चांपना न्यूज का भाँड सीईओ, अब लौंडा मालिक मयंक को सर्वे-सर्वा घोषित कराने की युक्तियां शुरू कर चुका था। हर शनिवार की शाम होने वाली टेलीकॉनफ्रेसिंग भी मयंक की मौजूदगी में होने लगी। टेलीकॉनफ्रेंसिंग में भी वही सब कुछ। सुबह जैसा चैनल के सीनियर्स के साथ होता, लगभग वैसा ही ब्यूरो के न्यूज और मार्केटिंग प्रभारियों को भी झेलना होता। लेकिन, सबके सब लॉनचूस।
अगर कोई कभी कुछ कहने की हिम्मत करता तो, भाँड माइक अपने हाथ में ले लेता और कहता- ”डिटेल विजय सिंह जी को मेल कर देना, देख लेंगे…” कह कर बात खत्म। भाँड, लौंडा मालिक के कंधे पर बंदूक रख चलाता है। भाँड के निशाने पर हर वो शख्स है जो भाँड की कारगुजारियों के बारे में थोड़ा बहुत कुछ जानता है या भाँड की भड़ैती में शामिल होने से इंकार करता हैं। इसलिए भाँड, लौंडा मालिक का कंधा मजबूत करने में लगा है।
लौंडा मालिक का कंधा मजबूत रहेगा, तो बंदूक चलाना आसान रहेगा। चांपना न्यूज चैनल में भाँड का सबसे बड़ा निशाना विजय सिंह हैं। भांड़ यूं तो विजय सिंह को ‘मालिक हैं ये’ – कह कर सबसे इन्ट्रोड्यूस करवाता है लेकिन विजय सिंह को गाहे-बगाहे जमकर बेइज्जत भी करता है। विजय सिंह की बेइज्जती वाली ऐसी ही एक मीटिंग का दृश्य-
‘कॉनफ्रेंस रूम में सीनियर्स के साथ कुछ लॉमचूस भी मौजूद थे। लामचूसों के साथ-साथ भाँड आज बाकी लोगों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान था। अचानक ब्लैकबेरी की घंटी बजते ही भाँड ने बांये हाथ से अपने दांये थोपड़े को सीधा किया और बोला- ”गुडमॉरनिंग सर, सर आप कहां तक पहुंचे…जी..ज्जी..जी आप स्ट्रेट स्टेडियम क्रॉसिंग आइए, वहां से लेफ्ट, टू हंड्रेड मीटर, स्वानी फरनीचर…ज्जजी..जी..जी बस..बस टर्न लेने से पहले एक मिस कॉल दे दीजिए… आय एम डेप्यु़टिंग सम वन सीनियर टू एस्कार्ट यू… ज्जी..जी नो प्रॉब्लम सर…आप आइए…आइए प्लीज़।”
भाण्ड ने विजय जी से कहा- ”वो गेस्ट आ गए हैं…आप जरा उन लोगों को स्वानी फरनीचर से रिसीव कर लाओ… और उन्हें तीनों चैनल विजिट करवा दो…सुनिये उनके चाय-नाश्ते का इंतजाम ठीक से देख लीजिएगा…।”
विजय सिंह के चेहरे की रौनक जाती रही। चैनल के सीनियर्स के सामने डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन विजय सिंह को भाँड सीईओ हुक्म दे रहा था कि “गेस्ट को रिसीव करके लाओ…चैनल विजिट करवाओ” “चाय नाश्ते का इंजताम ठीक से देख लेना”। बड़ी असहज स्थिति थी, विजय सिंह की। इससे पहले शायद ही किसी ने उनको इस स्थिति में देखा होगा। फिर भी विजय सिंह ने अपने आपको संभाला और बोले-
…और मीटिंग…
विजय सिंह की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि भाँड डपटने के अंदाज में विजय सिंह से बोला- ”आप मीटिंग-वीटिंग छोड़िए, दिनेश जी ने कहा है, विजय सिंह को लगाओ इस काम पर, अब जाइए और गेस्ट को देखिए। अगर वो खुश होकर जाएंगे तो चैनल को अच्छा फायनेंसर मिल जाएगा। सबके दुख दूर हो जाएंगे।”
ये घटना भी सर्दियों की है। विजय सिंह आसमानी नीले रंग का सूट पहने हुए थे। बेचारे! अपना सा मुंह लिए मीटिंग छोड़ कर कॉनफ्रेंस रूम से बाहर आ गए। डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन को ऐसे ‘मेहमानों’ की लॉनचूसी के लिए कहा गया, जिन्हें वो जानते भी नहीं थे। ध्यान रहे, चांपना न्यूज चैनल में विजय सिंह की स्थिति वास्तव में चैनल के बैक-बोन जैसी है। इस बात में जरा भी संशय नहीं है। भाँड खुद भी इस बात को जानता है, लेकिन वो जानता है कि जब तक विजय सिंह चांपना न्यूज चैनल में रहेंगे तब तक वो लौंडा मालिक के कंधों को मजबूत करके अपनी बंदूक नहीं चला सकता सकता। इसके लिए जरूरी है कि विजय सिंह या तो खुद छोड़ कर चले जाएं या फिर भड़ैती करें और भाँड के आगे समर्पण कर दें।
‘गेस्ट’ आए और चले भी गए। फायनेंसर मिला या नहीं यह तो किसी को नहीं मालूम लेकिन चैनल के हालात वही रहे जो पहले थे। हर मीटिंग में वही रोना…पैसा नहीं तो स्टोरी कैसी…?
