Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

बिहार

‘पटना पुस्तक मेला-13’ आया विवाद में, लगा जातिवाद का आरोप

पटना पुस्तक मेला 2013 इस बार आरोपों के घेरे में रहा। आरोपों ने इसे पुस्तकों का मेला कम, व्यवसायिक ज्यादा और जातिवाद का मुखौटा ओढ़े बौद्धिक मठाधीशी का केन्द्र बना हुआ दिखा। 12 नबम्बर से शुरू हुआ मेला 24 नवम्बर को समाप्त हो गया। विवाद फणीश्वरनाथ रेणु और राजेन्द्र यादव के नाम और तस्वीरों को लेकर उठा। यह सवाल पुस्तक मेले के आड़ में जातिवाद के मुखौटे का लेकर था। पुस्तक मेले की परिपाटी रही है कि प्रवेश द्वार और प्रशासनिक भवन पर चर्चित साहित्यकारों को समर्पित किया जाता रहा है। इस बार आयोजक ने साहित्यकारों के नाम के बदले उनकी रचना को तब्बजो दी।
पटना पुस्तक मेला 2013 इस बार आरोपों के घेरे में रहा। आरोपों ने इसे पुस्तकों का मेला कम, व्यवसायिक ज्यादा और जातिवाद का मुखौटा ओढ़े बौद्धिक मठाधीशी का केन्द्र बना हुआ दिखा। 12 नबम्बर से शुरू हुआ मेला 24 नवम्बर को समाप्त हो गया। विवाद फणीश्वरनाथ रेणु और राजेन्द्र यादव के नाम और तस्वीरों को लेकर उठा। यह सवाल पुस्तक मेले के आड़ में जातिवाद के मुखौटे का लेकर था। पुस्तक मेले की परिपाटी रही है कि प्रवेश द्वार और प्रशासनिक भवन पर चर्चित साहित्यकारों को समर्पित किया जाता रहा है। इस बार आयोजक ने साहित्यकारों के नाम के बदले उनकी रचना को तब्बजो दी।
 
प्रवेश द्वार पर फणीश्वरनाथ रेणु की चर्चित रचना 'मैला आंचल' और प्रशासनिक भवन पर चर्चित साहित्यकार राजेन्द्र यादव की रचना 'सारा आकाश' लिखा। वहीं जहां नाटक होता है और कृतिलता मंच जहां कविता पाठ होती है उसका नाम जी. पी. देशपांडे रंगभूमि रखा गया। एक ओर नाम की जगह रचना तो दूसरी ओर रचना की जगह नाम। बौद्धिक लोग इसे पचा नहीं पाये और पचना भी नहीं चाहिये क्योंकि एक ओर नाम नहीं देना और दूसरी ओर नाम देना, आयोजक के बौद्धिक सोच को नंगा करता है। सवाल खड़ा हो गया कि कहीं इसके पीछे, राजेन्द्र यादव का ‘‘यादव’’ होना तो नहीं और फणीश्वरनाथ रेणु का ‘‘पिछड़ा’’ होना।
 
जाति जाती नहीं यह एक बड़ा सवाल है। पटना पुस्तक मेला में जनसंवाद में ‘‘जाति न पूछो साधो की’’ में जम कर शब्दों के बाण चले। इसी में पत्रकार फिरोज मंसूरी ने प्रशासनिक भवन पर चर्चित साहित्यकार राजेन्द्र यादव के नाम के बिना उनके उपन्यास सारा आकाश को लेकर सवाल उठाया। यह सवाल सोशल मीडिया पर जैसे ही फिरोज मंसूरी ने पोस्ट किया। बहस शुरू हो गयी। पटना पुस्तक मेला हर बार की तरह इस बार भी जातिवाद का मुखौटा ओढ़े बौद्धिक मठाधीशी के केन्द्र बनने के सवाल को लेकर सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकारों-राजनेताओं निखिल आनंद, अरूण कुमार, फिरोज मंसूरी संजीव चंदन, मुसाफिर बैठा, पुष्पराज, उपेन्द्र कुशवाहा, अनुप्रिया पटेल सहित कई ने विरोध दर्ज कराते हुए सवाल का जवाब मांगा। लेकिन आयोजक के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
 
