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रीडरशिप में पोल खुलने से नाराज 18 मीडिया समूह आईआरएस से अलग हुए

नई दिल्ली। इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी की कार्यकारी समिति की ओर से सर्वसम्मति से इंडियन रीडरशिप सर्वे (आइआरएस-2013) को खारिज करने के बाद दैनिक जागरण समेत कई प्रमुख अखबारों ने खुद को आइआरएस से अलग कर लिया है।

नई दिल्ली। इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी की कार्यकारी समिति की ओर से सर्वसम्मति से इंडियन रीडरशिप सर्वे (आइआरएस-2013) को खारिज करने के बाद दैनिक जागरण समेत कई प्रमुख अखबारों ने खुद को आइआरएस से अलग कर लिया है।

दैनिक जागरण के अलावा जिन अन्य प्रमुख अखबारों ने आइआरएस से अलग होने के पत्र भेज दिए हैं उनमें दैनिक भास्कर समूह, टाइम्स ऑफ इंडिया समूह, द इंडिया टुडे समूह, द हिंदू समूह, द आनंद बाजार पत्रिका समूह, द ट्रिब्यून, दिनाकरन समूह, मिड-डे, लोकमत समूह, मलयाला मनोरमा समूह, आउटलुक समूह, द स्टेट्समैन समूह, अमर उजाला, बर्तमान समूह, आज समाज, साक्षी मीडिया समूह, डीएनए समूह और नई दुनिया भी शामिल हैं।

प्रमुख अखबारों ने यह कदम मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी) की ओर से आइआरएस के हास्यास्पद नतीजे वापस न लेने के फैसले के बाद उठाया। देश के सभी राज्यों में सभी भाषाओं के अखबारों पर किए गए इस सर्वे में सैकड़ों हैरान कर देने वाली विसंगतियां हैं। कुछ चुनिंदा इस तरह हैं:

पंजाब-हरियाणा

सर्वेक्षण के मुताबिक पंजाब में कुल संख्या के 33 फीसद (10 लाख 20 हजार) पाठक घट गए हैं। पंजाब केसरी की रीडरशिप में 43 फीसद गिरावट बताई गई है और द ट्रिब्यून के पाठकों की संख्या आधी कर दी गई है। इसके उलट हरियाणा में हरिभूमि के पाठकों की तादाद में 390 फीसद उछाल दिखाया है, जो 2012 के दौरान राज्य में कहीं दिखाई ही नहीं देता था।

उत्तर प्रदेश

कानपुर में अग्रणी अखबार की हर प्रति के 2.6 पाठक के मुकाबले हिंदुस्तान को 10 से ज्यादा लोग पढ़ने की बात कही गई है। वाराणसी में दैनिक जागरण का सर्कुलेशन हिंदुस्तान के मुकाबले दोगुने से ज्यादा है, फिर भी वहां हिंदुस्तान के पाठकों की संख्या अग्रणी अखबार से कहीं ज्यादा दिखाई गई है। मेरठ में दैनिक जागरण हिंदुस्तान के मुकाबले सौ फीसद आगे है, लेकिन सर्वे में पाठकों की संख्या के मामले में उसे हिंदुस्तान से महज 18 फीसद बढ़त पर रखा गया है। सर्कुलेशन के लिहाज से आगरा में हिंदुस्तान तीसरे नंबर पर है और वह अमर उजाला का दो तिहाई ही है, लेकिन उसके पाठकों की संख्या अग्रणी अखबार से 43 फीसद ज्यादा दिखाई गई है। अलीगढ़ में सर्कुलेशन के मामले में जागरण हिंदुस्तान से 38 फीसद आगे है, लेकिन उसकी पाठक संख्या में महज नौ फीसद बढ़त दिखाई गई है। इलाहाबाद में अमर उजाला सर्कुलेशन में तो हिंदुस्तान से 44 फीसद आगे है, लेकिन रीडरशिप में हिंदुस्तान 16 फीसद बढ़त हासिल किए हुए है।

उत्तराखंड

सर्वेक्षण में उत्तराखंड के अग्रणी अखबार अमर उजाला के मुकाबले हिंदुस्तान को 30 फीसद ज्यादा सर्कुलेशन के साथ पहले पायदान पर दिखाया गया है। इस राज्य में हिंदुस्तान का महज एक प्रिंटिंग सेंटर है, जबकि अन्य प्रमुख अखबारों के दो-दो प्रिंटिंग सेंटर हैं। हिंदुस्तान की 20 लाख प्रतियों को पढ़ने वालों की तादाद अप्रत्याशित तौर पर एक करोड़ 40 लाख बताई गई है।

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महाराष्ट्र और गुजरात

महाराष्ट्र की स्थिति कुछ ज्यादा ही हास्यास्पद है। नागपुर के अग्रणी अंग्रेजी अखबार हितवाद का प्रमाणित सर्कुलेशन 60 हजार है, लेकिन सर्वे में इसे एक भी पाठक नहीं दिया गया है। यहां साकाल और लोकमत के पाठकों में भी अविश्वसनीय कमी दिखाई गई है।

दिल्ली-मुंबई

मुंबई में अखबारों की पाठक संख्या में 20.3 फीसद उछाल दर्शाया गया है, जबकि हर मामले में आगे बढ़ रही दिल्ली में पाठकों की संख्या 19.5 फीसद घटी बताई गई है।

गुजरात-मध्यप्रदेश

गुजरात में पिछले आइआरएस सर्वे में गुजरात समाचार को राज्य का अग्रणी अखबार बताया गया था। इस बार सर्वे में उसके पाठकों की संख्या सात लाख छह हजार घटा दी गई है, जबकि संदेश के पाठकों की संख्या में पांच लाख 23 हजार की वृद्धि बताई गई है। मध्य प्रदेश में नई दुनिया के 24 फीसद पाठक घटा दिए गए हैं, जबकि उसके सर्कुलेशन में शानदार बढ़ोत्तरी हुई है। राज्य में पत्रिका के पाठकों की पिछली संख्या 18 लाख में 135 फीसद का उछाल बताया गया है और आंकड़ा 44 लाख से ऊपर निकल गया है, जबकि अखबार ने कोई नया संस्करण शुरू नहीं किया है।

तमिलनाडु

तमिलनाडु में हिंदू की पाठक संख्या करीब आधी होकर 6.1 लाख रह गई है, जो पहले 10.7 लाख थी। दिनाकरन ने भी कथित तौर पर 14 लाख पाठक खोए हैं। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंदू बिजनेस लाइन की पाठक संख्या चेन्नई के मुकाबले तीन गुनी बताई गई है। (जागरण)

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