चाटुकारिता यानी चमचागिरी राजनीति का फलसफा है। कांग्रेस इसी फलसफे पर टिकी है। इसे लेकर कांग्रेस में कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है। जो जितना बड़ा चाटुकार, वो उतना बड़ा हैसियतदार। यह कहना उचित नहीं होगा कि कांग्रेस में चाटुकारिता ने इंदिरा गांधी या संजय गांधी के दौर में जगह बनाई है, उसके पहले या बाद के दौर की कांग्रेस पवित्र थी या है, उसमें चाटुकारिता के लिए कोई जगह नहीं है। राजनीति के लिए तो एजेंडा साफ है, चाटुकारिता में रत्ती भर कमी दिखी तो समझो टिकट कटा।
प्रधानमंत्री को अगर सबसे बड़ी कुर्सी माना जाए तो विनम्रता के प्रतिमूर्ति मनमोहन सिंह इस कुर्सी पर इसलिए बने हैं कि वो वीर भूमि में प्रियंका के नन्हे मुन्नों के आगे नतमस्तक नजर आते हैं। मनमोहन सिंह भट्टा परसौल की राजनीति को लेकर मिलने वाले राहुल के आगे इसलिए संकुचाते हैं कि युवराज गांधी ने प्रधानमंत्री आवास पर आने की जहमत उठाई। काश, आदेश दिया होता तो खुद ही घर जाकर सुन आते। सात सालों के शासन में सात बार भी प्रधानमंत्री के सात रेसकोर्स के आवास पर नहीं आ पाने की वजह से ही कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी बाहर निकलकर भटक जाते हैं और मीडिया के कैमरों के नजर में पार्किंग लॉट में खड़ी गाड़ी तक नहीं ढूंढ पाते।
ये कांग्रेस है। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस। कांग्रेस का इतिहास लिपिबद्ध हो रहा है। पुराने नेताओं में सबसे ज्यादा सक्रिय प्रणव मुखर्जी इसके संपादक हैं। किताब का नाम ‘ए सेंटिनरी हिस्ट्री ऑफ दि इंडियन नेशनल कांग्रेस’ है। इसका पांचवा खंड बाजार में आया है। इस खंड को 1964 से 1984 के बीच की अवधि का कांग्रेस का अधिकारिक इतिहास बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस में राजनीति तो ऐसे ही चलती है।
कांग्रेस के चरित्र में ढली इतिहास की इस किताब में भी चाटुकारिता की पराकाष्टा को छूने वाली मिसालें है। एक विस्मित करने वाली मिसाल ने कांग्रेस के दिग्गजों को चकराकर रख दिया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुघा पाई के लेख से भाव निकल रहा है कि तीन दशक पहले दादी इंदिरा गांधी की नीति ने कांग्रेस को मटियामेट कर दिया इसलिए वीरवान पोता राहुल गांधी को धूल धुसरित कांग्रेस को फिर से खड़ा करने में ‘भूतो न भविष्यति’ वाली ताकत से मेहनत करनी पड़ रही है। इसे पढकर कोई भी कह सकता है, जय हो! चाटुकारिता की।
राजनीति की ऐनक से राजनीतिक दल के इस ऐतिहासिक लेख को समझें तो एक तीर से कई निशाने साधे गए हैं। इस दौर में जब बुजुर्ग राजेन्द्र कुमार धवन और वसंत साठे जैसे इंदिरा गांधी के घाघ सलाहकार पोती प्रियंका की आंचल में छिपने की बाट जोह रहे हैं, आगे राजनीति का सिक्का चलाए रखने की आस में सलाह भरी बयानबाजी कर रहे हैं, तो लेख के जरिए राहुल की चुनौती को विशालकाय बताया रहा है। युवराज कांग्रेस के सांगठनिक विस्तार और पार्टी के आधारभूत ढांचा खड़ा करने में व्यस्त हैं। यह वीरता का काम है। राहुल की वीरता पर मुहर लगाई जा रही है और उनकी मेहनत का गुनगान किया जा रहा है।
जाहिर तौर पर कहा जा रहा है कि ये वक्त राहुल की क्षमता पर शक का नहीं है बल्कि चुनौतियों के अहसास का है। जिस काम को अपने दौर में विश्व की सबसे ताकतवर महिलाओ में शुमार इंदिरा गांधी ने ही बिगाड़ दी हो, उसे संवारने में मुश्किल तो होगी ही। कांग्रेस का अधिकृत इतिहास बनने जा रहे इस लेख में कहा गया है कि इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस के साथ व्यभिचार हुआ। हैरत में पड़े कांग्रेसियों के लिए यह व्यभिचार, भट्ठा परसौल के ग्रामीण महिलाओं के साथ हुआ पुलिसिया बलात्कार जैसा है जिसकी जुबानी शिकायत युवराज राहुल प्रधानमंत्री से कर तो आए हैं, पर ग्रामीणों ने ही इसे अतिरेक में आकर दिया बयान बताकर ठुकरा दिया है।
