हिंदुस्तान में रईसी को लेकर अक्सर एक जुमला कसा जाता है – टाटा-बिरला बन गए हो क्या ? यानि ये नाम रईसी के प्रतीक हैं ! पर रईस बनने के कई तरीके हैं ! शोषण-प्रथा , सम्भवतः, सबसे पुरानी है ! एशिया की सबसे बड़ी एल्युमिनियम की फैक्टरी "हिण्डाल्को" भी आज कल इसी तरीके से फल-फूल रही है.
4 राज्यों की सीमा को छूते, उत्तर-प्रदेश के सोनभद्र जिले के रेणुकूट में 1962 में स्थापित ये फैक्टरी इस क्षेत्र में, जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर, इसलिए लगाई गई , ताकि आदिवासी बहुल इस इलाके का विकास हो. लेकिन आज नजारा कुछ और ही है. ये क्षेत्र उत्तर-प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के बदहाल इलाकों में से एक माना जाता है. मगर इस फैक्ट्री के मालिकान और अफसर बड़ी तेजी से अमीर-दर-अमीर होते गए. ये क्षेत्र उघोग-धंधों से पटा पड़ा है. कुमार-मंगलम बिरला की छवि , इस क्षेत्र में, एक महाराजा सरीखी है. ऐसा लगता है , मानो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी कुछ महाराजा अपनी रियासतों के साथ अस्तित्व में बने हुए हैं. बिरला और रेणुकूट की कहानी भी कुछ इसी तर्र पर है.
यहां की हिण्डाल्को फैक्ट्री के करता-धर्ता, "महाराजा" बिरला के मंत्री-संतरी की तरह काम करते हैं. कर्मचारी हितों की बलि लेकर अपने आका के लिए मुनाफा तैयार करते हैं. आधुनिकीकरण के नाम पर इस फैक्ट्री में स्थाई कर्मचारियों की संख्या तेज़ी से घटी है. अस्थाई प्रचलन जोरों पर है. "समान कार्य-समान वेतन" की मांग को यहां का प्रबंधन बकवास मानता है.
स्थानीय निवासियों और श्रमिकों के मुताबिक यहां की मैनेजमेंट ने "इंटक" , "राष्ट्रीय श्रमिक संघ" और "बी.एम.एस." नाम के मज़दूर-संगठनों के नेताओं को अपना पिट्ठू बना रखा है. हद तो ये है कि एक प्रभावशाली मजदूर नेता एक किशोर के साथ जबरदस्ती समलैंगिक संबंध बनाने के आरोप में जेल की हवा खा कर बाहर आया है , मगर हिण्डाल्को की मैनेजमेंट की आंखों का तारा है. ये वही मैनेजमेंट है जो अपने श्रमिकों को किसी भी आधार पर एक झटके में निकाल देती है. इनमें नैतिक उल्लंघन को बड़ी सख्ती से लागू किया जाता है, मगर एक किशोर के साथ ज़बरदस्ती समलैंगिक सम्बन्ध बनाने वाला ७२ साल की उम्र में भी हिण्डाल्को का प्रिय-पात्र बना हुआ है.
सूत्रों के मुताबिक हिण्डाल्को का एच.आर. विभाग बड़ा शातिर है. समलैंगिक संबंधों के आरोपी मजदूर नेता (जिनकी सेक्स सी.डी. बहुत सारे स्थानीय निवासियों के पास मौजूद है) और हिण्डाल्को के एच.आर. विभाग में अच्छी सांठ-गांठ है. कारण है कि ये नेता और हिण्डाल्को का एच.आर. विभाग मिलकर श्रमिकों का हाल तय करते हैं. बताने की ज़रुरत नहीं कि हाल बड़ा बे-हाल है और तो और जहां अन्य कर्मचारियों को ५८ साल की उम्र में रिटायर कार दिया जाता है , वहीं सेक्स सी.डी. वाले तथा-कथित मज़दूर नेताजी को ७२ साल में भी फैक्ट्री के करता-धरता, "काम वाला" मान कर रखे हुए हैं पाल-पोस रहे हैं .
