जयपुर। आज का दिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए ऎतिहासिक है, जब इन दोनों प्रदेशों ने एक नए प्रदेश को जन्म दिया है। यह नया प्रदेश एक नई सोच और आम आदमी के विश्वास का प्रतीक है। भारतीय पाठक सर्वेक्षण की मंगलवार को मुम्बई में जारी वर्ष 2013 की नवीनतम रिपोर्ट में "पत्रिका" ने मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में अपनी ऎतिहासिक सफलता का परचम लहराते हुए वृद्धि के आंकड़ों में शेष सभी अखबारों को पीछे छोड़ दिया है।
वर्ष 2012 की अंतिम तिमाही की तुलना में वर्ष 2013 में पत्रिका डबल से भी अधिक हो गया है। पत्रिका ने इस अवधि में अपनी पाठक संख्या में 124 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है, जो कि देश के हिन्दी समाचार पत्रों में सर्वाधिक है, जबकि मध्यप्रदेश का सिरमौर कहलाने वाला अखबार अपने 11 प्रतिशत पाठक खोकर देश में तीसरे स्थान पर लुढ़क गया है।
सफलता की इस दौड़ में "राजस्थान पत्रिका" ने भी झण्डे गाड़ने का सिलसिला बनाए रखा है। राजस्थान पत्रिका अपने पाठकों की संख्या 12 प्रतिशत बढ़ाते हुए देश के शीर्ष दस हिन्दी अखबारों की सूची में अब चौथे स्थान पर आ गया है। आईआरएस 2012 की चौथी तिमाही में इसका स्थान पांचवां था।
पत्रिका समूह की यह सफलता इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि देशभर में कई अखबारों की पाठक संख्या घट रही है। शीर्ष दस हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर सहित छह समाचार पत्र ऎसे हंै, जिनकी पाठक संख्या में गिरावट आई है। इस अवधि में इन अखबारों को 50 लाख 94 हजार पाठकों से हाथ धोना पड़ा है। जिन चार अखबारों के पाठक बढ़े हैं, उनमें पत्रिका समूह के दोनों समाचार पत्र शामिल हैं, जिन्होंने 33 लाख 88 हजार नए पाठक जोड़े हैं।
पत्रिका समूह के अखबारों की बढ़ती लोकप्रियता मीडिया विश्लेषकों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है। दूसरी ओर, अंग्रेजी समाचार पत्रों की हालत तो और भी बुरी है। देश के शीर्ष दस अंग्रेजी अखबारों में से मात्र चार ही ऎसे हैं, जो 13 से 32 हजार तक नए पाठक जोड़ पाए हैं।
शेष सभी की पाठक संख्या गिर गई है। विश्लेषकों का मानना है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में "पत्रिका" की पाठक संख्या में तेज वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि पाठक निष्पक्ष, गंभीर और मुद्दे आधारित पत्रकारिता के हिमायती हैं। पत्रिका की बेबाक कलम अन्याय, अत्याचार, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिना किसी दबाव के निरंतर चलती रही। हाल ही सम्पन्न विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी निष्पक्षता के कारण "पत्रिका" पाठकों की पहली पसंद बन गया।
चुनाव में "पत्रिका" की सकारात्मक भूमिका को देखते हुए राष्ट्रपति ने पिछले दिनों पत्रिका को राष्ट्रीय मीडिया पुरस्कार भी प्रदान किया है। दूसरी ओर, जिन अखबारों ने वास्तविक पत्रकारिता से मुंह मोड़कर "चटपटेपन" का सहारा लिया, पाठक उनका साथ छोड़ते चले गए। जिन अखबारों ने राजनीतिक दलों से जुड़कर या बिजनेस हित में निष्पक्षता त्याग दी, वे पाठकों के दिल से भी उतर गए।"पत्रिका" के खाते में एक उपलब्घि यह भी जाती है कि इस वर्ष यह देश के दस शीर्ष हिन्दी अखबारों की सूची में न सिर्फ शामिल हो गया है, बल्कि इसमें छठा स्थान हासिल कर लिया है।
इतने सारे पाठकों का पत्रिका से जुड़ना अपने आप में एक नए प्रदेश के जन्म जैसा ही है। ऎसा प्रदेश जिसका हर नागरिक अपने कत्तüव्यों के प्रति जागरूक है। जो स्थानीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील है। जो प्रदेश के विकास को लेकर सक्रिय है। और जो एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सौहार्द्र की भावना रखता है। यही तो है हमारी कल्पनाओं का प्रदेश। पत्रिका के पाठकों का अपना प्रदेश।
उम्मीदों का यह कारवां एक समाचार पत्र से कहीं आगे बढ़ कर हमारी जिन्दगी ही बन गया है। यह सब आप सुधि पाठकों के समर्थन और विश्वास के कारण ही संभव हुआ है। पाठकों का यही विश्वास वो ऊर्जा है जिसके दम पर पत्रिका आज इस मुकाम पर पहुंचा है। इस सफलता से पत्रिका ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाठकों के दिल में एक खास जगह बनाई है। हम अपने पाठकों के इस स्नेह से अभिभूत हैं और उनके प्रति अपना कोटि-कोटि आभार व्यक्त करते हैं। (पत्रिका)