दैनिक जागरण, बरेली से खबर है कि छंटनी की तलवार भांज रहा प्रबंधन अब सीनाजोरी का रास्ता अपना लिया है. बरेली में जिन छह लोगों से इस्तीफे मांगे गए थे, उन लोगों को मौखिक आदेश देकर कार्यालय आने से मना कर दिया गया है. इन लोगों ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद इन लोगों के कार्यालय आने पर रोक लगा दी गई है. छंटनी के शिकार बनाए जा रहे लोग लेबर कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं. समझा जा रहा है अन्य यूनिटों के कर्मचारी भी जागरण को कोर्ट में खींचने से पीछे नहीं हटेंगे.
बरेली से जिन लोगों से इस्तीफे मांगे गए हैं वे जागरण के वरिष्ठ सहयोगी हैं तथा कई तो लगभग दो दशकों से जागरण को अपनी सेवाएं दे रहे थे. जागरण को मजबूत करने वाले इन साथियों को प्रबंधन ने एक ही झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया. कुछ पत्रकार रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े हैं, पर प्रबंधन ने तनिक भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई. अपनी कुर्सी बचाने के चक्कर में संपादक ने अपनी सेना को ही दांव पर लगा दिया. हालांकि जिस तरह की स्थिति बनी हुई है, छंटनी के शिकार लोग भी अपने हथियार रखने को तैयार नहीं हैं.
सूत्रों का कहना है कि छंटनी के शिकार जल्द ही लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं. जागरण प्रबंधन के लिए इन लोगों को बिना कारण बाहर कर पाना इतना आसान नहीं होगा. पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले जागरण के बनिया मालिक जिस तरीके से पत्रकारों के पेट पर लात मार रहे हैं, वही लात देर सबेर वापस इनको भी सूद समेत वापस मिलेगा. एक तरफ जागरण को कई सौ करोड़ का फायदा हो रहा है तो दूसरी तरफ प्रबंधन अपने कर्मचारियों को बेरोजगार करने पर तुला हुआ है.
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