देखा जाये तो पटना पुस्तक मेला, पुस्तकों के जमावड़े के आड़ में शुद्ध रूप से आयेाजक के लिए आर्थिक लाभ का केंद्र बना हुआ दिखा। यह आरोप, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से लगता आ रहा है। मुद्दे पर पत्रकार लेखक पुष्परज सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि, मीडिया की आँखों में क्या हो गया है? जिसे पुस्तक मेला कहकर प्रचारित किया जा रहा है, उसके प्रवेश द्वार पर बड़े बैनर में बोल्ड अक्षर में लिखा है- भारतीय स्टेट बैंक। इसके नीचे छोटे बैनर में लिखा है- पटना पुस्तक मेला। भारतीय स्टेट बैंक का मेन ब्रांच भी गांधी मैदान के दायें बाजू में स्थित है। हमें प्रथम दृष्टया इस द्वार को देख कर मगजमारी करनी पड़ी कि हम बैंक की तरफ जा रहे हैं या बैंक के द्वारा प्रायोजित किसी कथित मेला में? बैंक तो बाजार और विपणन का ज्ञान देते हैं। गांधी मैदान में बाजार है, पूँजी का खेला है, न पुस्तक है ना मेला है। पुस्तक-संस्कृति, पाठक-संस्कृति को बाजार संस्कृति में बदलने के पूंजीवादी-उपक्रम का मैं विरोध करता हूँ। रियायती दर में पटना जिला-प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराये गए गांधी मैदान में पुस्तक स्टॉल लगाने वाले गरीब पुस्तक विक्रेताओं और छोटे प्रकाशकों को किसी तरह की रियायत नहीं दी गयी, जिसकी वजह से प्रगतिशील साहित्य, सदन पटना जैसे प्रतिष्ठित चर्चित स्टॉल इस कथित पुस्तक मेला में प्रवेश से वंचित रह गए।
 
सच है कि उंची कीमत पर स्टाल मिलने से, पटना के छोटे प्रकाशक मेले से वंचित रह गये। शिक्षा दिवस के तहत सरकारी सहयोग से आयेजित पटना पुस्तक मेला बाहरी बड़े प्रकाशकों का केंद्र बना रहा। पुष्पराज के तेवर में दम है। आखिर यह कथित पुस्तक मेला किसके लिए? जहाँ राज्य के छोटे प्रकाशक की भूमिका ही नदारत रही। पूरी तरह पूंजी का खेल तो नहीं रहा। हां, नहीं तो क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट से अलविदा कहने के बाद उनका बैनर चित्र के साथ प्रशासनिक भवन के पास क्यों लगता? जबकि सचिन का संबंध साहित्य से नहीं है। यह सब जानते हैं। वरिष्ठ पत्रकार निखिल आंनद कहते हैं, बड़ी बात है कि पुस्तक मेला आयोजन से जुड़े मठाधीशों ने साहित्य के दमित नायकों के नाम और तस्वीरों के उल्लेख से भी परहेज किया है। अलविदा सचिन है लेकिन राजेन्द्र यादव और ओमप्रकाश बाल्मिकी ने दुनिया से अलविदा कहा तो नैतिक तौर पर भी उनके नाम और तस्वीरों का श्रद्धांजलि स्वरूप न होना चिंता की बात है। जाति भारतीय समाज की एक बड़ी सच्चाई है जिससे शायद ही कोई इन्कार करे। वैसे यह साहित्य के नाम पर जातिवादी खेल की ओर इशारा कर रहा है। बदलते वक्त में बौद्धिक ठेकेदार अब बौद्धिक परदेदारी का खेल खेलने में व्यस्त हैं। आईये मुखौटा-मुखौटा खेलें।
 
दलित-पिछड़ों की लड़ाई लड़ने वाली राजनेत्री अनुप्रिया पटेल ने मामले को शर्मनाक और अफसोसजन बताया, अपने पोस्ट में लिखती हैं कि, इन ब्राह्मणवादी जातिवादियों को शर्म नहीं आती है कि क्या कहें। हमारे नायकों को ये सामंती मानसिकता वाले लोग मरणोपरांत भी सम्मान नहीं देना चाहते हैं और जीते-जी तो इनका वजूद संघर्ष की बुनियाद पर ही टिका रहता।
 
जातिवाद के आरोप के घेरे में इस बार आये पुस्तक मेले के लिए विवाद कोई नया नहीं हैं। आकड़े बताते हैं कि मेले में ज्यादातर द्विज लेखकों को ही सम्मान दिया जाता रहा है। वर्ष 2000 से अब तक दिये गये 34 सम्मान में दो अल्पसंख्यक, छह दलित-पिछडे़ और 16 सवर्ण जाति से हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि दलित-पिछडे लेखकों से आयोजकों को परहेज ही रहा है? हां एक आधे दलित-पिछडों को जगह देकर बस खानापूर्ति कर लेते हैं।
 
पुस्तक मेले में जातिवाद को लेकर उठे बवाल पर जहां सोशल मीडिया में जम कर बहस चली। सवर्ण मानसिकता के खिलाफ आवाज उठी। ऐसे में बिहार से प्रकाशित अखबारों ने एक शब्द भी जाया नहीं किया, जबकि हर रोज रिपोर्ट छपती रही। साफ शब्दों में एक बार फिर से भारतीय मीडिया का सवर्ण चेहरा ही सामने आया, ऐसा नहीं कि पुस्तक मेला को लेकर सोशल मीडिया पर जो चला उससे बिहार के अखबार और पत्रकार अछूते थे।
 
                                  लेखक संजय कुमार इलेक्टॉनिक मीडिया से जुड़े हैं. इनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को 36 घंटे के भीतर हटाने के मामले में केंद्र की ओर से बनाए...

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

Advertisement