: छंटनी पर आज फैसला होने के आसार : बीबीसी में कई पत्रकारों की नौकरियों पर तलवार लटक रही है. आर्थिक तंगहाली से गुजर रहे बीबीसी में छंटनी की तैयारी चल रही है. इसे खर्च कम करने की कवायद बताया जा रहा है. अगर सूत्रों की माने तो हटाए जाने वाले पत्रकारों की लिस्ट बन चुकी है. इसे काफी पहले ही तैयार किया जा चुका था. इस पर बस मुहर लगना बाकी है. काम करने वाले सभी लोग परेशान हैं. किसी को नहीं पता है कि उनकी नौकरी रहेगी या जाएगी.
पिछले काफी दिनों से बीबीसी में पत्रकारों की छंटनी किए जाने की चर्चा चल रही थी. हटाए जाने वाले लोगों की लिस्ट भी काफी पहले से तैयार करके रख ली गई है. सूत्रों ने बताया कि आज इस संदर्भ में मीटिंग होने वाली है. इसी मीटिंग में नामों पर अंतिम मुहर लगेगी. इसमें किसका नाम होगा इसकी किसी को जानकारी नहीं है. छंटनी में सीनियर जर्नलिस्टों को निशाना बनाए जाने के आसार हैं.
इस कवायद को बीबीसी का आर्थिक तंगी से उबरने की कोशिश बताया जा रहा है. इसके पहले भी आर्थिक दिक्कतों के चलते बीबीसी ने अपनी हिंदी सेवा बंद करने का एलान कर चुका है. पहले तो बीबीसी ने इसी साल मार्च से इस सेवा पर विराम लगाने की घोषणा की थी, परन्तु लोगों के दबाव और नए आर्थिक उपायों की कोशिशों के बीच इसे एक साल का जीवनदान दे दिया है. यानी चीजें बेहतर नहीं हुईं तो इस सेवा का अगले साल बंद होना तय है.
इधर, बीबीसी के भीतर छंटनी को लेकर पत्रकार परेशान हैं. खबर है कि छंटनी किए जाने की सूचना काफी पहले दे दी गई थी, लेकिन नाम नहीं बताए गए थे. ताकि जो खुद जाना चाहें, वो जा सकें. ज्यादा सेलरी पाने वाले पत्रकारों को ही निशाना बनाए जाने की चर्चा है. आज की मीटिंग में प्रमुख रूप से हटाए जाने वाले पत्रकारों के नामों पर मुहर लगाई जाएगी. छंटनी की खबर के बाद से ही बीबीसी में काम करने वाले पत्रकारों में तनाव है. इससे काम भी प्रभावित हो रहा है.
Comments on “बीबीसी में कई पत्रकारों की नौकरी पर लटकी तलवार”
जी आपकी सूचना के लिए बता दें कि हांलाकी आधिकारिक घोषणा 3.30 मिनट पर होनी है…लेकिन बीबीसी हिंदी.कॉम की संपादक सलमा जैदी, खेल संपादक मुकेश कुमार और जम्मू संवाददात्ता बीनू जोशी को आज सुबह ही बता दिया गया है कि उन्हे जाना होगा…एचआर मैनेजर योगीता कौल ने उन्हे औपचारिक तौर पर मैंजमेंट का फ़ैसला बता दिया है. बाकी किसे जाना है किसे रहना है…अब कोई राज़ नही रहा है. वैसे हिन्दी सर्विस मे अगर किसी को अपनी नौकरी बचानी है तो कहा जा रहा है की वो उर्दू सर्विस के शकील अख़्तर से पैरवी कराएं…..वैसे आज कल नितिन श्रीवास्तव और रेहान फज़ल उनकी पूरी सेवा करते हुए प्रैस कल्ब मे नज़र आते हैं. रेहान फज़ल यूं तो प्रैस कल्ब के पुराने सदस्य हैं…पर पहले कभी शाम को वो कल्ब नही आये…पर आज कल नियमित रुप से ना सिर्फ वो कल्ब आते हैं बल्कि शकील साहब की महफ़िल मे देर रात तक रहते हैं. ख़बर ग़लत साबित करने वाले को मुंह मांगा इनाम
वैसे कई सियार मिलकर शेर का शिकार कर लेते हैं. अमित बरुआ किसी भी तरह बीबीसी लायक़ स्टफ़ ही नहीं थे. रेहान फ़ज़ल काम चलाऊ पत्रकार रहे हैं. वो अगर जाते तो उनकी पत्नी उनका ख़र्च उठाती. शकील की बात करें तो उसके पास कुछ नहीं है. वह उर्दू सेवा में क्यों है कोई नहीं बता सकता. उसने सबसे पहले बीबीसी में यह गड़बड़ी शुरू की थी. जितने भी च्यन उसने बीबीसी उर्दू के लिए किए वे सारे बिना किसी परिक्षा और बोर्ड के किए. पहले तो किसी को इंटर्न रखा और फिर उसकी सेवा से ख़ुश होकर उसे पर्मानेंट किया गया. अगर मेरी बात को भी ग़लत साबित किया जाए तो इनाम तो मिलेगा ही. साथ में शकील साहब से नौकरी भी. धन्यवाद.