकर जेब में रखी. सिगरेट पी. बीयर छुपा ली और किताबें हाथ में लेकर घर से चला गया.

डैड- नालायक ने सब कुछ ले लिया.

ज्योतिषी-  मुबारक हो. आपका बेटा पत्रकार बनेगा.


29-

एक बार एक रिटायर हो चुके पत्रकार पिता ने अपने युवा पत्रकार बेटे की तलाशी ली तो उसकी जेब से सिगरेट, पान मसाला और लड़कियों की तस्वीरें निकलीं.

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बुजुर्ग पत्रकार पिता ने अपने युवा पत्रकार बेटे को खूब मारा और पूछा: कब से कर रहा है यह सब?

बेटा (रोते हुए): पापा! पर मैंने तो आपकी जैकेट पहनी हुई थी.


28-

करियर ग्रोथ मीटर- चेक ह्वेयर यू स्टैंड! : यह भी एक तस्वीर की कहानी है. मेल के जरिए आए दिन दिलचस्प तस्वीरें इधर-उधर बलखाती टहलती रहती हैं. उसी में एक तस्वीर यह भी है. कहानी सिंपल है. गरीब आदमी का पेट नहीं निकलता क्योंकि वह खटने में ज्यादा वक्त गंवाता है, ठीक से खाने-पीने में कम. और बड़े पद पर बैठे साहब सुब्बा लोग खा-पी कर डकार मारते हुए कुर्सी तोड़ते रहते हैं सो उनका लाद (पेट) निकल जाता है.

देखिए, आप इस तस्वीर के पैमाने पर कहां ठहरते हैं. हालांकि मेरे कई लखनवी और अन्य शहरों के मित्रों के लाद इसलिए निकल गए हैं कि वे गरीबी में भी पर्याप्त मदिरा-मांस का सेवन करते रहते हैं, यह सोचकर कि निकले हुए को अंदर करने की मुहिम कभी शुरू कर दी जाएगी लेकिन जो निकल जाता है वो अंदर कहां आता है भला. मैं भी आजकल इसी चिंतन प्रक्रिया से गुजर रहा हूं कि जो निकला है उसे कैसे समाया जाए 🙂 -यशवंत, भड़ास4मीडिया


27-

बात बहुत पुरानी है। एक संपादक के दो चमचे थे। सुविधा के लिए एक का नाम गधा और दूसरे का नाम कुत्ता मान लेते हैं। एक रात जब सारी दुनिया सो रही थी तो संपादक के घर चोर घुस आया। संपादक जी सो रहे थे पर दोनों चमचे जाग रहे थे। कुत्ता इन दिनों संपादक से नाराज चल रहा ता सो उसने तय किया कि चोर को चोरी करने दिया जाए। संपादक को उनके किए की सजा मिल रही है। पर गधे से नहीं रहा गया।

उसने कुत्ते को काफी समझाया बुझाया पर कुत्ते ने एक न मानी। आखिरकार गधे ने तय किया कि वही कुछ करेगा और जोर जोर से रेंकने लगा ताकि संपादक की नींद खुल जाए। गधे की आवाज सुनकर चोर भाग गया। संपादक ने आधी रात बिलावजह रेंकने के लिए गधे की पिटाई कर दी।

कहानी की सीख : आदमी को अपना काम करना चाहिए। दूसरे का नहीं।

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काफी समय बाद स्थितियां बदलीं संपादक बदले चमचे बदले …

इस बार के संपादक कॉरपोरेट संपादक थे। सुना है किसी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से आए थे पर बताते नहीं थे। वे चीजों को बड़े फलक पर देखते थे और विज्ञापन से ही नहीं खबरों से भी कमाने की सोचते थे। इस बार चमचों के वही नाम हैं। आधी रात में गधे के रेंकने की आवाज आई तो संपादक को पूरा यकीन था कि आधी रात में गधे के रेंकने की कोई तो वजह होगी। लगे वजह तलाशने। सारे फंडे लगा दिए। और समझ गए कि कोई चोर आया था और निकम्मा कुत्ता सो रहा था। और गधे ने अतिरिक्त श्रम करके अच्छा काम किया है। इस अतिरिक्त प्रयास के मद्देनजर गधे को ढेर सारे ईनाम मिले और वह उनका पसंदीदा चमचा हो गया।

कुत्ते को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। हुआ सिर्फ यह कि गधा अब कुत्ते का काम करने के लिए भी तत्पर रहता था। जल्दी ही कुत्ते को समझ आ गया कि गधा उसके कामों का भी ख्याल रखता है और वह मजे कर सकता है। अब वह सोने और आलस में रहने लगा। दूसरी ओर गधे का काम बढ़ गया और उसे अपने प्रदर्शन का स्तर बनाए रखने के लिए काफी काम करना पड़ता था। वह हमेशा दबाव में रहता है और इसलिए नई नौकरी ढूंढ़ रहा है।


26-

अलग अलग लड़कों की गर्ल फ्रेंड अपने बॉय फ्रेंड से इस प्रकार लड़ रही थीं:-

पायलट की गर्ल फ्रेंड:- ज्यादा उड़ मत, समझा!!!

टीचर की गर्ल फ्रेंड:- मुझे सिखाने की कोशिश मत करो!!!

