इस देश में एक आदमी को न्याय पाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है इसका एक जीता-जागता उदाहरण हैं एक परेशान व्यक्ति जिसने खुद को न्याय मिलता न देख जज तक की शिकायत कर डाली ये झारखंड के जमशेदपुर की बात है।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायधीश महोदय,
झारखंड उच्च न्यायालय, रांची।
विषय : न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा खामखा अपमानित और परेशान करने के संबंध में।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि जमशेदपुर न्यायालय में पदस्थापित प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी श्री आर एस मिश्रा, थाना द्वारा सीज किये गये मेरी पत्नी के मोबाइल और कलाई घड़ी के रिलीज आर्डर देने में, मुझे खामखा परेशान कर रहे हैं और कुछ अर्ज करने पर अपनी कुर्सी का रौब दिखाकर अपमानित करने पर उतारू हो जाते हैं। मैं 4 दिसंबर से उनके कोर्ट में अर्जी देकर दर्जनों बार जा चुका हूं, लेकिन वे हर बार कुछ न कुछ नुस्ख निकालकर मुझे वापस कर देते हैं और बहुत कड़े तेवर में नाकारात्मक भंगिमा बनाकर धमकी देने लगते हैं। उनके रवैये से त्रस्त और नाउम्मीद होकर अंततः मुझे आपसे गुहार लगानी पड़ रही है।
मेरे घर में घुसकर नशे में धुत एक ड्रग एडिक्ट्स ने मेरी पत्नी उशा देवी का मोबाइल और कलाई घड़ी चुरा लिया था, जिसे हम लोगों ने पकड़ लिया और उसे सीताराम डेरा थाना ले गये तो पुलिस ने जबर्दस्ती सामान सीज कर लिया और कहा कि प्राथमिकी दर्ज कर चोर को जेल भेज रहे हैं। अतः आपको सामान कोर्ट से रिलीज कराना होगा। केस नं. है 179@13 और जी आर केस नं. है 4260@13.
मैं जब आवेदन लेकर कोर्ट पहुंचा तो पहले ही दिन मुझे लौटाते हुए दंडाधिकारी ने कह दिया कि मैं वकील के माध्यम से अर्जी दूं। वकील करके जब अर्जी दी तो सामान की रसीद लाने का फरमान सुनाया गया। रसीद न होने की स्थिति में शपथ पत्र देने को कहा गया। शपथ पत्र जब वकील ने बनाया तो तीन बार उसमें सायास नुस्ख निकालकर लौटाया गया। कई दिनों बाद कहा गया कि थाने से नो ऑब्जेक्शन लेकर आयें। सीतारामडेरा थाने का थानेदार ने भी हैकड़ी दिखाकर तीन दिनों बाद रिपोर्ट भेजी। दंडाधिकारी ने अब 4 हजार के सामान के लिए 8 हजार की कीमत तय कर दी और कहा कि दो जमानतदार पेश करें जो कम से कम 16-16 हजार के हों। मैंने यह औपचारिकता भी पूरी की।
इस बीच वकील ने भी मेरा खूब दोहन किया। चार हजार के सामान के लिए मैं कम से कम दो हजार खर्च कर चुका हूं और ऊपर से दर्जनों बार मैंने कभी थाने की तो कभी कोट की दौड़ लगायी है तथा अंतहीन मानसिक व शारीरिक कष्ट उठाये हैं। वकील आज कोर्ट नहीं आया तो मैंने खुद से फाइनल रिलीज आर्डर लेने के लिए शियूरिटी बांड जमा किया। घंटों इंतजार के बाद जब मेरी बारी आयी तो दंडाधिकारी ने फटकारते हुए मुझे बैरंग लौटा दिया और कहा कि जब वकील नहीं है तो मैं आपको आडेंटिफाई कैसे करूं। जाइए, वकील के साथ आइए।
यहां मैं विनम्रता पूर्वक निवेदन करना चाहूंगा कि मैं एक लेखक हूं और 33 वर्षों से मेरी रचनायें देश के सारे पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। बड़े-बड़े प्रकाशकों ने मेरी किताबें छापी हैं। तात्पर्य यह कि मैं किसी पहचान का मोहताज नहीं हूं, लेकिन इस आधार पर मैं कोई विशेषाधिकार (प्रिविलेज) की मांग नहीं कर रहा। लेकिन अब मुझे सामान भले न वापस मिले, मैं इसके लिए किसी वकील की मदद नहीं लूंगा। वकील मुझे काफी लूट चुका अब तक।
महोदय, यह कैसी न्याय व्यवस्था है? कैसे हम पुलिस, न्यायमूर्ति और दंडाधिकारी को अपना हितैषी और संरक्षक मानें? मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं जैसे ये सारे ओहदे आम आदमी को लूटने और जलील करने के लिए बनाये गये हैं। जब मेरे जैसे आदमी को एक मामूली से काम के लिए इस तरह प्रताडि़त होना पड़ रहा है तो आम आदमी को कितना कुछ चुपचाप सह जाना पड़ता होगा।
योर ऑनर, क्या इस पूरे प्रकरण में मैं आपसे न्याय और उचित कार्रवाई की कोई उम्मीद कर सकता हूं?
आपका विश्वासभाजन
जयनंदन
जमशेदपुर – 9431328758.