कुछ दिन और बीते…विनोदजी की एंट्री हो चुकी थी। विनोदजी चांपना में यह कह कर आये कि वो अब दिल्ली से वापस जाने के लिए नहीं आए हैं। उन्होंने अपने अंदाज में काम करना शुरू कर दिया था। उस वक्त के एक्जीक्यूटिव एडिटर महीन कुमार ने विनोदजी के केबिन में ज्यादा और अपनी कुर्सी पर कम बैठना शुरू किया। विनोदजी ने इसका ईनाम भी दिलाया महीन कुमार को। बहरहाल, भाँड ने अपने तीर-तुक्के चलाने जारी रखे तो विनोदजी से खूब झाड़-झपट भी हुई।
भाँड का पहला निशाना अब भी विजय सिंह ही थे। भाँड ने चैनल पर एक प्रोमो शुरू करवाया, उसमें एक मोबाइल नम्बर फ्लैश करवाया। जिसका मकसद ये बताया गया कि दर्शक अपनी शिकायत बताएंगे, हम उस पर स्टोरी करवाएंगे, जब स्टोरी चलेगी तो दर्शक चांपना चैनल देखेंगे। इस तरह चांपना चैनल टीआरपी में आ जाएगा। मजेदार बात ये है दर्शकों की शिकायत सुनने और समाधान देने का जिम्मा विजय सिंह को सौंप दिया गया और कहा गया कि ये नम्बर चौबीस घण्टे चालू रहना चाहिए।
भाँड इस बात की भी निगरानी ऱखता था कि कहीं विजय सिंह रात को फोन बंद करके खर्राटे तो नहीं भरते रहते हैं। जनशिकायत वाले उस कथित नम्बर पर घंटिया बजती ही रहतीं। विजय सिंह का खाना-पीना, सोना-जागना और बाकी सब कुछ भी हराम हो गया। खास बात यह कि फोन की घंटिया या तो रात के समय बजती थीं या फिर उस वक्त जब विजय सिंह किसी खास मीटिंग में व्यस्त होते थे। विजय सिंह को मेहमानों के सामने नीचा दिखाने वाले षडयंत्र का चरम देखिए कि जनशिकायत वाले इस नम्बर पर घंटियां उस वक्त तो जरूर बजती थीं जब वो किसी विशेष मेहमान के साथ होते थे। जनशिकायत वाले नम्बर का हैंडसेट भाँड ने ही विजय सिंह को कम्पनी की तरफ से दिलवाया था। इस हैंडसेट की कीमत बाजार में एक हजार रुपये थी। सामान्यतः विजय सिंह उस फोन को अपनी पॉकेट से बाहर निकालते भी न थे, लेकिन घंटी बजने पर उन्हें उस काम और हैंडसेट दोनों के लिए शर्मिंदा तो होना ही पड़ता था।
भांड़ ने विजय सिंह को नीचा दिखाने और उन्हें अपमानित करने कोई भी मौका नहीं छोड़ा। एक रीजनल चैनल को ओबी वैन किराए पर देने का एग्रीमेंट होना था। मीटिंग में भाँड के साथ विजय सिंह भी गए। बातचीत शुरू होते ही भाँड ने विजय सिंह को ऐसे निर्देश दिए जैसे सीईओ अपने सेक्रेटरी को निर्देश देता है- ”विजय सिंह जी, डायरी-पेन निकालो और मिनट्स बनाते चलो।” उस रीजनल चैनल के श्रीमान अवस्थी जी भी अवाक थे कि एक सीईओ, उसी विजय सिंह को निर्देशित कर रहा है जिनको उसने अभी-अभी ‘चैनल के पार्टनर मालिक’ बता कर इंट्रोड्यूस करवाया है। बहरहाल, विजय सिंह एक बार फिर खून का घूंट पी कर रह गए।