डेंटिस्ट की गर्ल फ्रेंड:- तुम्हारा जबड़ा तोड़ दूंगी!!!

सीए की गर्ल फ्रेंड:- तुम ज़रा हिसाब में रहना सीख लो!!!

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पत्रकार की गर्ल फ्रेंड:- पहले नौकरी तो ढूंढ ले फिर बात करना!!!


25-

ये चुटकुला मीडिया पर नहीं है, मीडिया से संबंधित नहीं है. ''भड़ासी चुटकुला'' में अब तक मीडिया से संबंधित चुटकुले ही शामिल किए जाते रहे हैं, लेकिन आज एक नान-मीडिया जोक पब्लिश किया जा रहा है. यह चुटकुला एक मित्र ने मुझे एसएमएस किया. इतना सटीक लगा और पसंद आया कि इसे मैंने फेसबुक पर डाल दिया. चुटकुले ने लोगों के दिल-दिमाग पर असर किया और दनादन टिप्पणियां आने लगीं. रिस्पांस गजब का रहा. ये है चुटकुला और उन पर आई प्रतिक्रियाएं…. -यशवंत, भड़ास4मीडिया

सोनिया के सपने में एक दिन महात्मा गांधी आए. उन्होंने मरते वक्त कांग्रेस को सौंपी गई अपनी लाठी, चश्मा, टोपी के वर्तमान स्टेटस के बारे में पूछा तो सोनिया ने बताया- टोपी राहुल गांधी के पास है, चश्मा को मनमोहन सिंह की आंख पर चढ़वा दिया है. और, रही बात लाठी की तो उसे हमने पब्लिक की गांड़ में दे रखा है!!

Syed Mazhar Husain-Journalist : bahut Sachchi baat kahi aapne

Yogesh Kumar Sheetal : फाड़ के बोलना कोई आपसे सीखे…

Bhupendra Singh katu : satya

Vishal Sharma : baat ekdam khari hai…lekin delhi-belly film se inspired hai

Santosh Tripathi : Kadwa sach hai Yashwant Bhai…

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Syed Mazhar Husain-Journalist : Aapki Himmat ko Salaam Yashwant bhai

Vishal Sharma : ANNA INHI KI MEIN DENE KO TAYYAR HAIN…..SUPPORT HIM

Jitendra Singh Yadav : hahaha, very good

Ashish Awasthi : Sahi kaha Yashwant bhai !!!!!

Syed Faizur Rahman : Ek baaar phir jhut bol diya sonia ne nahi bataya gandhi ji ko yeh sab nilami ko tyaar hain ..

Shravan Kumar Shukla : क्या बात है जनाब…. हाहाहा..वास्तव में सही कहा.. अब देखिये.. वो मोहतरमा तो अमेरिका खिसक गई… कोई वरिष्ठ न मिला… जिसमे कांग्रेस पर कब्ज़े का भय हो .. इसीलिए अपने बेटे को बिरासत सौप कर गई है ……ताकि कांग्रेस जैसी भी रहे.. उसके घर में ही रहे …

Rohit Kashyap : ha ha ha kya baat kahi hai. kahin na kahin aapne sahi kaha hai.

Vivek Choudhary : आच्छी बात है यशवंत जी, आपकी इस बात में जो आक्रोश है …वोही आक्रोश हिन्दुस्तान के यदि ८०% युवाओं में आ जाये तो हिन्दुस्तान की तस्वीर रातों रात बदल सकती

Sandeep Mishra : apke g….d ka kaya haal hai…

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Piyush Mishra : josh to bahut aati haio par kuych ho nhi sakta

Updesh Saxena : सार्वजनिक मंच पर एस तरह की भावाभिव्यक्ति उचित नहीं है दोस्त…

Awesh Tiwari : उपदेश

Awesh Tiwari : ‎Yashwant Singh shat pratishat sahmat

Updesh Saxena : Yes @Awesh………Updesh.

Rahul Singh : super duper updesh………… hai

Awesh Tiwari : ‎@updesh गांड पर कैसा उपदेश, डंडा सभी के है भले वो राजा हो या फकीर. गांड में डंडा भावाभियक्ति नहीं है, ये हार चुके आदमी की कराह है.

Yashwant Singh : मेरे पास ये एसएमएस आया था… मुझे लगा कि ठीक ही लिखा है. इसीलिए इसको आप लोगों तक पहुंचा दिया.

Updesh Saxena : आपकी परिभाषा कुछ भी हो सकती है….मुझे जो अच्छा नहीं लगा सो कह दिया….वैसे भी मेरे शब्द इतने तीखे नहीं थे कि किसी को उनसे मिर्च का अहसास हो….

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Ritesh Verma : હા હા હા હા હા. બઢ઼િયા વ્યંગ્ય હૈ ભાઈ સાહબ.

Awesh Tiwari : उपदेश भाई अन्यथा न ले, किसी को डंडा हो जाने का एहसास हो और उस एक वक्त आप उसे ये कहें कि सार्वजनिक मंच पर ऐसी भावाभियक्ति उचित नहीं है तो मिर्च तो लगेगी ही. यहाँ सार्वजनिक मंच पर जाति,धर्म और नया विषयों में जो अतिवादिता अपनाई जा रही है वो सही मायनो में सार्वजनिकता के खिलाफ है. आपकी बातें केवल उपदेश हैं, मैडम आपरेशन कराने विदेश गयी हैं और ये बता कर गयी हैं कि हिंदुस्तान के डाक्टर चूतिया हैं और यहाँ के अस्पताल बूचडखाना. देश में हर साल बुनियादी स्वास्थय सेवाओं के अभाव में लाखों महिलाओं की जान चली जाती है, हम इसे गांड में डंडा ही कहेंगे.

