भांड सीईओ का चांपना न्यूज के उत्तराखण्ड चैनल में कुछ ज्यादा ही इंट्रेस्ट रहता है। उत्तराखण्ड के एक नेता सशंकितजी से भांड का अच्छा-खासा रिश्ता है। कहा तो यह भी जाता है कि सशंकितजी ने अपने काले हाथों की गाढी़ कमाई का एक बड़ा हिस्सा चांपना न्यूज में इनवेस्ट कर रखा है। चांपना न्यूज में सशंकितजी की हर खबर चलती है। सशंकितजी को सिर दर्द हुआ तो चांपना में ब्रेकिंग, सशंकितजी को लघुशंका बार-बार आ रही है तो चांपना न्यूज में ब्रेकिंग, सशंकितजी खुश दिख रहे हैं तो ब्रेकिंग और अगर सशंकितजी को खुलकर दस्त आ गए तो सशंकितजी का टिक-टैक तो चलेगा ही है। सशंकितजी की ऐसी-वैसी खबरों से देहरादून के ब्यूरो और उत्तराखण्ड डेस्क की ऐसी-तैसी लगी रहती है।
भांड सीईओ भले ही दुनिया के किसी कौने में रहे लेकिन उत्तराखण्ड से कौन सी खबर आई कौन सी खबर नहीं आई, कितनी चली, किस फॉर्मेट में, फोनो हुआ या नहीं हुआ, हुआ तो फोनो किसने दिया, फोनो में क्या बोला, सशंकित के बारे में तो कुछ ऐसा-वैसा तो नहीं बोला-ये सब तमाम और इनके अलावा भी ढेर सारी जानकारी भांड, उत्तराखण्ड डेस्क पर मौजूद अपने ‘खास सूत्र’ से लगातार हासिल करता रहता है। उत्तराखण्ड डेस्क पर मौजूद इसी खास सूत्र की बदौलत भांड यूपी-उत्तराखण्ड चैनल के हैड गज गोबर सिंह की पुंगी भी अक्सर बजाता रहता है। लानचूसी और भड़ैती में भांड और गज गोबर सिंह सहोदर जैसे हैं। ताकतवर के सामने पूंछ हिलाने और दांत निपोरने में गज गोबर सिंह, भांड से थोड़ा आगे हैं। सो भांड के आगे गज गोबर सिहं की हालत पूछ हिलाने और दांत निपोरने की ही रहती है, और जब से लौंडा मालिक मयंक ने गज गोबर सिंह को भरी मीटिंग में सरे आम कई श्रेष्ठ श्लोकों के साथ ‘दलाल’ की ‘पदवी’ से सुशोभित किया है, तब से तो गज गोबर सिंह के पास भांड के आगे पूछ हिलाने और दांत निपोरने के अलावा दूसरा चारा बचा भी नहीं है।
बेचारा गज गोबर सिंह, ओहदा चैनल हैड का और जिम्मेदारी लण्ठई की। भांड हो या लौंडा मालिक लखनऊ आय-जाएंगे तो उनके आने-जाने, खाने-पीने और रहने-सहने की सभी ‘सुख सुविधाओं’ की जिम्मेदारी बेचारा गज गोबर सिंह ही उठाएगा। इसके बावजूद भांड झण्डेवालान में लौंडा मालिक मयंक के साथ जब गज गोबर सिंह का सामुहिक (मानसिक) बलात्कार करता है तो गज गोबर सिंह दर्द से रोता-चिल्लाता नहीं है बस खींसें निपोर के रह जाता है। भांड और लौंडा मालिक समझते हैं कि गज गोबर सिंह को बलात्कार से मजा आ रहा है, दोनों अगली बार गज गोबर सिंह की और ज्यादा जोर से रगड़ते हैं।
लखनऊ में गज गोबर सिंह ने सांवलीसलोनी को को रिपोर्टर अपॉइंट करवाया। ज्वाइनिंग से पहले मीडिया की मजबूती और मजबूरियों की जानकारी बारीकी से ली-दी गई। मीडिया में समझौते, सूझ-बूझ और चाल-चलन की शिक्षा-दीक्षा भी हुई। सांवलीसलोनी ने भी जोरदार तरीके से काम शुरू किया। गज गोबर सिंह भी उसकी खूब तारीफ करता। इस बीच लौंडा मालिक मयंक और भांड सीईओ का कई बार लखनऊ आना जाना हुआ। उम्मीद के खिलाफ तीखे सांवलीसलोनी ने लौंडा मालिक और भांड को कभी घास नहीं डाली। सांवलीसलनी की बीट छीन ली गई। मार्केटिंग की स्टोरी करने का हुक्म सुना दिया गया। लौंडा मालिक मयंक चाहता था कि सांवलीसलोनी की ड्यूटी कुम्भ के मीडिया सेंटर में लगा दी जाए। जहां वो भांड सीईओ के सानिद्धय में मीडिया की वो सभी बारीकियां ठीक से सीख ले जिन्हें गज गोबर सिंह नहीं सिखा पाया था।
कुम्भ के मीडिया सेंटर का सरकारी पैसा जल्द से जल्द से वसूलने के लिए भी गज गोबर सिंह और भांड ने सांवलीसलोनी से कहा कि वित्तल जी के सम्पर्क में रहो और मैटर को ठीक से परस्यु करो। जो भी हो, जैसे भी पेमेंट तुरंत निकलवानी है। किसी ने मीडिया सेंटर के खिलाफ रिट डाल दी तो पैसा फंस जाएगा। सांवलीसलोनी के जितने तीखे नैन नख्श थे उससे तेज उसकी चाल। सांवलीसलोनी ने चांपना में छुट्टी की एप्लीकेशन दी और दूसरे चैनल में इंटरव्यू। इससे पहले कि गज गोबर सिंह, भांड या लौंडा मालिक कुछ कर पाते, सांवलीसलोनी फुर्र हो गई। सांवलीसलोनी तो फुर्र हो गई लेकिन गाज गज गोबर सिंह पर गिरी। अब बेचारे गज गोबर सिंह को गाहे-बगाहे भांड और लौंडा मालिक खरी-खरी सुनाते हैं, और बेचारा गज गोबर सिंह बस खीसें निपोरता है और अपने काम पर लग जाता है।