शायद ही किसी ने सोचा था कि लंबे वक्त तक कांग्रेस इंदिरा के नाम से पहचान बनाए रखने वाली अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के एतिहासिक दस्तावेज में इंदिरा गांधी पर कांग्रेस को कमजोर करने का इल्जाम लगेगा। यह कांग्रेस की एक पूरी पीढी के लिए कल्पनातीत यानी कल्पना से बाहर की बात है। इल्जाम उस इंदिरा गांधी पर लगा है जिसने राहुल से काफी कम उम्र में अदभुत राजनीतिक कौशल का परिचय दिया था। उन्होंने न सिर्फ देवराज अर्स जैसे घाघ कांग्रेसियों को छठी की दूध पिला दी थी बल्कि कांग्रेस में युवा तुर्क कहे जाते रहे चंद्रशेखर तक को बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया था। खुद के नेतृत्व में विभाजित कांग्रेस को ही आखिरी तौर पर असली कांग्रेस साबित करके दिखा दिया। अकेले दम पर सरकार बनाकर राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी के हाथों तक सत्ता की चाभी पहुंचा दी थी। इंदिरा गांधी के कांग्रेस का ही संगठन था जो उनकी हत्या के बाद राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया था। फिर मौजूदा कांग्रेस के इतिहासकारों की इंदिरा गांधी से खिस कैसी?
इसका जवाब समझने के लिए राजनीति को समझना होगा। कहते हैं कि दुनिया में किसी के न रहने पर उसके बारे में इतिहास का लिखा जाना आसान हो जाता है। क्योंकि जिसके बारे में लिखा जा रहा होता है उसे लिखे पर एतराज करने का मौका नहीं मिलता है। इसलिए सुधा पई को इंदिरा गांधी के दुनिया में नहीं होने का लाभ मिला और वो आसानी से कांग्रेस की बदहाली के लिए इंदिरा गांधी की राजनीति को दोषी ठहरा गई। इस दोष पर कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने और भी आसानी से हामी भरकर कांग्रेस की अधिकारिक मुहर लगा दी। विश्लेषण में इंदिरा गांधी को कीचड़ में लपेटने का मकसद है। यह वक्त की नजाकत और चाटुकारिता की जरूरत का हिस्सा है जिसमें इंदिरा गांधी की दो बहुओं की लड़ाई में बड़ी बहु सोनिया गांधी के पीछे समूची कांग्रेस को फिर खड़ा होते दिखना है। सबसे बड़ी बात इंदिरा गांधी को कमतर दिखाने से छोटी बहु मेनका गांधी को होने वाले फायदे को नजरअंदाज किया जा रहा है।
इंदिरा गांधी पर दोषारोपण का ये वक्त इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बड़ी बहु अपने बेटे राहुल गांधी के हाथों में राजनीतिक विरासत हस्तांतरित करने में लगी है। दूसरी तरफ इंदिरा गांधी की छोटी बहु मेनका गांधी ने भी अपना मकाम तय सा कर लिया है। वो भी वरूण गांधी के हाथों विरासत सौंपने की मुद्रा में हैं। संजय की मौत के बाद जेठ राजीव गांधी के लिए रास्ता छोड़ने की मजबूरी में इसी वरूण को गोद में लेकर मेनका गांधी ने सास इंदिरा गांधी का घर छोड़ा था। तब से सास इंदिरा गांधी के घर में सोनिया गांधी का सिक्का चल रहा है। इतिहास लिखकर स्वर्गीय इंदिरा गांधी से उस कालखंड का हिसाब मांगा जा रहा है या उस कालकंड को कांग्रेस का कबाड़ा करने वाला कालखंड बताया जा रहा है जब तक संजय गांधी जीवित थे, इंदिरा गांधी पर संजय का असर था और राजीव गांधी ने राजनीति से तौबा कर रखा था।