Awesh Tiwari : ‎Yashwant Singh जो लिखा है वो सही मायनों में बुद्धिजीवी है उसे हमारी तरफ से बधाई भिजवा दीजिए

Anil Yadav : बहुत जानदार….

Pujit Sha : Great Yash….Great!

Vineet Mishra : kya baat hai….wah wah

Shailesh Mishra : Absolutly Right Sir Ji……………

Kundan Kumar : this is called portal kranti…..nirbhik aur satik…

Shravan Kumar Shukla : क्या बात है जनाब…. हाहाहा..वास्तव में सही कहा.. अब देखिये.. वो मोहतरमा तो अमेरिका खिसक गई… कोई वरिष्ठ न मिला… जिसमे कांग्रेस पर कब्ज़े का भय हो .. इसीलिए अपने बेटे को बिरासत सौप कर गई है ……ताकि कांग्रेस जैसी भी रहे.. उसके घर में ही रहे ..

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Prem Arora : gajab yashu bhai..

Amit Upadhyay : Bhaut khoob kha sir ji….

Ashok Bansal : भाई जी ,मित्रों के बीच कहे जाने वाला चुटकुला आपने जनता के बीच कह दिया.बस यही कसूर है आपका.राही मासूम रज़ा ने आधा गाँव उपन्यास में यही अपराध किया था.

Kumar Gaurav : ये डंडा कैसे निकलेगा? थोडा प्रकाश डालें …….

Kamal Kashyap : aap ko ese sabad sarvjanik roop se shoba nahi dete yashwant ji


24-

एक बड़े भाई तुल्य मित्र ने यह कहते हुए इस चुटकुले को भेजा है कि– ''इसका हिन्दी अनुवाद अश्लील हो जाएगा। इसलिए अंग्रेजी में ही भेज रहा हूं। अगर उपयोग कर सकें।'' दो-तीन बार चुटकुला पढ़ा. सिर्फ एक शब्द का खेल है. उस एक शब्द का अर्थ गदहा भी होता है और वह भी होता है जो पिछवाड़े कपड़ों में ढका छिपा होता है. जो ढका-छिपा होता है, वह उत्सुकता पैदा करता है, कौतुक व रहस्य पैदा करता है. और, जहां कौतुक, रहस्य, उत्सुकता है वहां तरह-तरह की कानाफूसियां भी हैं.  संभव है, बहुत सारे श्लील लोग इस चुटकुले पर नाक-भौं सिकोड़े लेकिन मुझे इसमें कोई अश्लीलता या आपत्तिजनक जैसा नजर नहीं आ रहा. आनंददायक चुटकुला है. आनंद लेंगे तो ठीक रहेगा, बाल नोचेंगे तो बीपी बढ़ेगा. -यशवंत

A servant enrolled his donkey in a race & won.

The local paper read:'SERVANT's ASS WON'

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The MINISTER was so upset with this kind of publicity that he ordered the servant not to enter the donkey in another race.

Next day the local paper headline read:'MINISTER SCRATCHES SERVANT's ASS'.

This was too much for the Minister, he ordered the servant to get rid of the donkey. He gave the donkey to his wife .

The local paper heading the news: "Ministers WIFE HAS THE BEST ASS IN TOWN".

The Minister fainted.

WIFE sold the donkey to a farmer for Rs 1500:00

Next day paper read:"WIFE SELLS ASS FOR Rs 1500:00''

This was too much, minister ordered his wife to buy back the donkey & lead it to jungle.

The next day Headlines:"ministers Wife ANNOUNCES HER ASS IS WILD & FREE"

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The Minister was buried next day!

This is called …Power of media.. :"-)


23-

एक संपादक जी को गर्म हवा के गुब्बारे में घूमने का शौक चढ़ा। भाई साब ने नीचे वालों से बंदोबस्त करने के लिए कहा। हो गया। और एक दिन भाई साब गुब्बारे में निकल लिए। कुछ समय बाद उन्हें अहसास हुआ कि वे खो गए हैं। उन्होंने उंचाई थोड़ी कम की और नीचे एक व्यक्ति को देखा। वे कुछ और नीचे आए तथा चीख कर कहा, “मैं भटक गया हूं। क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं। मुझे घंटे भर पहले ही एक मीटिंग में पहुंचना था। पर मुझे यह भी नहीं समझ में आ रहा है कि मैं कहां हूं।“

नीचे वाले व्यक्ति ने जवाब दिया, "आप गर्म हवा के गुब्बारे में हैं, जमीन से करीब 30 फीट की उंचाई पर हैं। आप 40 व 41 डिग्री नॉर्थ लैटीट्यूड तथा 59 और 60 डिग्री वेस्ट लैटीट्यूड के बीच हैं। गुब्बारे में लटके संपादक जी ने मन ही मन नीचे खड़े व्यक्ति को भर पेट गरियाया और कहा, “साला इंजीनियर कहीं का। अपनी काबिलियत दिखा रहा है।“ पर उस व्यक्ति से कहा, जरूर आप इंजीनियर हैं। नीचे वाले व्यक्ति ने कहा, “जी हां, पर आपको कैसे पता चला?”

