: नहीं, चोर तो पिताजी हुआ करते थे, पर उनकी तलाशी नहीं होती थी : खबर है कि हिंदुस्तान, लखनऊ के संपादक और चीफ रिपोर्टर के कारों की आजकल तलाशी ली जा रही है. ये तलाशी कोई और नहीं ले रहा बल्कि हिंदुस्तान प्रबंधन के आदेश पर हिंदुस्तान के ही सेक्युरिटी गार्ड ले रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक कोई कीमती चीज आफिस से खो जाने (कंप्यूटर भी हो सकता है या कुछ और भी) के बाद हिंदुस्तान प्रबंधन ने कार और बाइक से आफिस आने-जाने वाले लोगों की रोजाना जाते वक्त चेकिंग के आदेश दे दिए.
करीब हफ्ते भर पहले लागू किए गए इस फरमान के बाद अब संपादक, चीफ रिपोर्टर से लेकर सभी कर्मियों तक की गाड़ियां जाते वक्त डिग्गी खुलवाकर चेक की जा रही हैं. बताते हैं कि चीफ रिपोर्टर परवेज अहमद पहले दिन चेकिंग के दौरान भड़क गए कि उनकी गाड़ी चेक कराने की हिम्मत किसमे है लेकिन जब उन्हें बताया गया कि अगर आप चेक नहीं कराएंगे तो चोर माने जाएंगे तो वे शांत पड़ गए और पूरी गाड़ी की तलाशी लेने दी.
उल्लेखनीय है कि हिंदुस्तान, लखनऊ के कैंपस में ही हिंदुस्तान कर्मियों की गाड़ियां खड़ी होती हैं. दिन के वक्त शाम को पांच छह बजे प्रबंधन से जुड़े लोग आफिस से जाते हैं तो उनकी गाड़ियां चेक होती हैं और रात में जब संपादकीय के कनिष्ठ-वरिष्ठ घर के लिए निकलते हैं तो उन सबों की भी गाड़ियों की चेकिंग की जाती है. फिलहाल इस नए फरमान से खासकर संपादकीय के लोगों में भारी बेचैनी है. आमतौर पर गैर-अखबारी फैक्ट्रियों में दिहाड़ी मजदूरी पर काम करने वालों की तलाशी-चेकिंग का काम किया जाता है लेकिन अब ऐसा जमाना आ गया है जिसमें अपने पत्रकारों पर ही अखबार के कर्ताधर्ताओं को भरोसा नहीं रह गया है. सही है, बाजार है बाबू, तुम चोर तो हम भी चोर.
कायदे से प्रबंधन को सीसीटीवी कैमरे लगाने चाहिए जिससे बिना किसी को पता चले सबकुछ निगरानी में रहे और चोरी कभी कोई करता है तो खुद ब खुद पकड़ में आ जाए. पर इसकी जगह रोजाना सभी की तलाशी लेने जैसा नीच काम कराया जा रहा है और सब बड़े बड़े संपादक लोग चुप हैं, यह बताता है कि वाकई आज की पत्रकारिता कहां पर पहुंच गई है. अगर हिंदुस्तान, लखनऊ के सारे पत्रकार एक साथ मिलकर इस व्यवस्था का विरोध करें और इसकी जगह सीसीटीवी लगाने जैसी व्यवस्था करने का सुझाव दें तो शायद रास्ता निकल सकता है लेकिन यहां तो सवाल वही है कि कौन अपनी कुर्सी से पंगा ले, बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?
Comments on “हिंदुस्तान, लखनऊ वाले चोर हैं!”
isme kaun see badi batt hai , Times House Delhi me na jane kab se aisa ho raha hai. Bade se Bade Editor ke Bag ki bhi Security wale talashi lete hain
kya baat kahi…doosre akhbaro ko sabak lena chahiye
theka mazdoor, behad majboor