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योजना आयोग ने तो बाजार में सिरफिरा बना दिया!

लखनऊ। लखनऊ एक शहर है। योजना आयोग के मानक के अनुसार मैं 32 रुपए अलग रखकर घर से निकला। योजना आयोग ने 32 रुपए खर्चने वाले व्यक्ति को अमीर बना दिया है। अपनी अमीरी लिए मैं बाजार में पहुंचा। नवरात्र का पहला दिन था। व्रत था। अनाज खाना नहीं था। सो मैं एक फल से लदे ठेले के पास पहुंचा। ठेले वाले से 44 पैसे का फल मांगा। उसने मेरी तरफ विचित्र दृष्टि से देखा। बोला, ‘काहे मजाक कर रहे हो।’

<p style="text-align: justify;">लखनऊ। लखनऊ एक शहर है। योजना आयोग के मानक के अनुसार मैं 32 रुपए अलग रखकर घर से निकला। योजना आयोग ने 32 रुपए खर्चने वाले व्यक्ति को अमीर बना दिया है। अपनी अमीरी लिए मैं बाजार में पहुंचा। नवरात्र का पहला दिन था। व्रत था। अनाज खाना नहीं था। सो मैं एक फल से लदे ठेले के पास पहुंचा। ठेले वाले से 44 पैसे का फल मांगा। उसने मेरी तरफ विचित्र दृष्टि से देखा। बोला, ‘काहे मजाक कर रहे हो।’</p> <p style="text-align: justify;" />

लखनऊ। लखनऊ एक शहर है। योजना आयोग के मानक के अनुसार मैं 32 रुपए अलग रखकर घर से निकला। योजना आयोग ने 32 रुपए खर्चने वाले व्यक्ति को अमीर बना दिया है। अपनी अमीरी लिए मैं बाजार में पहुंचा। नवरात्र का पहला दिन था। व्रत था। अनाज खाना नहीं था। सो मैं एक फल से लदे ठेले के पास पहुंचा। ठेले वाले से 44 पैसे का फल मांगा। उसने मेरी तरफ विचित्र दृष्टि से देखा। बोला, ‘काहे मजाक कर रहे हो।’

मैंने उसे केंद्रीय योजना आयोग के मापदंड के बारे में बताया। ठेले वाले ने मुझे हडक़ाया। कहा, ‘अनाप-शनाप बुझनी न बुझाओ, पैसे न हों तो एक केला मुफ्त में ले लो, लेकिन बिहाने-बिहाने मेरा दिमाग न चाटो।’ मैंने 30 रुपए दर्जन वाला सबसे कम दाम का केला लिया। और चलता बना। फिर मैं सब्जी मंडी पहुंचा। योजना आयोग ने साग-सब्जी पर 1.95 रुपए खर्च का मापदंड तय कर रखा है। उपवास में फलाहार का सबसे सस्ता और टिकाऊ माध्यम आलू है। आलू खरीदने से पहले मैंने दुकानदार से योजना आयोग के मापदंड के बारे में बताया। यह सोचकर कि वह मुझे सिरफिरा न समझ ले। जब मैंने 1.95 रुपए का आलू मांगा तो उसने मुझे ऐसे ही दो आलू उठाकर पकड़ा दिया। फिर मैंने 12 रुपए का एक किलो आलू लिया। मेरे पीछे मुड़ते ही दुकानदार ने ठहाका लगाया। फिकरा कस ही दिया, ‘लखनऊ में पढ़े लिखे पागलों की कमी नहीं है।’ मंडी में 30 रुपए की सौ ग्राम हरी धनिया, 10 रुपए का ढाई सौ ग्राम मिर्च, 25 रुपए किलो टमाटर, पांच रुपए का एक खीरा मिल रहा था। कोई भी ऐसी सब्जी नहीं थी जो 20 रुपए प्रति किलो से कम पर मिल रही हो।

योजना आयोग ने एक काम अच्छा किया है। पूजा-पाठ पर होने वाले खर्च को अपने पैमाने से बाहर कर दिया है। शायद ऐसा करने से धर्मनिरपेक्षता को खतरा उत्पन्न हो सकता था। वैसे आयोग ने चीनी के लिए 70 पैसे तय किए हैं। पूजा-पाठ में लोग चीनी की जगह अमूमन बताशे का प्रयोग करते हैं। बताशा 60 रुपए किलो है। हलवाई को भी मैंने आयोग के मानक बताकर 70 पैसे के बताशे मांगे। हलवाई ने कहा ‘पहले 70 पैसे लाओ तब बताशे लो।’ मेरे पास वापस करने के लिए 30 पैसे नहीं थे। फिर उसने एक रुपए के चार-पांच बताशे दे दिए। एहसान जताते हुए कहा, ‘नवरात्र का पहला दिन है इसलिए दिए दे रहा हूं। कृपया दोबारा दर्शन न दें।’ किसी भी दूधिए ने 2.33 पैसे का दूध देने के लिए अपना नपना नहीं उठाया।

मैं हवन सामग्री की दुकान पर पहुंचा। कलश, दीया व अन्य सामग्री महंगाई के बोझ तले दबी हुई कराह रही थी। छह माह पहले चैत्र नवरात्र में जो पंचमेवा दस का मिल रहा था, वो 15 रुपए का मिला। सर्वाधिक आग फूलों में लगी है। नवरात्र पूजा में लाल फूलों का सबसे ज्यादा महत्व होता है। गुलफरोश से रोज की तरह पांच रुपए का फूल मांगा। उसने गिनकर गेंदे के पांच फूल, गुलमेंहदी के पांच-छह फूल दिए। गुलाब के दो फूल दिए और उसके लिए पांच रुपए अलग से मांगा। पूछने पर उसने बताया कि नवरात्र के पहले मंडी में गेंदा 50 से 60 रुपए किलो और गुलाब 120 रुपए किलो मिल रहा था। अब गेंदा 120 और गुलाब 300 रुपए किलो मिला है। जो गुलमेंहदी 5 से 8 रुपए किलो मिल रही थी, वह 120 रुपए किलो मिली। सामान लेकर मैं घर चला आया। प्रार्थना की, हे दुर्गा माई! महंगाई के महिषासुर को झेलने (इसे हम मार नहीं सकते) की शक्ति देशवासियों को दो।

लेखक अनिल भारद्वाज लखनऊ से प्रकाशित डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट से जुड़े हुए हैं. यह लेख डीएनए में छप चुका है, वहीं से साभार लेकर प्रकाशित किया गया है.

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