मीडिया चरित्र (4) : मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है लेकिन इस चुनाव में मीडिया ने जो गुल खिलाये, उससे लोकतंत्र प्रहरी का असली चेहरा सबके सामने आ गया। अखबारों और टेलीविजन चैनलों ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बडे़ पर्व के मौके पर सबसे बड़ी कमाई करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा। कमाई और उगाही के एक से एक तरीकों का इस्तेमाल किया और एक दूसरे से आगे बढ़कर न केवल कमाई की। भडास4मीडिया ने मीडिया के काले कारनामों को उजागर किया है जिन्हें विस्तार से विभिन्न आलेखों/पोस्टों में पढ़ा जा सकता है। इस रिपोर्ट में मीडिया के उस चरित्र को उजागर किया जा रहा है जिससे यह जाहिर हो जाता है कि मीडिया में अब लोकतंत्र कहना देश, समाज और अपने आप से धोखा है।
मीडिया का यह चरित्र उजागर हुआ है सेंटर फार मीडिया स्टडी के एक नये सर्वे से जिसे पता चलता है कि खबरिया चैनलों ने पिछले करीब ढाई महीने के चुनावी कवरेज में न केवल बड़ी बल्कि चुनाव प्रचार और विज्ञापनों पर करोड़ों का खर्च करने वाली राजनीतिक पार्टियों को ही महत्व दिया जबकि छोटी पार्टियों और यहां तक कि राष्ट्रीय दर्जा हासिल कर चुकी पार्टियों को अपने चैनलों पर कोई जगह नहीं दी। ऐसा क्यों हुआ इस बारे में हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, समझदारों के लिये इशारा ही काफी है। हम तो सीएमएस अध्ययन के नतीजों के बारे में विस्तार से बतायेंगे ताकि आपको अपने देश की मीडिया के चरित्र को समझने में आसानी हो।
चैनलों पर छायी रही कांग्रेस और भाजपा
सीएमएस के मीडियालैब ने 01 मार्च 2009 से 11 मई 2009 (चुनाव प्रचार का अंतिम दिन) तक छह प्रमुख राष्ट्रीय समाचार चैनलों (आज तक, स्टार न्यूज, एनडीटीवी 24×7, सीएनएन-आईबीएन, डीडी न्यूज और जी न्यूज) के प्राइम टाइम (शाम 7 बजे से 11 बजे) में प्रसारित खबरों के अध्ययन में पाया कि छोटे पर्दे पर दो बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा का बोलबाला रहा और पार्टी केंद्रित कवरेज के दो तिहाई से थोड़ा कम (66.23 प्रतिशत) न्यूज टाइम इन्हीं दोनों दलों पर केंद्रित रहा। अध्ययन में पता चला है कि सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को सबसे ज्यादा कवरेज मिली। पार्टी केंद्रित कवरेज का 33.66 फीसदी न्यूज टाइम कांग्रेस से जुड़ी खबरों पर खर्च हुआ। दूसरे नंबर पर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा है। भाजपा से जुड़ी खबरों पर पार्टी केंद्रित कवरेज का 32.57 फीसदी न्यूज टाइम खर्च किया गया। क्षेत्रीय दलों में सबसे ऊपर समाजवादी पार्टी है। पार्टी केंद्रित कवरेज का 5.84 प्रतिशत न्यूज टाइम पाकर यह क्षेत्रीय दलों में पहले और कुल मिला कर तीसरे पायदान पर है। वाम दलों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पहले स्थान पर है। शीर्ष सूची में चौथे पायदान पर खड़ी इस पार्टी को पार्टी केंद्रित कवरेज का कुल 4.79 प्रतिशत न्यूज टाइम हासिल हुआ। उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और देश के अधिकतर राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी शीर्ष दलों की फेहरिस्त में 5वें पायदान पर रही। इसे पार्टी केंद्रित कवरेज का कुल 3.80 प्रतिशत न्यूज टाइम मिला है। वहीं बिहार की राजनीति से राष्ट्रीय दल तक का सफर तय करने वाले राष्ट्रीय जनता दल की खबरों पर 2.23 न्यूज टाइम खर्च किया गया। यह कवरेज के मामले में 6ठें पायदान पर है। महाराष्ट्र से चल कर राष्ट्रीय फलक पर फैली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 7वें स्थान पर मौजूद है। इस पार्टी की खबरों पर पार्टी केंद्रित कवरेज का 2.20 प्रतिशत खर्च किया गया।
दक्षिण भारतीय दलों की अनदेखी
गौर फरमाने की बात है कि अगर जद-यू या राजद का प्रभाव बिहार की 40 सीटों पर है तो द्रमुक या अन्नाद्रमुक का प्रभाव तमिलनाडु की 42 सीटों पर है। सत्ता के समीकरण में जया- करुणानिधि की हैसियत कमोबेश लालू- नीतिश- रामविलास जैसी ही है। फिर भी न तो व्यक्तिगत तौर पर दक्षिण भारत के नेताओं को, न ही पार्टी के स्तर पर उनकी पार्टियों को कोई खास कवरेज मिली है। तीसरे मोर्चे की अवधारणा को टीवी चैनलों ने स्वीकारा लेकिन तीसरा मोर्चा शीर्ष दलों की सूची में 8वें स्थान पर रहा। बिहार की सत्ताधारी पार्टी जद (यू) और उडीसा की बीजद भी कवरेज के मामले में शीर्ष दस दलों में शामिल हैं। शीर्ष दस पार्टियों के अलावा शिवसेना (1.10) इकलौती पार्टी है जिसे पार्टी केंद्रित कवरेज का एक प्रतिशत न्यूज टाइम हासिल हुआ है. लोजपा को इससे थोड़ा सा कम (0.97) न्यूज टाइम हासिल हुआ। खास बात यह रही कि शीर्ष 10 दलों में तीन जद (राजद, जदयू और बीजद) शामिल हैं। माकपा और बीजद को छोडकर शेष दलों का आधार मुख्य हिंदी भाषी क्षेत्र खासकर यूपी-बिहार में है। कांग्रेस और भाजपा का थोड़ा बहुत आधार अहिन्दीभाषी प्रदेशों में भी है लेकिन शीर्ष दस की फेहरिस्त में शुद्ध रूप से अहिन्दीभाषी क्षेत्र की कोई पार्टी नहीं है।
