संत शरण जी के बारे में जो कुछ छपा है, उससे मैं सहमत नहीं हूं : भड़ास4मीडिया डाट काम पर दैनिक जागरण, रांची के संपादक संत शरण अवस्थी जी के बारे में जो कुछ भी प्रकाशित हुआ है, उसके तथ्यों से मैं सहमत नहीं हूं। संत शरण जी युवा पीढी के वैसे पत्रकारों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो चुनौतियों को अवसर में तब्दील करने का माद्दा रखते हैं और उसके लिए आखिर तक संघर्ष करते हैं। सन्तु भैया की मेहनत और विजन से ही दैनिक जागरण, रांची में मरणासन्न स्थिति से उबर कर आज सम्मानजनक स्थिति तक पहुंच सका है। रिपोर्ट में संत शरण जी की प्रताड़ना के शिकार लोगों में मेरा भी नाम लिया गया है, जो बिल्कुल गलत और भ्रामक है। स्पष्ट कर दूं कि दैनिक जागरण, रांची में मैं करीब साढ़े पांच साल रहा और इस दौरान संपादक से मेरे संबंध कभी खराब नहीं रहे। यह भी सही है कि मुझे संत शरण जी ने नहीं बल्कि इनके पूर्ववर्ती संपादकीय प्रभारी ज्ञानेश्वर जी ने ज्वाइन कराया था। जब 2004 में संत शरण जी का जमशेदपुर से रांची तबादला किया गया था, तब प्रचारित किया गया था कि ज्ञानेश्वर जी द्वारा नियुक्त किए गए लोगों को संत शरण जी ठिकाने लगा देंगे। लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं हुआ।
मेरी तरक्की हुई और दैनिक जागरण, रांची का मैं हीरो बनकर उभरा। स्टेट ब्यूरो में चीफ रिपोर्टर के रूप में काम करते हुए तब मेरे पास विधानसभा, मुख्यमंत्री, राजभवन और भाजपा जैसी महत्वपूर्ण बीटें थीं। मेरे काम और सत्ता प्रशासन में मजबूत पकड़ को देखते हुए संत शरण जी ने मुझे समाचार समन्वयक बना दिया, जिसके बाद निर्विवाद रूप से मैं वहां नंबर टू की स्थिति में आ गया। जाहिर है, संत शरण जी काम करने वाले को हमेशा तरजीह देते रहे हैं। अगर मैं प्रताडि़त होता तो क्या जागरण में इतनी बेहतर स्थिति में आ सकता था? मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि बेहतर आफर आने पर ही मैंने जागरण, रांची से इस्तीफा दिया था। जागरण छोड़कर मैं अमर उजाला, दिल्ली में समाचार संपादक के रूप में ज्वाइन किया था। जहां तक मेरी जानकारी है, सीपी श्रीवास्तव और पुरुषोत्तम कुमार ने भी बेहतर विकल्प मिलने पर ही इस्तीफा दिया था। सीपी श्रीवास्तव अभी नई दुनिया, जबलपुर में हैं और पुरुषोत्तम कुमार अमर उजाला, देहरादून में। निराला तिवारी प्रभात खबर, रांची में हैं, जो संत शरण जी की आज भी तारीफ करते हैं। अखबारों में आना-जाना तो लगा रहता है। रिपोर्ट में कुछ ऐसे नाम भी हैं, जो संत शरण जी के रांची आने के पहले ही जागरण छोड़कर जा चुके हैं। इनमें से कई तो मेरे आने के पहले ही छोड़ चुके थे। आनंद सिंह अभी हिंदुस्तान, बनारस में हैं, उन्होंने भी संत शरण जी के रांची आने के पहले ही जागरण से इस्तीफा दे दिया था। रिपोर्ट में कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जिन्हें मैं भी रिकॉल नहीं कर पा रहा हूँ। स्पष्ट है, वे या तो ट्रेनी रहे होंगे या स्ट्रिंगर। उदय चौहान ऐसा ही नाम है। ये वकील हैं और रांची कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं। समय की कमी के कारण ये मेरे साथ चल नहीं पा रहे थे। लिहाजा इन्हें संत शरण जी ने नहीं, मैंने जवाब दिया था और एक न्यूज एजेंसी में इनके लायक काम भी दिलवाया था।
मैं सारा कुछ विस्तार से इसलिए बता रहा हूँ, ताकि रिपोर्ट की सत्यता और लिखने वाले की नीयत का अंदाजा लगाया जा सके। जहां तक विशु प्रसाद की बात है तो मैं नहीं जानता कि उन्हें क्यों निकाला गया, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि संतु भैया के मानवीय पहलू के कारण ही वह इतने दिन जागरण में टिके रहे। पीकर 24 घंटे टुन्न रहने वाले पत्रकार को कोई अखबार या संपादक कितने दिन झेल सकता है। मेरी इस रिपोर्ट से कोई यह मतलब न निकाले कि मैं संतु भैया की चापलूसी कर रहा हूं। जागरण छोड़ने के बाद रांची में मेरी उनसे एक भी मुलाकात नहीं है। न ही फोन पर कोई बातचीत। हां, लखनऊ में एक-दो बार हम मिल चुके हैं। तब मैं वहां अमर उजाला में कार्यरत था। मैंने इसका खंडन केवल इसलिए किया कि संत शरण जी युवा पीढ़ी के होनहार संपादकों में से हैं और पत्रकाऱिता में आम तौर पर पाई जाने वाली दुष्प्रवृतियों से मुक्त भी। उन्होंने हमेशा काम को तरजीह दिया है और ऐसे लोगों को आगे भी बढ़ाया है। उनकी इस प्रवृति का मैं खुद एक बड़ा उदाहरण हूं। हाँ, निकम्मे और अखबार से ज्यादा दूसरे कामों में मन लगाने वाले पत्रकारों को संत शरण जी के साथ कम करने में हमेशा दिक्कत होती रही है।
लेखक अरविंद शर्मा इन दिनों राज एक्सप्रेस, भोपाल में पोलिटिकल एडीटर के रूप में कार्यरत हैं। इसके पहले वह अमर उजाला, दिल्ली-लखनऊ तथा दैनिक जागरण, रांची में सीनियर पदों पर काम कर चुके हैं।