उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती बाबा साहब की अनुयायी हैं। बौद्ध धर्म को मानती हैं। अन्य धर्मो का भी वह सम्मान करती है, लेकिन मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारों में कभी नहीं जाती। यह उनका निजी मामला है, यहां तक की वह समाज अपने अधीन काम करने वाले नेताओं, नौकरशाहों से भी वह दूरी बना कर रखती हैं। उनके यहां होने वाले किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेती हैं। पिछले आठ-दस साल का इतिहास उठा कर देखा जाए तो वह मात्र दो बार किसी वैवाहिक कार्यक्रम में दिखाई दीं।
एक करीब तीस वर्ष पूर्व अपने खास सिपासलाहर सतीश मिश्र की बेटी और दूसरी भाजपा नेता कलराज मिश्र के बेटे की शादी में उन्हें तब देखा गया था, जब प्रदेश में भाजपा-बसपा की मिलीजुली सरकार थी। माया ने भाजपा के दिग्गज नेता लाल जी टंडन से राखी बंधवाई लेकिन वह रिश्ता भी उन्होंने ज्यादा लंबे समय तक नहीं निभाया।
बसपा सुप्रीमो मायावती स्वभाव से धाकड़ और निडर होकर चुनौतियों का सामना करने वाली महिला लगती हैं, लेकिन अंधविश्वास उनके भी भीतर घर किए हुए है। इसी अंधविश्वास ने उन्हें एक बार फिर पांच कालीदास मार्ग पर मुख्यमंत्री आवास से आधा किलोमीटर की दूरी पर (उनको पूर्व मुख्यमंत्रियों के कोटे से आवंटित सरकारी आवास) 13 माल एवन्यू की तरफ रुख करने को मजबूर कर दिया है। माया का अधिकांश समय अब यहीं गुजरता है। वह चुनाव की सभी तैयारियों का संचालन यहीं से कर रही हैं।
कारण, 2007 के विधान सभा चुनाव में यहीं पर रहते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश की राजगद्दी मिली थी। 13 नंबर माया को इतना भाया कि उन्होंने सिंहासन हासिल करने का दिन भी 13 मई 2007 मुकर्रर किया। इसे संयोग कहा जाए या कुछ और लेकिन हकीकत यही है कि अबकी माया ने तमाम मुश्किलों का सामना किया हो परंतु बहुमत को लेकर उन्हें कभी कोई आंख नहीं दिखा पाया। 2012 के विधान सभा चुनाव में माया के लिए उनका 13 नंबर बंगला कितना लकी रहेगा, यह देखने वाली बात होगी। वैसे कहा यह भी जा रहा है कि माया अपने मंत्रिमंडल में जो सफाई अभियान चलाए हुए हैं उसके पीछे भी उनका अंधविश्वास काम कर रहा है।
उनको किसी ने बता रखा है कि कौन सा मंत्री उनके लिए शुभ है और किसको साथ लेकर चलने से उन्हें परेशानी हो सकती है। शुभ-अशुभ के चक्कर में फंसी माया सतीश मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं को अपना बगलगीर बनाए हुए हैं। दावा किया जाता है कि इन दोनों की 2007 में बसपा को सत्तासीन करने में महत्वपूर्ण भूमिका थी। खासकर सतीश मिश्र का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला बसपा के लिए रामबाण जैसा रहा। इसको माया ने टोटके की तरह लिया और दोनों नेताओं को साथ लेकर आगे बढ़ती ही जा रही हैं, जबकि नसीमुद्दीन के खिलाफ भी वैसे ही आरोप लग रहे हैं जैसे आरोप में वह अपने कई मंत्रियों को हटा चुकी हैं।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ‘माया’ मैग्जीन के ब्यूरो प्रमुख रह चुके हैं. वर्तमान में ‘चौथी दुनिया’ और ‘प्रभा साक्षी’ से संबद्ध हैं.