नोएडा ऑफिस में तो भाँड जानबूझ कर विजय सिंह जी की बेइज्जती करता है। फोन, इंटरकॉम की सुविधा होने के बावजूद भाँड चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को बुलाकर कहता है- ‘विजय को कॉन्फ्रेंस रूम में आने को बोलो’। भाँड का केवल एक उद्देश्य कि चांपना चैनल का हर छोटा बड़ा कर्मचारी अच्छी तरह जान ले कि विजय सिंह की ‘औकात’ क्या है।
विनोदजी के साथ झाड़-झपट के बाद भाँड सीईओ का नोएडा ऑफिस में आना-जाना कम हो गया। विजय सिंह अपने पुराने तेवर में दिखाई देने लगे। यह भाँड के लिए सबसे बड़ी चिंता थी। कर्मचारियों के सामने भाँड सीईओ अब विजय सिंह को अपमानित भी नहीं कर पा रहा था। लौंडा मालिक के कंधे पर रख कर बंदूक चलाने का उसका मंसूबा अधर में लटक रहा था। भाँड की भड़ैती खटाई में पड़ गई थी। अब विजय सिंह भी भाँड सीईओ को फोन पर अक्सर निर्देशित करते हुए देखे जा सकते थे। अचानक एक दिन झण्डेवालान में एक आपात बैठक बुलाई गई और एक सनसनीखेज आदेश पारित हुआ। विजय सिंह से आहरण-वितरण के समस्त अधिकार छीन लिए गए। जनरल एडमिनिस्ट्रेशन भी ले लिया गया। उन्हें ऑफिस में बैठकर पुरानी रिकवरी करने की जिम्मेदारी दे दी गई, जो किसी भी सूरत में सम्भव नहीं है।
भाँड सीईओ और उसकी कठपुतली लौंडा मालिक ने सोचा कि इतनी बेइज्जती के बाद तो कोई भी ऑफिस आना छोड़ देगा। यानि विजय सिंह से मुक्ति मिल ही जाएगी। चूंकि चैनल में ‘दमवा’ तो ‘बाबू जी’ का ही लगा है न तो विजय सिंह कैसे चैनल छोड़ दें। बहरहाल, विजय सिंह सुबह ऑफिस आते रहे और शाम को घर वापस जाते रहे। एक दिन अचानक फिर आदेश हुआ और विजय सिंह की घोड़ा-गाड़ी रखवा ली गई। केबिन खाली करने का फरमान सुना दिया गया। कहा गया कि ऑफिस में बैठना ही है तो विजय सिंह बेसमेंट में बिहार डेस्क पर देख लें अगर खाली हो तो कोई जगह देख कर बैठ जाएं।
विजय सिंह के सब्र का पैमाना शायद छलक गया। बात बाबू जी तक पहुंची। क्रोध से बाबू जी की बूढ़ी आंखें अंगारे उगलने लगीं। बाबू जी बोले- हम जमींदार, हमारा मेहमान जमींदार, जमींदार बेसमेंट में डेस्क पर बैठेगा…गुप्ता पगला गया है क्या। टेंटुआ दबा देंगे…। फिर रविवार को बाबू जी के बंगले पर कचहरी लगी। तब कहीं जाकर विजय सिंह की घोड़ा-गाड़ी और केबिन बचा।
विजय सिंह हैं तो आज भी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन चांपना न्यूज चैनल्स, लेकिन थम्ब स्टैम्प…केवल थम्ब स्टैम्प। उनके पास न किसी को डायरेक्ट करने का अधिकार है, न ही किसी को एडमिनिस्टर्ड करने का अधिकार। …
…जारी…
चैनल का नाम और चैनल के चरित्रों का नाम बदल दिया गया है. घटनाक्रम पूरी तरह सही है.
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