बिहार में जब जदयू और बीजेपी ने 2005 में मिलकर सरकार बनाई थी तब यहां बंद पड़े चीनी मिलो को फिर से शुरू करने की बात कही गई थी जिसके तहत बिहार स्टेट शुगर कार्पोरेशन की जो चीनी मिलें थी उसको प्राइवेट सेक्टर के हाथ से बेचने की निविदा करायी गई थी।
तत्कालीन गन्ना आयुक्त जयमंगल सिंह ने चरणबद्ध तरीके से निविदा कराई, पहले दौर की निविदा जो 2008 में कराई गई थी, मोतीपुर और बिहटा सुगर मिल को इंडियन पोटाश लिमिटेड, लौरिया और सुगौली चीनी मिल को हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड को क्रमशः 45 और 50 करोड़ में बेचा गया।
दूसरे दौर की निविदा जो 2009 में कराई गई थी, रैयाम और सकरी चीनी मिल को तिरहुत इंडस्ट्रीज लिमिटेड के हाथो क्रमश 8.44 और 18.25 करोड़ में बेचीं गई।
बिहार में सरकारी निविदा की जो शर्ते होती है उसके तहत कंपनी कम से कम तीन साल पुरानी होनी चाहिए और वार्षिक टर्न ओवर के साथ साथ तकरीबन 50 शर्त होती है।
लेकिन रैयाम और सकरी चीनी मिलों को प्राइवेट सेक्टर के कंपनी तिरहुत इंडस्ट्रीज लिमिटेड के हाथो बेचते हुए निविदा की सारी शर्ते ताक पर रख दी गई थी। तिरहुत इंडस्ट्रीज लिमिटेड रजिस्टर ऑफ कंपनी में 22 अगस्त 2008 को पंजीकृत हुआ था और मात्र 1 करोड़ के पूंजी के साथ। 2009 में बिहार स्टेट सुगर कारपोरेशन के दुसरे चरण के निविदा में रैयाम और सकरी की चीनी मिलें तिरहुत इंडस्ट्रीज लिमिटेड को दे दी गई।
एक ओर जहां हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड और इंडियन पोटाश लिमिटेड जैसे भारत के प्रतिष्ठित कंपनीओ को चीनी मिलो का आवंटन किया गया वही दूसरी ओर तिरहुत इंडस्ट्रीज लिमिटेड जैसे 6 महीने पुरानी कंपनी को निविदा की सारी शर्ते ताक पर रख कर चीनी मिलो का आवंटन किया गया।
काली कान्त झा