पीपुल्स समाचार, ग्वालियर की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। संपादक मनोज वर्मा का तबादला कर दिया गया है। वे ग्वालियर से रिलीव होकर चले गए हैं। उनके बारे में कहा जा रहा कि वे भोपाल में ज्वाइन करने के बजाय घर बैठना ज्यादा पसंद करेंगे। क्योंकि ग्वालियर में वे स्थानीय संपादक थे और भोपाल में उन्हें स्थानीय संपादक के अधीन रखा गया है। वहीं पीपुल्स समाचार, ग्वालियर में काम करने वालों को छंटनी का फरमान भी मालकिन रुचि विजयवर्गीय के दूत हरीश मरवाह ने सुना दिया है।
जो नया सेट अप रखा गया है कि उसके अनुसार ग्वालियर में अब कोई संपादक नहीं रहेगा। सिर्फ दो पेज ग्वालियर में तैयार होंगे। एक शहर का और दूसरा संभाग का। शेष सभी पेज भोपाल से तैयार होकर आएंगे। इसके लिए सिर्फ पांच लोग संपादकीय में रहेंगे। शेष सभी बाहर। इसी तरह कंप्यूटर ऑपरेटर और मार्केटिंग की टीम की छंटनी की जा रही है। बाहर करने का तरीका भी अनूठा तलाश किया है पीपुल्स समाचार के मालिकों ने। स्टॉफ से कहा जा रहा है कि आप एक हाथ में सेलरी लो और दूसरे हाथ में तबादला आदेश। तबादला आदेश पीपुल्स समाचार, रायपुर के लिए दिया जा रहा है, जहां से पीपुल्स समाचार प्रकाशित ही नहीं हो पाया है। कहा यह जा रहा है कि पीपुल्स ने वहां किराए का भवन ले रखा है जिसकी देखरेख के लिए अभी सिर्फ चपरासी और चौकीदार तैनात हैं। यानी ग्वालियर से जिन लोगों का रायपुर तबादला किया जा रहा है वे चपरासी या चौकीदार को रिपोर्ट करेंगे। यह लोग रायपुर जाकर काम क्या करेंगे अभी साफ नहीं है।
शनिवार को 35 लोगों को सेलरी के साथ रायपुर तबादले का आदेश यह कहते हुए दिया गया है कि हम जल्द ही रायपुर से भी पीपुल्स लांच करने वाले हैं। पीपुल्स समाचार, ग्वालियर में वेतन के भी लाले हैं। दो माह में एक बार वेतन मिल रहा है। जो लोग पीपुल्स समाचार ग्वालियर में छंटनी के दायरे में नहीं आए हैं उनकी हालत तो और भी खराब है। उन्हें मालिक की ओर से टारगेट दिया गया है हर माह दस लाख रुपए कमाने और डूब चुकी विज्ञापन की राशि को वसूलने का। मालिक का साफ कहना है कि आप लोगों को अपनी सेलरी खुद निकालना होगा और अखबार को छापने में खर्च होने वाला धन भी जुटाना होगा। कभी पीपुल्स समाचार सोलह प्लस चार पेज का निकलता था, जिसे अब कुल जमा 12 पेज का कर दिया गया है। कुल मिलाकर ग्वालियर में इन दिनों पत्रकारों के दिन ठीक नहीं चल रहे हैं। चिटफंडियों द्वारा शुरू किए गए अखबारों पर ताले लटक चुके हैं। यह चिटफंडिए गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गए हैं। इनके अखबारों में काम करने वाले लोग बेरोजगार बैठे हैं कि जागरण द्वारा नईदुनिया खरीदे जाने के बाद नईदुनिया, ग्वालियर से अभी तक छोटे स्तर के 23 लोगों को बाहर का दरवाजा दिखाया जा चुका है और अब संस्थान के लिए सफेद हाथी बन चुके लोगों को बाहर करने की तैयारी है। कुल मिलाकर दो सैकड़ा के आसपास मीडियाकर्मी एक साल में बेरोजगार हो चुके हैं।