Connect with us

Hi, what are you looking for?

हलचल

मीडिया 2009 : सबसे बड़ा स्कैंडल : खबरें बिकाऊ हो गईं

पत्रकारिता के पेशे में जान का जोखिम बढ़ा : पाठकों को दुनियाभर की खबरों की जानकारी देने वाले और उनकी आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों के लिए दक्षिण एशिया के देशों में जान का जोखिम बढ़ता जा रहा है। 2009 में एशिया के देशों में अपने पेशे के कारण 12 पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें से एक पत्रकार भारत का भी है। पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन के साउथ एशिया मीडिया कमीशन की रपट में ये तथ्य उजागर हुए हैं। पत्रकारों की सबसे ज्यादा मौतें पाकिस्तान में हुई हैं जहां सात पत्रकार मारे गए। इसके अलावा अफगानिस्तान में दो और नेपाल और श्रीलंका में एक-एक पत्रकार को अपनी जान गंवानी पड़ी। कमीशन के चेयरमैन केके कात्याल ने रपट जारी करते हुए कहा कि उन प्रकाशित खबरों जिनका खंडन नहीं किया गया है, के आधार पर साउथ एशिया मीडिया मानिटर रपट तैयार की गई है। इस रपट से साफ है कि पत्रकारों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पत्रकारों की जान के लिए पत्रकारिता जोखिम भरा काम बनता जा रहा है।

<p align="justify"><strong>पत्रकारिता के पेशे में जान का जोखिम बढ़ा : </strong>पाठकों को दुनियाभर की खबरों की जानकारी देने वाले और उनकी आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों के लिए दक्षिण एशिया के देशों में जान का जोखिम बढ़ता जा रहा है। 2009 में एशिया के देशों में अपने पेशे के कारण 12 पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें से एक पत्रकार भारत का भी है। पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन के साउथ एशिया मीडिया कमीशन की रपट में ये तथ्य उजागर हुए हैं। पत्रकारों की सबसे ज्यादा मौतें पाकिस्तान में हुई हैं जहां सात पत्रकार मारे गए। इसके अलावा अफगानिस्तान में दो और नेपाल और श्रीलंका में एक-एक पत्रकार को अपनी जान गंवानी पड़ी। कमीशन के चेयरमैन केके कात्याल ने रपट जारी करते हुए कहा कि उन प्रकाशित खबरों जिनका खंडन नहीं किया गया है, के आधार पर साउथ एशिया मीडिया मानिटर रपट तैयार की गई है। इस रपट से साफ है कि पत्रकारों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पत्रकारों की जान के लिए पत्रकारिता जोखिम भरा काम बनता जा रहा है।</p>

पत्रकारिता के पेशे में जान का जोखिम बढ़ा : पाठकों को दुनियाभर की खबरों की जानकारी देने वाले और उनकी आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों के लिए दक्षिण एशिया के देशों में जान का जोखिम बढ़ता जा रहा है। 2009 में एशिया के देशों में अपने पेशे के कारण 12 पत्रकारों को जान से हाथ धोना पड़ा। इनमें से एक पत्रकार भारत का भी है। पत्रकारों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन के साउथ एशिया मीडिया कमीशन की रपट में ये तथ्य उजागर हुए हैं। पत्रकारों की सबसे ज्यादा मौतें पाकिस्तान में हुई हैं जहां सात पत्रकार मारे गए। इसके अलावा अफगानिस्तान में दो और नेपाल और श्रीलंका में एक-एक पत्रकार को अपनी जान गंवानी पड़ी। कमीशन के चेयरमैन केके कात्याल ने रपट जारी करते हुए कहा कि उन प्रकाशित खबरों जिनका खंडन नहीं किया गया है, के आधार पर साउथ एशिया मीडिया मानिटर रपट तैयार की गई है। इस रपट से साफ है कि पत्रकारों के खिलाफ अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पत्रकारों की जान के लिए पत्रकारिता जोखिम भरा काम बनता जा रहा है।

रपट के मुताबिक आतंकवाद बढ़ने के कारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान का सीमावर्ती इलाका पत्रकारिता के लिए बहुत खतरनाक हो गया है। दूसरी तरफ कुछ देशों में सरकारें पत्रकारों को डराने और धमकाने के लिए उनके खिलाफ आतंकवाद और देशद्रोह से जुड़े कानूनों का सहारा ले रही है। ज्यादातर देशों मे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए नियमन की कोई सुपरिभाषित व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। दूसरी तरफ भारत जैसे देश में जहां पत्रकारिता की बहुत लंबी परंपरा रही है वहां भी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए आचार संहिता बनाने की बहस चल रही है। दूसरी तरफ खबरों की जगह को भी बेचने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

उधर, पाकिस्तान में कुछ उत्साही पत्रकार हाल ही में मिली पत्रकारीय आजादी का उपयोग पाकिस्तान की नवजात लोकतंत्र को अस्थिर और बदनाम करने के लिए कर रहे हैं। हाल ही में सत्तारूढ़ दल के कई नेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया है। श्रीलंका में पत्रकारों की स्थिति तो पाकिस्तान से भी बदतर है। नेपाल में मीडिया ने राजतंत्र की निरंकुशता और लोकतंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन नए निजाम में भी उसकी हालत बदतर ही हुई है।

साउथ एशिया मीडिया मानिटर रपट के मुताबिक भारत में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है। देश के आतंकवाद से ग्रस्त उत्तर पूर्व में पत्रकारों के लिए खतरा बहुत ज्यादा है। इस साल इस क्षेत्र में भले ही एक ही पत्रकार हिंसा में मारा गया हो मगर 1991 से अब तक 22 पत्रकार मारे जा चुके हैं और पुलिस उनके हत्यारों का पता लगाने और उनको सजा दिलाने में नाकाम रही है। महाराष्ट्र में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर काफी खतरे मंडरा रहे है। इस साल मुंबई से प्रकाशित अखबार नवाकाल और आईबीएन-लोकमत न्यूज चैनल पर हमले हुए। रपट में कहा गया है कि इस साल मीडिया का सबसे बड़ा स्कैंडल यह रहा कि खबरें बिकाऊ हो गई हैं। पहले इस तरह की घटनाएं छोटे-मोटे स्तर पर होती थीं मगर अब यह प्रवृत्ति मीडिया को बड़े पैमाने पर ग्रस्ती जा रही है। 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों को कई अखबारों में विज्ञापनों की तरह ही खबरें छपवाने के लिए भी पैसे खर्च करने पड़े। साभार : जनसत्ता

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement