चाहे सोशल मीडिया हो या मेन-स्ट्रीम, पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका में दोनों ही पर इनदिनों दंगे भड़काने के आरोप लग रहे हैं। इतना ही नहीं, कुछ देशों में इसका जवाब भी मीडिया से ही देने की कोशिश जारी है। इस्लाम पर बनी फिल्म से मचा हंगामा अभी ठंढा भी नहीं पड़ा है कि इस बीच फ्रांस की एक पत्रिका में पैगंबर मोहम्मद के मज़ाक उड़ाते कार्टून छापे जाने को लेकर दुनिया के कई देशों में हिंसा की आशंका बढ़ गई है. इन देशों में एहतियाति क़दम उठाए जा रहे हैं.
जहां एक ओर अरब मीडिया पैगंबर पर छपे कार्टून की खबरों को संभल कर जारी कर रहा है वहीं ट्यूनिशिया में मामला भड़कने के डर से सभी फ्रांसीसी स्कूल बंद कर दिए गए हैं. समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक फ्रांस के खिलाफ़ हिंसा भड़कने के डर से दुनिया भर के 20 से ज्यादा अरब देशों में फ्रांसीसी दूतावास, स्कूल और सामुदायिक-सांस्कृतिक केंद्र बंद कर दिए गए हैं.
मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की फ्रीडम एंड जस्टिस पार्टी ने फेसबुक के अपने पन्ने पर कार्टूनों की आलोचना करते हुए भड़काऊ प्रदर्शनों से दूर रहने की अपील की है वहीं सल्फी समुदाय के कुछ लोगों की ओर से प्रदर्शनों की अपील को अखबारों ने पहले पन्ने पर नहीं बल्कि दूसरे-तीसरे पन्नों पर ही जगह दी है.
गुरुवार को सौ से ज्यादा लोगों ने ईरान की राजधानी तेहरान में इस मुद्दे पर फ्रांस के दूतावास के सामने प्रदर्शन किया. इसके बाद सुरक्षा कारणों से दूतावास को बंद कर दिया गया. ईरानी मीडिया ने इस मामले को तूल न देने के नज़रिए से संतुलित रिपोर्टिंग की है. ईरान के कट्टरपंथी अखबार जम्हुरियते-इस्लामी ने इस विवाद के लिए अमरीका को ज़िम्मेदार बताया और कहा है कि फ्रांस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दोहरे मापदंड अपनाने की गुनहगार है क्योंकि वो अपने देश में मुसलमानों के इस अपमान के खिलाफ़ प्रदर्शन नहीं नहीं होने दे रहा है. वहीं पाकिस्तान में इस मुद्दे के खिलाफ़ 21 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा की गई है.
इस्लाम पर बनी फिल्म ‘इनोसेंस ऑफ़ मुस्लिम्स’ के विरोध के लिए शुक्रवार का दिन 'पैंगंबर के सम्मान' को समर्पित किया जाएगा. वहीं पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने ईश निंदा के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र की ओर से नियम-कानून बनाए जाने की मांग की है. इस मामले पर हिंसा भड़कने के डर से सिंगापुर ने गूगल से मांग की है कि यू-ट्यूब पर इस फिल्म पर रोक लगा दी जाए.
उधर रूस की मीडिया ने कहा है कि फ्रांस में छपे कार्टूनों के मामले में ईश-निंदा से जुड़ा फैसला अदालतों पर छोड़ देना चाहिए वहीं सड़कों पर हो रहे हिंसक प्रदर्शन सही नहीं हैं. रूसी प्रेस ने ये सवाल भी उठाया है कि डचेज़ ऑफ़ कैंब्रिज की टॉपलेस तस्वीरें छापना अगर विनम्रता के लिहाज़ से सही नहीं है तो यही नियम पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों पर लागू क्यों नहीं होता? (बीबीसी)