Hareprakash Upadhyay : जनार्दन मिश्र का कविता संकलन पढ़ रहा हूँ- 'मेरी एक सौ एक कविताएं'। वे बहुत आत्मीय कवि हैं। समकालीन कविता के चर्चित हस्ताक्षर। आरा में रहते हैं। प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े हैं। मैं जब इंटर में पढ़ रहा था और कविताएं लिखनी-पढ़नी शुरू की थी, तब से उन्हें जानता-पढ़ता रहा हूँ। उन दिनों जब कहीं किसी गुमनाम पत्रिका (नामचीन पत्रिकाएं छापती ही नहीं थीं) में मेरी कविता देख लेते, तो कहीं मिलते दूर से ललकारते हुए उत्साहवर्द्धन करते…. ''ललकरले रह…बहुत बढ़िया तहार कविता आइल बा…।''
मुझे नयी-नयी पत्रिकाओं के नाम पते देते और उनमें कविताएं भेजने को प्रोत्साहित करते। कुछ लोग लिखते हैं और कुछ लोग लेखक बनाते भी हैं। जनार्दन मिश्र में दोनों तरह की क्षमता और प्रतिभा है। जनार्दन जी की कुछ कविताएं मैं आप लोगों को पढ़वाऊंगा। उनके पास अनुभवों की विराट दुनिया है। भौगोलिक लिहाज से नहीं बल्कि चीजों के ब्यौरे देते-देते व्यंग्य में अचनाक कोई पंक्ति वे ऐसी कह देते हैं कि सामान्य यथार्थ विशिष्ट अनुभव से दीप्त हो उठता है। बहुत सारे संस्मरण घर परिवार पड़ोस के और छोटी-छोटी चीजों की यादें उऩकी कविता में अत्यंत आत्मीय तरीके से आयी हैं।
आज के अवसरवादी दौर में जब लोग आत्मीय रिश्ते तक भूलने में नहीं हिचकते, जनार्दन जी ने घर के जोरन तक को भी जिस वैभव और महत्व के साथ कविता में याद किया है- वह दिल को छू लेने वाला है। बहुत लोगों को उनकी कविताएं सतही जान पड़ सकती हैं पर सतही बयानों में भी अगर बहुत ऊँची-ऊँची बातें न हों, जीवन के सहज ब्यौरे हों, तो वे मर्म को छूते हैं। जनार्दन जी कविताओं को पढ़ते हुए गाँव और कस्बे के ठेठ आदमी को सोचते, जीते, हँसते, गाते, गुस्सा करते, शिकायत करते और रोते हुए हम पाते हैं। अपने गाँव-जवार के चित्र पाते हैं। आप जनार्दन जी से कभी बात करें, फोन पर भी तो उनकी आवाज में एक आत्मीयता लहराती हुई आपको महसूस होगी। मेरा भरोसा ना हो तो आप खुद उनसे बात करें…09771464414
युवा साहित्यकार और पत्रकार हरे प्रकाश उपाध्याय के फेसबुक वॉल से.