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9 महीने 10 दंगे, क्या कर रही अखिलेश सरकार?

 

एक दशक के बाद उत्‍तर प्रदेश में इतने खतरनाक हालात बन रहे हैं। प्रदेश के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैरान और परेशान हैं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि इन हालातों से किस तरह निपटें। प्रदेश में साम्‍प्रदायिक आधार पर उन्माद और प्रशासन की लापरवाही ने सरकार के सामने प्रश्नचिन्ह लगा दिया हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती ने मौके की नजाकत को देखते हुए सरकार पर जोरदार हमला बोल दिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बने यह हालात समाजवादी पार्टी के लिए बेहद चिंता का विषय बने हुए हैं। मगर हालात काबू हो पायेंगे ऐसी कोई ठोस रणनीति सरकार के पास दिख नहीं रही है।

 

एक दशक के बाद उत्‍तर प्रदेश में इतने खतरनाक हालात बन रहे हैं। प्रदेश के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैरान और परेशान हैं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि इन हालातों से किस तरह निपटें। प्रदेश में साम्‍प्रदायिक आधार पर उन्माद और प्रशासन की लापरवाही ने सरकार के सामने प्रश्नचिन्ह लगा दिया हैं। बसपा सुप्रीमों मायावती ने मौके की नजाकत को देखते हुए सरकार पर जोरदार हमला बोल दिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बने यह हालात समाजवादी पार्टी के लिए बेहद चिंता का विषय बने हुए हैं। मगर हालात काबू हो पायेंगे ऐसी कोई ठोस रणनीति सरकार के पास दिख नहीं रही है।
 
चुनाव के समय ही इसी बात की आशंका जतायी जा रही थी कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही प्रदेश में अपराधों की बाढ़ न आ जाये। अखिलेश यादव के अपराध नियंत्रण के दावे पर भरोसा करके लोगों ने उनकी सरकार तो बना दी मगर नौ महीनों में दस दंगों ने इस सरकार की साख पर खासा बट्टा लगा दिया है। मथुरा, बरेली, प्रतापगढ़, गाजियाबाद, इलाहाबाद, फैजाबाद, बाराबंकी जैसी जगहों पर आज भी तनाव की स्थिति बनी हुई है। खुफिया तंत्र ने पहले ही आशंका जता दी है कि प्रदेश बारूद के ढेर पर बैठा है और कहीं भी कोई भी बड़ी साम्प्रदायिक घटना घट सकती है।
 
मगर खुफिया तंत्र के इस ऐलान के बावजूद प्रशासनिक मशीनरी ने सुधरने का कोई नाम नहीं लिया। परिणामस्वरूप प्रदेश के कई और स्थानों से भी साम्प्रदायिक उन्माद की खबरें आ रही हैं। अखिलेश सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब यह है कि लोग इन दंगों के बाद पिछली सरकार को याद करने लगे हैं। लोगों का मानना है कि मायावती सरकार में प्रदेश में किसी भी स्थान पर ऐसा दंगा नहीं हुआ जिसमें किसी की जान गई हो। स्वाभाविक है अगर लोग मायावती को इस रूप में याद करेंगे तो यह अखिलेश की मुसीबतें बढ़ाने वाला काम ही होगा। सरकार में बैठे वरिष्ठ लोग भी नहीं समझ पा रहे कि आखिर अचानक प्रदेश में इस तरह दंगों की बाढ़ कैसे आ गयी। हर कोई अपने-अपने हिसाब से इसकी परिभाषा करने में जुटा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फैजाबाद दंगों के बाद कहा कि यह दंगे उनकी सरकार को बदनाम करने के लिए करवाये जा रहे हैं। इसके पीछे कुछ लोगों की साजिश है। 
 