संपादक जी ने कहा, “आपने जो कुछ मुझे कहा वह तकनीकी तौर पर सही है। पर आपकी यह सूचना मेरे किसी काम की नहीं है। और तथ्य यह है कि मैं अभी भी खोया हुआ हूं। सच कहूं तो आपसे मुझे कोई सहायता नहीं मिली। उल्टे आपने मेरा समय खराब किया।“

नीचे वाले इंजीनियर ने पूछा, “आप संपादक हैं क्या?”

“हां मैं संपादक ही हूं। पर आपको कैसे पता चला?”  गुब्बारे में लटके संपादक ने पूछा।

इंजीनियर ने कहा, "आपको पता नहीं है कि आप कहां हैं या कहां जा रहे हैं। आपको मीटिंग में जाना था पर गुब्बारे में घूमने निकल गए। आपको कुछ पता नहीं है कि मीटिंग में पहुंचने के लिए क्या करना है और आप अपने नीचे वाले से उम्मीद कर रहे हैं कि आपको इस संकट से निकाल दे।''

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22-

CHILD- MOM, who is this man who comes every night & disapears in morning.

MOM- Thanks GOD! U saw him. he is ur father. Working in ''PRESS''


21-

आज दोपहर कटवारिया सराय के एक चौधरी ने दूजे से कही, 'नूं सुन रहा है.'

तो दूजे ने हुक्के से मुंह काढ के बोला- हाँ, के बात सै.'

पहले ने कहा, रेडियो  वाली छोरी कहे सै – 'हथियार खरीद में भारत दुनिया का बादशाह बण गया.'

पहले की बात सुन दूजा चौधरी बोला – 'अच्छा ही हुआ जी…चलो अब तो कम से कम हमारी सरकार ने भुखमरी, आत्महत्या, बेकारी, अपराध, भ्रष्टाचार और महंगाई से निपटने में दिक्कत ना आवेगी. सब तसल्ली बख्श हो जावेगा.


20-

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अपने मनमोहन सिंह ने जिस ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया, अपनी मजबूरी का रोना रोने के लिए, वह प्रेस कांफ्रेंस ही मनमोहन के गले की फांस बनने लगी है. उस पीसी के जरिए मनमोहन ने खुद को सबसे मजबूर आदमी के रूप में पेश कर दिया है. मनमोहन की उसी पेशकश पर कुछ चुटकुले तैयार होकर आजकल यहां वहां विचरण कर रहे हैं. अपने बेचारे पीएम मनमोहन को लेकर बने दो नए चुटकुले या कमेंट्स, जो कह लीजिए आपके सामने पेश हैं.

1.) कम से कम महात्मा गांधी को छुट्टी तो मिली, अब "मजबूरी का नाम मनमोहन सिंह" हो गया है…

2.) ''दबंग'' फ़िल्म का सीक्वल बनेगा, इसमें हीरो होंगे मनमोहन सिंह… और फ़िल्म का नाम रहेगा- "अपंग"…


19-

— गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण — 1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

२. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.

4. अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5. हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.

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6. नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.

7. भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.

8. सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस युग में 'कौन बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर बनाने का गब्बर का यह सच्चा प्रयास था.

9. महानायकों का निर्माता: अगर गब्बर नहीं होता तो जय और व??रू जैसे लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर के व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता जागी.


18-

My dog sleeps about 20 hours a day. He has his food prepared for him. He can eat whenever he wants, 24/7/365. His meals are provided at no cost to him. He visits the Dr. once a year for his checkup, and again during the year if any medical needs arise. For this he pays nothing, and nothing is required of him.

He lives in a nice neighborhood in a house that is much larger than he needs, but he is not required to do any upkeep. If he makes a mess, someone else cleans it up. He has his choice of luxurious places to sleep. He receives these accommodations absolutely free. He is living like a King, and has absolutely no expenses whatsoever. All of his costs are picked up by others who go out and earn a living every day. I was just thinking about all this, and suddenly it hit me like a brick in the head…….

Is my dog is a POLITICIAN?


17-

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देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है. मानवता की महायात्रा के दौरान ये मोड़ पहली दफे आया है. मजबूरी, जरूरत और विलासिता जैसे शब्दे एक रेट पर बिक रहे हैं. यकीन नहीं हो रहा है न. लेकिन सच्चाई बिलकुल यही है.

प्याज 65 रुपये किलो

पेट्रोल 65 रुपये लीटर

और

बीयर 65 रुपये बोतल.

धीरे धीरे ही सही, पर समाजवाद आ ही गया. गोरख पाण्डेय जी का कहा सच हुआ. अब कुछ यूं गाओ… समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आईल… घोड़ा पर आईल, हाथी पर आईल, मनमोहन महारथी के राजकाज में आईल… सोनिया महारानी की किरपा से आईल… समाजवाद बबुआ धीरे धीरे….


16-

मुन्नी से साक्षात्कार के दौरान एक पत्रकार ने पूछा- "आपकी जन्मतिथि क्या है?"

मुन्नी ने कहा-"पहली अगस्त "

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पत्रकार ने दूसरा सवाल किया- "और वर्ष?"