बात तो हम सशंकितजी की कर रहे थे की लेकिन बीच में इस किस्से का जिक्र भी जरूरी था। तो सशंकितजी की भूमिका चांपना न्यूज चैनल में ठीक वैसी ही है जैसे इंदौर के वर्गीय जी की थी। वर्गीय जी के तो बरखुरदार चांपना में बतौर ओहदेदार बैठा करते थे, लेकिन सशंकितजी चांपना न्यूज के साइलेंट भामा शाह हैं। वर्गीय जी का इंट्रेस्ट केवल मध्यप्रदेश में था और सशंकितजी का उत्तराखण्ड में है। वर्गीय जी के लगभग दो करोड़ चांपना ने चट कर लिए। बेचारे वर्गीय जी कुछ नहीं कर पाए। अब सशंकितजी कितने करोड़ से हाथ धो बैठेंगे, यह लोक सभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा। फिल्हाल सशंकितजी के इशारे पर ऐसी स्टोरीज ही टेलीकास्ट होती हैं जो सिर्फ और सिर्फ सशंकितजी के हित साधती हैं। कई स्टिंग भी सशंकितजी के इशारे पर हुए हैं। ये बात अलग है कि वो टेलीकास्ट नहीं हुए या कुछ सैटिंग-गैटिंग हो गई। कुछ ऐसे भी स्टिंग हैं वो तब टेलिकास्ट होंगे जब ‘उपयुक्त’ समय आ जाएगा।
सशंकितजी के इंट्रेस्ट्स और हॉवीज़, भांड के इंट्रेस्ट्स और हॉवीज़ से काफी मेल खाते हैं। सशंकितजी और भांड के बीच का एक सोर्स भी ‘कॉमन’ है। सशंकितजी ने अक्टूबर 2012 में भांड को एक ‘दुधारू लीड’ दी। ये ‘दुधारू लीड’ देहरादून के एक बिल्डर के विषय में है, इसलिए कि इस बिल्डर को बार-बार दुहने के निर्देश जारी होते रहते हैं। भांड ने तुरंत यूपी-उत्तराखण्ड चैनल को आदेश दिए कि किसी भी सूरत में इस ‘दुधारू लीड’ को ‘दुधारू डील’ में परिवर्तित किया जाए। देहरादून ब्यूरो को खास दिशा-निर्देश दिए गए। बिल्डर का स्टिंग करवाया गया। साइट पर बाइट्स और विजुवल्स भी लिए गए और साथ में तीन किश्तों में कुछ लाख रुपये भी। स्टिंग भांड के पास और पैसे एकाउंट में। जब जरूरत होती है तब भांड इस बिल्डर को दुह लेता है। भांड के इस दुधारू खेल की जानकारी लौंडा मालिक और चांपना न्यूज के बड़े मालिक को भी है।
भांड़ ने कुम्भ में लगे मीडिया सेंटर में भी खूब गुल खिलाए हैं। दो लाख रुपये सिर्फ अटैच लेट-बाथ बनवाने में खर्च कर दिए। परमातम के सीईओ की सीक्रेसी भी कोई चीज़ होती है ना। कॉमन लेट-बाथ में वनडोम विसर्जन उचित नहीं था। सीईओ के वनडोम विसर्जन के लिए सेपरेट लेट-बाथ जरूरी था। वनडोम विसर्जन के लिए भले ही दो लाख खर्च हुए लेकिन उसकी भरपाई वीडिया सेंटर की सीलिंग से कर दी गई। सेंटर की टीन के नीचे सीलिंग नहीं, सीलिंग जैसा सीलिंग के रंग का मजबूत कपड़ा तनवा दिया गया। सीलिंग की जगह ये कपड़ा डेढ़ महीने तक पूरी मजबूती से तना रहा। परमातम की इज्जत पर आंच भी न आने दी। आखिरी दिनों में वो तो बारिश ही इतनी जोर से आई कि जब टीन नहीं झेल पाई तो बेचारा कपड़ा क्या करता। सो डिब्बे नुमा कम्प्यूटर कागज़ की किश्ती की तरह तैरने लगे। सब दिखावटी थे, इसलिए कुछ खास नुकसान भी नहीं हुआ। कपड़ा फिर भी टस से मस न हुआ। सीलिंग की जगह, सीलिंग की तरह तना ही रहा।
भांड की भड़ैती के कुछ राज़ भोपाल में भी हैं। भोपाल के झकास तिवारी और भांड के बीच दोस्ती सबब एक गोल्डन चिप है। कहा जाता है कि इस ‘गोल्डन चिप’ में पापा मालिक और लौंडा मालिक की अलग-अलग ऐशगाहों में अलग-अलग नीली-पीली तस्बीरें भी हैं। इन नीली-पीली तस्बीरों के साझीदार सीईओ भांड और झकास तिवारी दोनों हैं।
…जारी…
चैनल का नाम और चैनल के चरित्रों का नाम बदल दिया गया है. घटनाक्रम पूरी तरह सही है.
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