भास्कर टीवी (बीटीवी), जयपुर से एडीटर (न्यूज) अनिल लोढ़ा और दो रिपोर्टरों योगेश शर्मा और संयोग जैन ने इस्तीफा दे दिया है। योगेश और संयोग का इस्तीफा मैनेजमेंट ने स्वीकार कर इन्हें रिलीव कर दिया है। अनिल लोढ़ा दो महीने बाद रिलीव होंगे। उन्होंने नोटिस दे रखा है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल लोढ़ा ने पत्रकारिता में करियर वर्ष 1976 में शुरू किया था। वे अजमेर के रहने वाले हैं। छात्र जीवन में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे, जेपी के आंदोलन में शामिल हुए। अनिल लोढ़ा एक कवि भी हैं।
कविता संग्रह आग का पेड़ प्रकाशित हो चुका है। राजस्थान के सियासी, सोशल, इकानामिकल व कल्चरल मामलों के जानकार अनिल लोढ़ा की ख्याति एक राजनीतिक विश्लेषक के रूप में है। उन्हें राजस्थान के दिल और दिमाग की अच्छी समझ है, साथ ही यहां की राजनीति के दशा-दिशा की नब्ज पर गहरी पकड़ है। दैनिक भास्कर समूह के साथ 11 साल रिश्ता निभाने के बाद अनिल लोढ़ा कहां जा रहे हैं, इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया है। उनका कहना है कि कई आफर हैं, नोटिस पीरियड पूरा हो जाने के बाद ही कुछ तय करेंगे। हालांकि उन्होंने इतना इशारा जरूर किया कि वे जयपुर में ही कुछ करेंगे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी अनिल लोढ़ा ने अपने करियर में ढेर सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं। उन्होंने एक जमाने में अपना खुद का भी अखबार निकाला था। यह अखबार अपने गृह जिले अजमेर से जवाब-तलब नाम से निकाला था। वे अजमेर में ही दैनिक भास्कर के भी स्थानीय संपादक रहे हैं। अनिल लोढ़ा के 32 वर्ष के पत्रकारीय करियर में 10 वर्ष नवभारत टाइम्स के नाम रहे। करियर की शुरुआत उन्होंने राजस्थान पत्रिका के अजमेर रिपोर्टर के रूप में वर्ष 1976 में की थी। भास्कर के चंडीगढ़ संस्करण को लांच करने वाले कोर ग्रुप के सदस्य रहे अनिल लोढ़ा अपनी नई पारी के बारे में 7 जुलाई को जयपुर में खुलासा करेंगे पर वे इन बीच के दिनों का इस्तेमाल कविता लिखने के साथ-साथ अपने जीवन के अनुभवों को संकलित करने में बितायेंगे। भड़ास4मीडिया से बातचीत में अनिल लोढ़ा ने अपने कविता संग्रह की एक कविता की कुछ लाइनें सुनाईं, शीर्षक है….वे लोग….
वे लोग / पत्ते तोड़ती / पतझड़ी हवा की / पीठ थपथपाते हैं / और पेड़ों को / आशीर्वाद देते हैं / हरियाते रहें / काश / मेरे इक / अदद पेट नहीं होता / कि जिसके बल मुझे / हर रोज रेंगना होता / तो मैं उन्हें आइना दिखा देता / और बता देता कि / वे क्या हैं और मैं क्या हूं….