मुन्नी ने कहा- "प्रत्येक वर्ष"


15-

नया भर्ती पत्रकार अपने संपादक की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से आजिज था। संपादक हर बार और हर खबर में एक ही नसीहत देता- ‘‘बरखुरदार, गागर में सागर भरना सीखिये। केवल पन्ने भरने से काम नहीं चलेगा। खबरें छोटी लिखा करें।’’

एक दिन तो हद ही हो गयी। संपादक ने उसकी खबर को चार बार छोटा करने के लिये लौटाया। इस बात से पत्रकार बड़े गुस्से में था। अगले दिन उस रिपोर्टर ने ठान लिया कि वह बेहद छोटी खबर लिखा करेगा। अगले दिन वह पहली और महत्वपूर्ण खबर लिखने के बाद उसे दिखाने संपादक के पास गया। रिपोर्टर द्वारा गागर में सागर के अंदाज में लिखी गई खबर इस प्रकार थी-

''एक आदमी ने अंधेरे में तेल के कुंए के भीतर की स्थिति जानने के लिये माचिस की तीली जलाई। उम्र 28 वर्ष।''


14-

स्वर्ग के द्वार पर तीन लोग खड़े थे. तीनों ही अंदर घुसना चाहते थे. लेकिन अंदर जाना था किसी एक को. ऐसे में भगवान को सामने आकर इन तीनों से कहना पड़ा…

भगवान : आप में से केवल एक ही अन्दर जा सकता है.

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पहला : भगवान मैं एक पुजारी हूँ, सारी उम्र आपकी सेवा की है, स्वर्ग पर मेरा ही हक़ है.

भगवान शांत रहे.

दूसरा : भगवान मैं एक डॉक्टर हूँ, सारी उम्र दूसरों की सेवा की है, स्वर्ग पर तो मेरा ही हक़ है.

भगवान फिर शांत रहे.

तीसरा : भगवान मैं एक पत्रकार हूँ, और….

इतना सुनते ही भगवान से रहा न गया.

भगवान : बस बस… कुछ मत बोल मेरे बच्चे.. अब रुला भी देगा क्या? मुझे पता है, सारी जवानी तू नर्क में रहा है, नारकीय माहौल में काम भी किया है… स्वर्ग पर तो केवल तेरा ही हक़ है.


13-

भारत में प्रेम विवाह, उसके विरोध, खाप के फैसलों और उसकी मांग तथा इस मांग के विरोध को गंभीरता से फॉलो कर रहे एक पत्रकार को अमेरिका जाने का मौका मिला। मूल काम से मुक्त होने के बाद उसे इस मामले में उदार कहे जाने वाले पश्चिमी समाज के विचार और स्थिति जानने की इच्छा हुई। वहां उसने नए मित्र बने एक अमेरिकी पत्रकार से इस बारे में चर्चा करने का फैसला किया। दोनों ने बार में मिलना तय किया और पेग पर पेग लगाते हुए काफी बातें हुईं।

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बातचीत के दौरान भारतीय पत्रकार ने बताया कि उसके अभिभावक उसकी शादी गांव की एक तथाकथित सुंदर, सुशील और घरेलू लड़की से करना चाहते हैं जिससे वह मिला भी नहीं है। अमेरिकी पत्रकार को बात अजीब लगी। भारतीय पत्रकार ने बताया कि हमारे यहां शादियां ऐसे ही होती हैं मां-बाप परिवार-रिश्तेदारी में उपयुक्त वर या वधू की तलाश करते हैं और कई मायने में उपयुक्त पाए जाने पर कुंडली मिलाई जाती है। कुंडली मिल जाए तो शादी कर दी जाती है। इसे हमारे यहां अरेन्ज मैरिज कहा जाता है। मैं ऐसी लड़की से शादी नहीं करना चाहता जिसे मैं प्यार नहीं करता। मैंने यह बात उन्हें साफ बता दी है और इस कारण मेरे परिवार में काफी परेशानी है। तरह-तरह की पारिवारिक समस्याएं खड़ी हो गई हैं।

इस पर अमेरिकी ने प्रेम विवाह के बारे में बताना शुरू किया और इसी क्रम में उसने अपनी कहानी बताई – मैंने एक विधवा से शादी की जिससे मैं बेहद प्रेम करता था। हमारा प्रेम तीन साल तक चला। आखिरकार शादी हो गई। कुछ साल बाद मेरे पिताजी का मेरी सौतेली बेटी से प्रेम हो गया। और लाख समझाने के बावजूद उन्होंने उससे शादी कर ली। उन्होंने वही दलीलें दीं जो मैं देता था और मैं उन्हें रोक नहीं पाया। इस तरह मेरे पिता अब मेरे दामाद बन गए और मैं उनका ससुर हो गया। कानूनन अब मेरी बेटी मेरी मां है और मेरी पत्नी मेरी नानी। मुझे जब बेटा हुआ तो और भी समस्याएं सामने आईं। मेरा बेटा मेरे पिता की सास का बेटा है इसलिए उनका साला हुआ और इस हिसाब से मेरा मामा भी है। स्थिति और खराब हो गई जब मेरे पिता को बेटा हुआ। अब मेरे पिता का बेटा मेरा भाई तो है ही मेरा नाती भी है।

अमेरिकी पत्रकार तो मामा को अंकल और नाना / दादा को ग्रैंड फादर ही कह रहा था लेकिन भारतीय पत्रकार को इसका हिसाब लगाने में चक्कर आ गया है।

अमेरिकी पत्रकार कहां मानने वाला था – उसने पूछा अब बताओ किसकी पारिवारिक समस्या गंभीर है?