इस एल्युमिनियम फैक्ट्री में कई काम बड़े रिस्क वाले होते हैं , मगर दुर्घटना के समय मिलने वाली राशि, हताशा और आक्रोश को जन्म दे रही है. इस फैक्ट्री के मालिक (महाराजा) कुमार-मंगलम बिरला तक ये सारी बात पहुंच रही है या नहीं , इस बात को यकीन के साथ कोई नहीं कह सकता पर मालिकान तक शोषण की दास्तां न पहुंचती हो , ये बात बहुतों को पचती नहीं. कहा जाता है कि काम करते वक्त मजदूरों के साथ अनहोनी की बात को इतनी सफाई के साथ दबा दिया जाता है कि भनक तक नहीं लगती. जिसे भनक लग जाती है उसे "खरीद" लिया जाता है. स्थानीय प्रशासन का हाल ये है कि बिरला की जूती उनका सर . श्रमिक नेता फैक्ट्री में ही ठेका लेकर करोड़ो के वारे-नारे कर मस्त हैं. देश में असंतोष और असमानता पैदा करने वाला आउट सोर्सिंग सिस्टम रोज़गार देने के नाम पर स्थाई कर्मचारियों की संख्या घटा रहा है.
हिण्डालको में इस सिस्टम का अब बोल-बाला हो रहा है. आदित्य बिरला ग्रुप की इस सबसे बड़ी फैक्ट्री को अल्युनिनियम जगत की शान कहा जाता है, चांद कहा जाता है पर इस चांद में कई बदनुमा दाग लग रहे हैं. दुःख की बात तो ये है कि स्वर्गीय आदित्य बिरला के होनहार पुत्र , कुमार मंगलम बिरला, इधर साल में एक बार झांकने भी नहीं आते. उनके मंत्री-संतरी उन्हें मुनाफे अंक-गणित समझा देते हैं. उघोग पतियों की हालत इस कदर हो चुकी है कि उन्हें भारी मुनाफा हर कीमत पर चाहिए. मानवीय संवेदनाओं के साथ कम मुनाफा जैसा गुण इन्हें विरासत में कहीं-कहीं ही मिलता है और हिण्डालको की मौजूदा हालत ये बताती है या तो कुमार मंगलम बिरला इस बात से बे-खबर हैं या फिर स्थाई कर्मचारियों की संख्या घटा कर और शोषण की राह पर चलते हुए जान-बूझते भी चुप्पी साधे हैं.
हिंदुस्तान जैसे गरीब मुल्क में अमीरों की की संख्या तो तेजी से बढ़ी है , लेकिन उस से भी तेज रफ्तार से उघोग पतियों की तिजोरी. रेणुकूट का हिण्डाल्को प्लांट इस बात की गवाही देने के लिए काफी है कि … शोषण का बुनियादी सिध्दांत अमीरी की बुनियाद तैयार करता है. भारी मुनाफा, नैतिक और मानवीय सिध्दांतों को लात मारता है और तभी अमीर और अमीर बनने की राह पर चल पड़ता है. कुमार मंगलम बिरला पुश्तैनी रईस हैं. संभवतः भारतीय लोकतंत्र के राजा-महराजाओं में से एक, जिनके अपने कानून होते हैं और अपना संविधान. इन निजी कानूनों को चुनौती देने का मतलब है भुखमरी से लबरेज मौत से भी बदतर जिंदगी. एशिया की सबसे बड़ी एल्युमिनियम फैक्ट्री का बदलता मिजाज इस बात की गवाही देने के लिए आप को आमंत्रित करता है. स्वागत करता है , शोषण की अनकही दास्तां को सुनाने के लिए.
लेखक – नीरज वर्मा