चैनलों की नजर में वरूण सबसे बड़े नेता
राजनीतिक शख्सियत को कवरेज के अध्ययन से यह बात आश्चर्यजनक रूप से सामने आयी कि राजनीति में नये-नये आये वरूण गांधी राजनीति के पुराने दिग्गजों से काफी आगे निकल गये। सीएमएस ने पाया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस की ओर से भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश किये जाने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी तीनों को खबरिया चैनलों पर जितना कवरेज मिला, उतना कवरेज अकेले वरूण गांधी को मिला जो उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की एक चुनावी सभा में अपने कथित भड़काऊ भाशण के बाद अचानक सुर्खियों में आ गये और खबरिया चैनलों पर छा गये।
नरेन्द्र मोदी से चार गुना कवरेज वरूण गांधी को
सीएमएस के मीडिया सेल के इस अध्ययन से यह भी पता चला कि प्रमुख समाचार चैनलों ने भाजपा के स्टार प्रचारक और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को जितना कवरेज दिया, उससे चार गुना अधिक कवरेज वरूण गांधी को दिया। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी की तुलना में वरूण गांधी को दोगुना कवरेज मिला। यह अध्ययन लोकसभा चुनाव की घोषणा से एक दिन पूर्व एक मार्च से लेकर अंतिम चरण के मतदान के लिये प्रचार समाप्त होने के दिन 11 मई तक किया गया। इस अध्ययन में जिन चैनलों को शामिल किया गया, वे हैं- आजतक, एनडीटीवी 24×7, जी न्यूज, स्टार न्यूज, डीडी न्यूज और सीएनएन-आईबीएन। सीएमएस के इस अध्ययन के तहत एक मार्च से 11 मई तक इन चैनलों पर प्राइम टाइम (शाम सात बजे से लेकर रात ग्यारह बजे तक) पर होने वाले प्रसारण का विश्लेशण किया गया। इस अध्ययन से यह पता चला कि वरूण गांधी को अन्य राजनीतिक नेताओं की तुलना में सबसे अधिक 1444 मिनट का कवरेज मिला। टीवी कवरेज के मामले में दस स्थानों पर आने वाले नेताओं में लाल कृष्ण आडवाणी, राहुल गांधी, डा. मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, संजय दत्त, लालू प्रसाद यादव, नरेन्द्र मोदी, मायावती और प्रियंका गांधी शामिल हैं। प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित किये जा रहे आडवाणी कवरेज के मामले में दूसरे नम्बर पर रहे जिन्हें वरूण गांधी की तुलना में करीब आधा अर्थात 761 मिनट का कवरेज मिला। भाजपा के हिन्दुत्व के मुख्य चेहरे के रूप में प्रचारित किये जाने वाले नरेन्द्र मोदी कवरेज के मामले में आठवें स्थान पर रहे जिन्हें वरूण गांधी की तुलना में एक चौथाई अर्थात 395 मिनट का कवरेज मिला।
वरूण से पीछे रहे राहुल
कांग्रेस के युवराज माने जाने वाले राहुल गांधी कवरेज के मामले में अपने चचेरे भाई वरूण गांधी के बाद दूसरे स्थान पर रहे जिन्हें 582 मिनट का कवरेज मिला। फिल्मों से राजनीति में सक्रिय हुये संजय दत्त इस सूची में आश्चर्यजनक रूप से शामिल हो गये जो कवरेज के मामले में 463 मिनट के साथ छठे स्थान पर रहे। अपने बयानों के लिये चर्चा में बने रहने वाले रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव टेलीविजन कवरेज में थोड़ा पीछे सातवें नम्बर पर रहे जिन्हें 454 मिनट का समय मिला। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती नौवें नम्बर पर रही जिन्हें 344 मिनट का कवरेज मिला। टेलीविजन चैनलों में चुनावी कवरेज में दक्षिण के नेताओं को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। दक्षिण की जयललिता ही एकमात्र ऐसी नेता रहीं जो सबसे अधिक कवरेज पाने वाले 20 नेताओं में शुमार हो पायीं। कुछ धड़ों की ओर से प्रधानमंत्री के रूप में नाम उछाले जाने वाले शरद पवार कवरेज के मामले में 13 वें स्थान पर रहे। समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव 14 वें स्थान पर रहे जिन्हें 240 मिनट का समय दिया गया जबकि उनकी पार्टी के अमर सिंह को मुलायम की तुलना में अधिक 254 मिनट का समय मिला और वह कवरेज के मामले में 12 वें नम्बर पर रहे। इन चैनलों ने 73 दिनों के दौरान प्राइम टाइम पर चुनावी कवरेज पर 25 हजार 266 मिनट का समय दिया जिसमें 14 हजार 315 मिनट का समय राजनीतिक हस्तियों पर खर्च किया गया।
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लेखक विनोद विप्लव पत्रकार, कहानीकार और ब्लागर हैं। वे इन दिनों ‘यूनीवार्ता’ में विशेष संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं। उनसे [email protected] या 9868793203 के जरिए संपर्क कर सकते हैं।
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