12-

मंदी का दौर चल रहा था. एक पत्रकार की शादी तय हो गयी. पत्रकार ने दस दिन की छुट्टी का आवेदन संपादक की टेबल पर रखा. निमंत्रण पत्र सौंपते हुए बोला- सर मंदी का दौर है, सोच रहा हूं इस मंदी में एक मंदी-सी बीवी ले आऊं. संपादक जी पत्रकारिता के पुराने चावल थे. उन्होंने पत्रकार को समझाया- बेटा मंदी के दौर में तू शादी करने जा रहा है, यहां नौकरी के वैसे ही बांदे है. पत्रकार बोला- महोदय मंदी में जब सब मंदा है तो शादी भी सस्ते में निपट जायेगी.

संपादक जी बोले- बेटा इस मंदी में शादी तो सस्ते में निपट जायेगी. लेकिन जब तू दस दिन के बाद आयेगा तो बीवी तो घर में होगी पर नौकरी चली जायेगी. पत्रकार ने कुछ सोचा और सोच कर बोला- संपादक जी मंदी तो आप लोगों ने मचा रखी है, फील्ड में एक आदमी से चार आदमियों का काम ले रहो हो, और छुट्टी देने की बजाय आप मुझे मंदी की हूल दे रहे हो. आज तक मंदी के नाम पर घर उजडे़ थे, अब हम घर बसा कर ही दम लेंगे. संपादक यह सब सुनकर अवाक रह गए. उन्हें लगा, बहुत पाप किया है, एक पुण्य भी कर लेते हैं. सो, उन्होंने शादी के लिए उतावले पत्रकार की अर्जी पर दस्तखत कर दिए.


11-

अखबारों और चैनलों की दुनिया हुई अजीब, देने को पैसा नहीं रोज लगाए तरकीब

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मजदूरों से भी बदहाल हुआ आज का पत्रकार, रोज सोचे क्या पता भगवन कर दें आज कोई चमत्कार

कहत कमलवा सुन रे बंधु रोज हो तेरी रुसवाई, डर मत प्यारे दिन बहुरेंगे आज खबर है आई

खबर पे मत जाइयो प्यारे कल होगा इसका खंडन, कर्मी के लिए पैसा नहीं पर मालिक घूमे लंदन


10-

तनख्वाह कभी तो मिलेगी…. और जब मिलेगी एक साथ कई महीनो की मिलेगी…. इसी उधेड़बुन में "कचौड़िया पत्रकार" चला जा रहा था. सामने से किसी ने बताया कि निकट ही कहीं जमीन के विवाद में दो गुटों में लट्ठ बज रहे है और पत्थरबाजी हो रही है. पत्रकार महोदय अपना कैमरा संभालते हुए दौड़ पड़े. वहां सच में बड़े जोरों से विवाद हो रहा था.

विवाद में शामिल एक व्यक्ति ने सोचा कि दूसरे पक्ष ने किसी फोटोग्राफर को बुला लिया है तो उसने एक लट्ठ दे मारा उस पत्रकार के सिर पर और दूसरा बजा दिया उसके कैमरे पर. पत्रकारजी को जब होश आया तो अस्पताल में थे.

जब हमलावर पक्ष को पता चला कि घायल शख्स पत्रकार है तो उनके हाथ-पांव फूल गए. माफ़ी मांगने के लिए आक्रमणकारी पक्ष अस्पताल पहुंचा. पत्रकार महोदय की शरण में जाकर क्षमायाचना करने लगा. पत्रकारजी ने केवल तीन लाख रुपये में उसे माफ़ कर दिया. ये सोचते हुए कि चलो, सिर खुला तो भाग्य भी खुल गया. इतना तो अपनी पूरी पत्रकारिता की जिंदगी में नहीं कमा पाए.

अब वे गाहे-बगाहे कहते हैं काश एक "विवाद" और हो जाए इसी तरह का…


9-

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एक गरीब पत्रकार ने कई महीनों से सेलरी न मिलने के कारण कटिया लेकर क्षेत्रीय नहर-तालाब में मछली मारने और उसे पकाकर खाने का काम शुरू किया. एक दिन उसने कई मछलियां पकड़ीं और अपनी पत्नी को सौंप दिया.

पत्नी ने मछलियों को पकाने से इनकार कर दिया.

पत्रकार ने अपनी पत्नी से वजह पूछा तो पत्नी ने गुस्से से हाथ पटकते हुए बताया- ''एक तो सेलरी न आई, उपर से ऐसी महंगाई. आटा-दाल तो पहले ही खत्म हो चुका. उसकी जगह तालाब-नहर से फ्री में पकड़कर लाई गई मछली से काम चल रहा था. लेकिन अब तो घर में पकाने के लिए न तो तेल बचा है, न गैस बची है, न ही मसाले रह गए हैं. ऐसे में कुछ नहीं हो सकता.''

उदास पत्रकार ने मछलियों को फिर से तालाब में छोड़ दिया.

