: क्या निहार कोठारी बूढ़े नहीं होंगे? : राजस्थान पत्रिका ने राजस्थान में अपने 50 साल से अधिक उम्र के 23 सीनियर पत्रकारों के तबादले किए हैं। सभी स्थानांतरण राजस्थान से बाहर किए गए हैं। ज्यादातर को तो ऐसी जगह भेजा है जहां संस्थान का दफ्तर ही नहीं है। चर्चा है ऐसी एक और लिस्ट आने वाली है। पहली लिस्ट में चीफ सब एडिटर उदयपुर से सुधीर भटनागर, बांसवाड़ा से रमेश ठाकुर, जोधपुर से सुधीर गोस्वामी, कोटा से जितेन्द्र शर्मा, सीकर से राजेद्र सिंह जादौन हैं। ये सभी वे लोग हैं जिन्होने पत्रिका को बनाने में अपनी जवानी होम कर दी।
पत्रिका के लिए 20-25 साल जमकर काम किया, ईमानदारी से काम किया, पत्रिका की साख को बढाया। अब जब उन्हें अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए एक संस्थान की सबसे अधिक जरूरत है, बच्चे बड़े हो रहे हैं, परिवार को उनकी जरूरत है, यह बेरुखी उन्हें साल रही है। सही है, यह लोग बूढे हो गए हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या निहार कोठारी हमेशा जवान रहेंगे। बहरहाल इतना बड़ा साम्राज्य खड़े करने के लिए निर्मम होना ही पड़ता है लेकिन सवाल यह भी है कि पत्रकारों की नई पौध अपने भविष्य के लिए क्या उम्मीद रखे। पत्रकारिता में यही सब झेलने के लिए आएं? नई प्रतिभाओं को पत्रकारिता में क्यों आना चाहिए? ना पूरा पैसा है, ना सुरक्षा और न मिशन चलाने का संतोष…ऊपर से षड्यंत्र, प्रताडऩा।
पत्रिका को योग्य और अनुभवी पत्रकारों की नहीं, योग्य एवं अनुभवी चाटुकारों की जरूरत है। गौर करें, ज्यादातर रेजीडेंट एडिटर क्या अपनी योग्यता के दम पर पद पर बने है। पत्रिका में चमचागिरी का दौर चल रहा है। पत्रिका अब पहले वाला पत्रिका नहीं रहा। अब यहां पुराने और ईमानदार साथियों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती है। पत्रिका एक अख़बार न होकर कर्मचारियों का शोषण करने का अड्डा बन गया है। राजस्थान पत्रिका में पुराने कर्मचारियों को प्रताड़ित करने के लिए नया से नया फंडा अपनाया जा रहा है।
कुछ वरिष्ठों को विभिन्न संस्करण में संपादक गुटबाजी का शिकार बना रहे हैं। बताया जा रहा है कि पत्रिका का मध्य प्रदेश प्रोजेक्ट में काफी पैसा लगा है। इसकी वसूली के लिए अब कर्मचारियों की गाढ़े पसीने की कमाई को चूस रहा है। पत्रिका में पहले अवकाश का नकदीकरण होता था। वह बंद कर दिया गया, बोनस बंद कर दिया गया है। वेतन वृद्धि भी संपादक अपने चमचों को ही दिला देते हैं। हर बार सबसे पहले वेतन आयोग की सिफारिशें लागु करने वाले पत्रिका ने सिफारिश लागू नहीं की और नहीं देने के लिए कोर्ट में और चला गया।
बहरहाल, मान लिया कि अखबार निकालना बनिए की दुकान हो गया है, तेल, साबुन, पेस्ट बेचने और अखबार बेचने में अंतर नहीं रहा तो फिर गुलाब कोठारी उपदेश क्यों देते हैं, धंधे पर लात पड़ती है तो मीडिया की स्वतंत्रता की दुहाई क्यों देते हैं…क्यों कहते हैं न्यूज पेपर विद साउल… …बड़ी बड़ी बातें करने वालों, पेड न्यूज वालों को तो शर्म नहीं है। क्यों पेड न्यूज की मलाई खाने वाले मालिक पत्रकारों से उम्मीद करते हैं कि वे और उनके परिवार को सूखी रोटी भी ना मिले। आज नहीं कल पब्लिक सब जान जाएगी तो ये उपदेश देने वाले अपना असर खो देंगे। लोग इन पर थूकेंगे, सड़े अंडे टमाटर फेंकेंगे… और जो कुत्ते जैसी हालत इन्होंने अपने पत्रकारों की कर रखी है, इनकी भी हो जाएगी।
नोट- केवल पांच नाम ही पता चल सके हैं। आप पत्रिका जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर में अपने जानकारों, सोर्स से पुष्टि कर कंटेंट रिच कर सकते हैं। मेरा नाम कृपया ना दें। मैं पत्रिका में कम कर चुका हूँ, मेहरबानी होगी.
एक पत्रकार के मेल पर आधारित