यह बहुत हद तक घर से निकली मेनका गांधी के संजय विचार मंच बनाकर शुरुआती राजनीति कर प्रभावशाली कांग्रेसियों को खुद के साथ ले जाने की राजनीति चाल पर मुहर लगाने की कहानी है। अगर आज के दौर में मेनका गांधी भारतीय जनता पार्टी में गुम नहीं हुई होतीं तो उनको इंदिरा गांधी को कांग्रेस की बदहाली के लिए कसूरवार ठहराने का कुछ फायदा मिल सकता था और वरूण गांधी प्रतिद्वंदिता में चचरे राहुल गांधी से कह सकते थे कि भैय्या, दादी मेरी थी क्योंकि तेरे पापा से ज्यादा मेरे पापा के कहे पर चलती थी। राहुल गांधी को भी चाटुकारिता में इतिहासकार ने ये बताने की कोशिश की है कि युवराज आपके पापा तो अच्छे थे, पर दादी बुरी थी।
लेखक आलोक कुमार ने करियर की शुरुआत बिहार के आदिवासी बहुल जिला दुमका (झारखंड) से ‘आज’ के जिला संवाददाता के तौर पर की और बाद में ‘आज’ के लिए पटना में डेस्क पर काम किया. रांची जाकर पत्रकारिता के शलाका पुरुष बलबीर दत्त के ‘देशप्राण’ से जुड़ गए. 1993 की शुरूआत में ये दिल्ली आए और ‘स्पेक्टिक्स इंडिया’ नामक सांध्य दैनिक लांच किया. आलोक तोमर के संपादकत्व में ‘करंट न्यूज’ से जुड़े. होम टीवी के कार्यक्रम ‘लाइफ स्टाइल’ के लिए स्क्रिप्ट लिखा. राजनीतिक पत्रिका ‘माया’ के दिल्ली ब्यूरो के संवाददाता और दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो में वरिष्ठ संवाददाता रहे. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के दिल्ली में मीडिया सलाहकार बने. आलोक ने दैनिक जागरण के पानीपत संस्करण को लॉच किया. ज़ी न्यूज के राष्ट्रीय ब्यूरो में प्रधान संवाददाता रहकर टीवी रिपोर्टिंग में हाथ आजमाया. आजतक न्यूज चैनल के विशेष खोजी दल (एसआईटी) के हिस्से बने और फिर सहारा टीवी में एसआईटी के हेड बने. पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ सहारा के राष्ट्रीय चैनल ‘समय’ को री-लांच किया. न्यूज़ 24 में एसोसिएट एडिटर बने. दैनिक भास्कर के सलाहकार संपादक के तौर पर संपादकीय प्रशिक्षक का दायित्व निभाया. काठमांडू (नेपाल) में नेपाल वन टीवी के प्रबंध संपादक रहे. आलोक ने तेरह नौकरियां की और अब नौकरियों की तेरहवीं करके मुक्त पत्रकारिता के हमसफर हो लिए हैं.
Comments on “कांग्रेस : जो जितना बड़ा चाटुकार, वो उतना बड़ा हैसियतदार”
इसमें भी कोई शक है क्या..
This stupid piece by a so-called knowledgeable journalist needs to be thrown into the dustbin. Obviously, he has not seen the volume referred to above. He has brought in matters that have no relevance to any discussion on this volume. How are the utterings by Sathe and Dhavan relevant in the context of this volume? It shows the low intellectual level of this reviewer who seems to be hankering only after sensation.
He should first procure a copy of the book, read it and then comment.
Indera gandhi ne congresh ko buniyadi tour par majbut banaya hai , ladkiyo ko hin bhawana de dekhe jane wale desh me apane pita ki virashat ko bhalibhati chalana aour upar tak lejane ka kam kiya hai. jo kabiletarif hai, aour apne shasankal me kuch galtiyoun ko chhod kar desh ke lie kai uplabhdiya darj karai hai. yadi up me unhone congres ko kamjor kiya hai to fir aaj b gandhi pariwar khud ka chunavi dangal up hi banaya hai aaj b parampara ka puri tarah nirwah ho raha hai aour jit b lagatar darj ki ja rahi hai. eska matlab unhone congres ko kamjor nahi balki gandhi pariwar ki virasat banaya hai.