मछलियां पानी में पहुंचते ही पत्रकार की तरफ देखकर जोर से चिल्लाईं– ''कांग्रेस जिंदाबाद! कांग्रेस जिंदाबाद!!''


8-

काम करते कमर बेकार और पेट हुआ बाहर, इन्क्रीमेंट के मौके पर बॉस करें निरादर. बॉस निकालें नुक्स ब्रांड खोजे बहाना, सच ही कहते लोग भुलावे में नहीं आना.

इन्क्रीमेंट के ठीक बाद बॉस का इम्प्रूवमेंट डोज़, सबको भरोसा अगली बार काम करने वालों की होगी मौज. अगली बार फिर वही कहानी, न अलग हुआ दूध न ही पानी.

संतुष्टि सबसे बड़ा धन दिल को दे तसल्ली, पेपर या टीवी में लगे रह तू पत्रकार अर्दली. कभी तो दिन बहुरेंगे सोच रहा कबीरा, कोई तो मिलेगा जौहरी जो परखेगा हीरा.

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7-

डीएम से मिलने उनके बंगले पर एक पत्रकार पहुंचा. गेट से अंदर दाखिल होते ही संतरी चिल्लाया- ''कहां घुसे जा रहे हो? रुको, इधर आओ.'' उसके आवेश को नजरअंदाज करते हुए पत्रकार ने कहा- ''मैं पत्रकार हूं. आपके साहब से मिलने का समय लेकर आया हूं.''

संतरी ने पत्रकार को घूरते हुए धीरे से कहा- अच्छा तो आप भी पत्रकार हैं.

पत्रकार ने सिर हिलाने के साथ ही सवाल किया- 'आप भी' का क्या मतलब?

उसने कहा- बुरा मत मानिएगा. ना पत्र है, ना कार है. ऐसे में पहचानने में गलती तो हो ही जाएगी ना.


6-

यह चुटकुला है तो पुराना जो मीडियाकर्मियों के बीच एसएमएस के रूप में काफी दिनों से सरकुलेट हो रहा है लेकिन संभव है कि अब भी इसे ढेर सारे मीडियाकर्मी पढ़ न पाए हों.

10 reason why I joined media

  1. I hate to sleep.

  2. I have enjoyed my life in childhood.

  3. I can not live without tension.

  4. I want disturb my family life.

  5. I believe in GEETA "KARM KARO FAL KI ICHCHHA MAT KARO".

  6. I do not want to spend time with my family.

  7. I want to take revenge from myself.

  8. I desperately need break up from my dearest and nearest.

  9. I want social boycott.

  10. I LOVE TO WORK ON HOLIDAYS.


5-

समंदर जितना न्यूजपेपर

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नदी जितनी रिपोर्टिंग

तालाब जितना आफिस वर्क

बाल्टी जितनी सेलरी

लोटे जितना इनक्रीमेंट

ऐसे में क्या खाक होगा एचीवमेंट!


4-

एक व्यक्ति पशुओं के डॉक्टर के पास पहुंचा और कहा कि तबियत ठीक नहीं लग रही है, दिखाना है। डॉक्टर ने कहा कि कृपया मेरे सामने वाले क्लीनिक में जाएं, मैं तो जानवरों का डॉक्टर हूं। वहां देखिए, लिखा हुआ है।

रोगी– नहीं डॉक्टर साब मुझे आप ही को दिखाना है।

डॉक्टर– अरे यार, मैं पशुओं का डॉक्टर हूं। मनुष्यों का इलाज नहीं करता।

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रोगी– डॉक्टर साब मैं जानता हूं और इसीलिए आपके पास आया हूं।

इस पर डॉक्टर साब चौंक गए। जानते हो? फिर मेरे पास क्यों आए।

रोगी- मेरी तकलीफ सुनेंगे तो जान जाएंगे।

डॉक्टर- अच्छा बताओ।

रोगी– सारी रात काम के बोझ से दबा रहता हूं।

सोता हूं तो कुत्ते की तरह सोता हूं।

चौबीसों घंटे चौकस रहता हूं।

सुबह उठकर घोड़े की तरह भागता हूं।

रफ्तार मेरी हिरण जैसी होती है।

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गधे की तरह सारे दिन काम करता हूं।

मैं बिना छुट्टी की परवाह किए पूरे साल बैल की तरह लगा रहता हूं।

फिर भी बॉस को देखकर कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगता हूं।

अगर कभी, समय मिला तो अपने बच्चों के साथ बंदर की तरह खेलता हूं।

बीवी के सामने खरगोश की तरह डरपोक रहता हूं।

डॉक्टर ने पूछा – पत्रकार हो क्या?

रोगी- जी

डॉक्टर- इतनी लंबी कहानी क्या बता रहे थे। पहले ही बता देते। वाकई, तुम्हारा इलाज मुझसे बेहतर कोई नहीं कर सकता। इधर आओ। मुंह खोलो.. आ करो… जीभ दिखाओ….


3-

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डाक्टर के पास एक मरीज आया और बोला- मुझे  दिशा-मैदान गए बहुत दिन हो गए. जाता हूं तो उतरता ही नहीं. दवा दीजिये जिससे मेरा पेट साफ हो जाये.

डाक्टर ने दवा दे दी और उसे घर भेज दिया.

