: पत्रकार की बहादुरी पर भारी बर्बादी : ग्वालियर का एक पत्रकार बदमाशों की करतूत के चलते पाई-पाई को मोहताज हो गया। न तन ढकने को कपड़े बचे हैं और न ही खाने को घर में अनाज ही बचा है। बदमाश इसका पत्रकार को घर तो उलीच कर ले ही गए। भागते-भागते घर को फूंक भी गए। हालांकि बदमाशों से मुकाबला करने के लिए पत्रकार ने अपनी लाइसेंसी बंदूक से दनादन फायर भी ठोके पर बदमाश अंधेरी गलियों में फुर्ती से विलीन हो गए।
मुरैना से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र दैनिक हिंदुस्तान के ग्वालियर संस्करण के स्थानीय संपादक सुरेश शर्मा बदमाशों की इस हरकत का शिकार बने। बात रविवार रात की है। तानसेन नगर में रहने वाले सुरेश शर्मा के घर में घुसे बदमाशों ने सबसे पहले उन कमरों को बाहर से बंद किया, जिसमें सुरेश शर्मा और उनके बच्चे अलग-अलग सो रहे थे।
इसके बाद क्या हुआ यह तो आज तक पुलिस भी पता नहीं लगा पाई है पर जब खटर-पटर की आवाज सुन सुरेश शर्मा जागे तो उन्होंने जाना कि घर के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने कमरे का दरवाजा खोलना चाहा तो पता चला कि दरवाजा बाहर से बंद है। इसके तुरंत बाद इनका माथा ठनका। इन्होंने अपनी बंदूक लोड की। खुले हिस्से में पहुंचे और फायर ठोक दिए।
आसपास रहने वाले फायर की आवाज सुनकर जागे तो घर में घुसे बदमाश भाग निकले। पड़ोसियों ने सुरेश शर्मा के घर में घुसकर उनके कमरे का दरवाजा खोला। उन्हें बाहर निकाला। घर के बाकी कमरों का सीन देखकर सुरेश शर्मा के आंसुओं ने थमने का नाम नहीं लिया। बदमाशों ने पूरा घर फूंककर रख दिया। रसोई का पूरा सामान खाक था तो घर के सभी सदस्यों के कपड़े राख हो चुके थे। कपड़े सिर्फ वही बचे जो तन पर थे। दूसरे दिन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए नई ड्रेस खरीदना पड़ी तो कापियां-किताबें भी नई खरीदना पड़ी। दो दिन तो घर में चूल्हा नहीं जला। न तो अनाज बचा था न ही बर्तन।
वो तो धन्य हो जिला प्रशासन, जिसने संवेदनशीलता दिखाते हुए रेडक्रास के फंड से दस हजार रुपए दिए तो प्रेस क्लब ग्वालियर भी पसीजा और पच्चीस हजार रुपए नकद दिए। इसके हालांकि सुरेश शर्मा की घर गृहस्थी फिर से पटरी पर आने की कोशिश कर रही है पर एक पत्रकार ने किस तरह पाई-पाई जोडक़र गृहस्थी को संवारा था, यह सोच-सोचकर सुरेश शर्मा की आंखों से आज भी आंसू निकलने लगते हैं।
ग्वालियर से प्रफुल्ल नायक की रिपोर्ट
अमित गर्ग. जयपुर. राजस्थान.
September 8, 2010 at 11:47 am
गल्तियां जो हमने कीं वो माफ कर देना. मन में सच्चाई का विश्वास भर देना. रातें गुजरती हैं आंखों ही आंखों में. कुछ फूल ढूंढ़ते हैं कांटों से भरी साखों में. सांसों की धरती पे हमरी पाप ना पर्वत भारी. दाता सुन ले. मौला सुन ले…
paresh misra gwalior
September 9, 2010 at 10:49 am
suresh bhai, bakai bahut bura hua. is sankat ke ghadi me hm aapke saath hai.
ramdeo kesri itkhori,chatra, jhharkhand
September 10, 2010 at 12:30 pm
dukh ki is time me hum bhi aapke sath hai