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बात में दम हो भी सकता हैं। जो माहौल प्रदेश में इस समय बना है, वह भाजपा के बेहद अनुकूल भी है। मगर लोग यह नहीं समझ पा रहे कि जब सरकार को पता है कि इन दंगों के पीछे साजिश है तो इस साजिश को रोका क्यों नहीं गया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कांत बाजपेई साजिश की किसी भी बात से इनकार करते हैं। भाजपा नेताओं का मानना है कि सरकार ने शपथ लेने के साथ ही वोट बैंक के कारण मुस्लिमों को साफ तौर पर संदेश दे दिया कि वह कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। इसके बाद इस तरह के दंगे तो होना स्वाभाविक ही है। मगर समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा नुकसान मुस्लिमों से ही होने की आशंका सता रही है। प्रदेश में बीते नौ महीनों में जिन-जिन स्थानों पर दंगे हुए हैं वहां मरने वाले लोगों में अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोग ही हैं। मुस्लिमों में इस बात की भारी नाराजगी है कि उनके व्यापक समर्थन से बनी सरकार में उनका ही उत्पीड़न हो रहा है। 
फैजाबाद में साइकिल रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाले रशीद खान का कहना था कि सरकार बनते ही सबसे पहले मुस्लिमों के कब्रिस्तान की बाउंड्री बनवाने की घोषणा कर दी गयी। जिससे बड़ी संख्या में मुसलमानों के मरने पर उन्हें कोई परेशानी न हो। यह बात बेहद खतरनाक है। सालों से इस प्रदेश में जो भाईचारा चला आ रहा था वह थोड़े समय में ही तार-तार हो गया। बहुजन समाजपार्टी की राष्‍ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा कि प्रदेश में पूरी तरह से जंगलराज और गुंडाराज स्थापित हो गया है। जिसके आगे सपा सरकार बेहद लाचार महसूस हो रही है। इन्होंने कहा कि उनकी सरकार में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद जैसे संवेदनशील मामलों में अदालती निर्णय आने के बावजूद पूरे प्रदेश में शांति रही क्योंकि प्रदेश में कानून का राज स्थापित था जो अब पूरी तरह समाप्त हो गया है। प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया के यूपी के ब्यूरो प्रमुख प्रमोद गोस्वामी का कहना है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की इस बात में दम हो भी सकता है कि उनकी सरकार के खिलाफ साजिश हो रही है। मगर सिर्फ यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रदेश की नौकरशाही निरंकुश हो गयी है। 
 
उत्‍तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त पत्रकार संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी का मानना है कि साम्‍प्रदायिक दंगे बहुमत की सरकार के लिए कलंक जैसे होते है। उनका कहना है कि यह हालात सिर्फ इसलिए पैदा हो रहे है कि अफसरों का इकबाल खत्म हो गया और अफसरों को किसी का डर नहीं रहा। उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए किसी भी समय की गाइडलाइन नहीं ली जा सकती क्योंकि सरकार बनने के पहले दिन से ही कानून व्यवस्था संभालना सरकार का सबसे बड़ा काम है। आईबीएन 7 चैनल के यूपी के ब्यूरो प्रमुख शलभमणि का मानना है कि प्रदेश के हालात खराब होने में सबसे बड़ा दोष पुलिस के अफसरों का है। उनको लगता है कि सरकार में ऐसा कोई नहीं है जो उन्हें प्रभावी निर्देश दे सके। महीनों तक राजधानी लखनऊ में एसएसपी का काम आईजी से कराया गया और अभी भी कानपुर में डीआईजी स्तर का अधिकारी एसएसपी का काम देख रहा है। सरकार में पुलिस महकमे में अफसर अपनी योग्यता से नही बल्कि अपनी जुगाड़ से तैनाती पा रहे हैं ऐसी स्थितियों में वह कानून व्यवस्था क्या संभालेंगे यह स्वतत: ही समझा जा सकता है। 
 
पुलिस प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती अभी दीपावली का त्यौहार भी है। खुफिया तंत्र लगातार प्रदेश में हालात बिगड़ने की आशंका जता रहे है। पुलिस के आला अफसरों में तालमेल का अभाव सभी को नजर आता है ऐसे में पुलिस को तत्परता के साथ जो कार्रवाई करनी चाहिए थी वह भी होती नजर नहीं आ रही। चुनावों के समय इन तनावों से कैसे उबरा जाये इसका कोई ठोस प्लान अभी तक पुलिस अफसरों के पास आ गया हो ऐसा भी नहीं है। डीजीपी मुख्यालय की धमक खत्म हो गयी है। जिले के अफसर 

उनकी सुन नहीं रहे हैं। ऐसे में अगर फिर किसी तनाव की शुरुआत हुई तो उससे निपटना खासा मुश्किल हो जायेगा। जिन लोगों को इन दंगों में अपने वोट बैंक दिखता है वह इस तरह का माहौल खराब करने में कोई कसर नही छोड़ेंगे। जाहिर है लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह स्थितियां मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए बेहद चुनौती भरी सिद्ध होंगी। क्योंकि ऐसे हालातों में साम्‍प्रदायिक आधार पर मतों को ध्रुवीकरण होने का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को पहुंचेगा तो कानून व्यवस्था के नाम पर लोगों को फिर मायावती याद आयेंगी। अब समय आ ही गया है कि जो लोग साजिश कर रहे हैं उन्हें इसका कड़े से कड़ा सबक सिखाया जाये अन्यथा इसकी भारी कीमत अखिलेश यादव को लोकसभा चुनाव में उठानी पड़ेगी।
 
लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. हिंदी वीकली न्यूजपेपर वीकएंड टाइम्स के संपादक हैं. यह लेख उनके अखबार में प्रकाशित हो चुका है.
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