दूसरे दिन वह आदमी फिर डाक्टर के पास आया. बोला- डाक्टर साहब, दवा से कोई फायदा नहीं हुआ.

डाक्टर ने दवा बदल दी और नई दवा देकर उसे भेज दिया.

ऐसा कई रोज हुआ तो एक दिन डाक्टर ने पूछ ही लिया.

डाक्टर- तुम काम क्या करते हो?

मरीज- जी, मीडिया में हूँ.

डाक्टर- कौन से?

मरीज- अखबार में.

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डाक्टर- कौन से अख़बार में?

मरीज- %^७%५$%^७५६८* नामक हिंदी दैनिक में.

डाक्टर- तो ये बात है. यह लो 100 रुपये. पहले भर पेट खाना खाओ, सुबह खुल कर आएगा.


2-

जिन्न- हुक्म करो मेरे आका.

आदमी- मेरे घर से दुबई तक रोड बनाओ.

जिन्न- मुश्किल काम है मेरे आका. कोई और काम बताओ.

आदमी- मैंने जर्नलिज्म की डिग्री ली है. किसी न्यूज चैनल में नौकरी का जुगाड़ कर दो.

जिन्न- ओह…!!! अच्छा, पहला वाला काम हो जाएगा. चलो ये बता दो कि दुबई तक रोड सिंगल बनानी है या डबल.

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1-

एक संपादक ने किसी पत्रकार की नौकरी ले ली. संपादक नया आया था, सो उसे पहले काम कर रहे कई लोगों को निकालना था ताकि वह अपने चेले-चमचों-भक्तों को फिट कर सके. संपादक ने जिस पत्रकार की नौकरी ली, वो संपादक से भी परम हरामी निकला. वह रोज बिलकुल तड़के संपादक के घर पर पहुंच जाता. घंटी नहीं दबाता और न ही अंदर छलांग लगाता. वो संपादक जी को बिलकुल डिस्टर्ब नहीं करता. वह केवल एक काम करता. वह संपादक के घर के सामने धुंधलके के दौरान मल त्याग कर देता. संपादक रोज मार्निंग वाक पर निकलते तो मल-मूत्र देख हिल जाते. उन्होंने अपने चौकीदार को एक दिन हड़का लिया. उन्होंने घरेलू चौकीदार को अपने आफिस के किसी सब एडिटर / प्रोड्यूसर की भांति जोर से डांट कर हड़काते हुए पूछा-

''ये बताओ… तुम साले सोते रहते हो या ड्यूटी देते हो… अगर तुम जगे रहते हो तो यहां ये मल-मूत्र त्याग करके कौन चला जाता है… मुफ्त में तनख्वाह लेने की आदत पड़ गई है तुम्हें…''

चौकीदार चुपचाप सुनता रहा. जवाब दे देता तो उसकी भी नौकरी सब एडिटरों / प्रोड्यूसरों की तरह चली जाती.

अगले दिन चौकीदार सोया नहीं. वह नौकरी खोने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था. वह पूरी रात एलर्ट रहा. बिलकुल चौकन्ना खड़ा रहा. कई बार साइड में छिप कर अपराधी के आने का इंतजार करता रहा. सुबह शुरू होने से ठीक पहले ज्योंही संपादक के हाथों बेरोजगार हुआ पत्रकार मल-मूत्र त्याग करने आया, चौकीदार ने उसे कूदकर पकड़ लिया. चौकीदार ने जोर से पूछा-

''रोज यहां अंडबंड काम क्यों कर जाता है बे, मेरी नौकरिया खायेगा का क्या तू?''

बेरोजगार पत्रकार प्यार से बोला-

''हरामी संपादकजी के सीधे-साधे चौकीदार जी, ये मैं इसलिए करता हूं ताकि हमारे आफिसियल और आपके घरेलू संपादक जी को यह पता चल जाए कि उनके द्वारा मेरी नौकरी ले लिए जाने के बाद भी मैं भूखों नहीं मरा. मेरे पेट में पहले की ही तरह अन्न और जल पर्याप्त मात्रा में प्रवेश कर रहे हैं. उसी का सबूत देना आता रहता हूं मैं.''

चौकीदार कुछ न बोला. बात उसके भी समझ में आ गई थी. उसने पत्रकार को मल-मूत्र त्याग करने की अनुमति दी और खुद संपादक को चार गालियां देते हुए पास में ही स्थित अपने गांव की ओर निकल गया.

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उपरोक्त चुटकुले पिछले कई वर्षों से अलग-अलग प्रकाशित किए गए भड़ासी चुटकुलों का संग्रह है. हो सकता है कुछ चुटकुले तत्कालीन हालात के उपर बनाए गए हों जो अब प्रासंगिक नहीं रह गए हों. इसलिए कृपया पढ़ते हुए दिल के साथ अपने दिमाग का भी जरूर उपयोग करें 🙂


मीडिया के वर्तमान हालात पर अगर आपके पास भी कोई चुटकुला हो तो हमें भेजिए. 'भड़ासी चुटकुला' कालम जारी रखने की जरूरत है. ताकि, निराशा झेल रहे हमारे कई पत्रकार साथियों में जिजीविषा कायम रहे. चुटकुला आप मेल या एसएमएस के जरिए भेज सकते हैं [email protected] या फिर 09999330099 पर.

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