हिंदी दिवस पर विशेष (4) : साइबर युग में हिंदी दिवस का वही महत्व नहीं है जो आज से बीस साल पहले था। संचार क्रांति ने पहली बार भाषा विशेष के वर्चस्व की विदाई की घोषणा कर दी है। संचार क्रांति के पहले भाषा विशेष का वर्चस्व हुआ करता था, संचार क्रांति के बाद भाषा विशेष का वर्चस्व स्थापित करना संभव नहीं है। अब किसी भी भाषा को हाशिए पर बहुत ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता। अब भारत की सभी 22 राजकाज की भाषाओं का फॉण्ट मुफ्त में उपलब्ध है। भारतीय भाषाओं का साफ्टवेयर बनना स्वयं में भाषायी वर्चस्व की समाप्ति की घोषणा है। संचार क्रांति ने यह संदेश दिया है कि भाषा अब लोकल अथवा स्थानीय नहीं ग्लोबल होगी।
भाषा की स्थानीयता की जगह भाषा की ग्लोबल पहचान ने ले ली है। अब प्रत्येक भाषा ग्लोबल है। कोई भाषा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा आंचलिक नहीं रह गई है। संचार क्रांति में नया भाषायी पैराडाइम संपर्क बढाता है, भाषा की स्थानीयता खत्म करता है। बहुभाषिकता पैदा करता है। अब विभिन्न भाषाओं में लोग आसानी के साथ संवाद कर रहे हैं। एक- दूसरे को संदेश और सामग्री संप्रेषित कर रहे हैं। अब हिंदी की स्थानीय अथवा राष्ट्रीय स्वीकृति की समस्या नहीं है। बल्कि संचार क्रांति ने हिंदी को ग्लोबल स्वीकृति दिलायी है। आज वे कंपनियां और कारपोरेट घराने हिंदी का कारोबार करने के लिए मजबूर हैं जो कभी यह मानते थे कि वे सिर्फ अंग्रेजी का ही व्यवसाय करेंगे। संचार क्रांति के दबावों के कारण ही भारत सरकार ने तकरीबन 1300 करोड रूपया भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेयर के निर्माण और मुफ्त सप्लाई पर खर्च किया है। भाषाओं के उत्थान के लिए इतना ज्यादा पैसा पहले कभी खर्च नहीं किया गया। इसका सुफल जल्दी ही सामने आने लगा है। अब तेजी से हिंदी और भारतीय भाषाओं में भाषान्तरण हो रहा है भाषाएं पहले की तुलना में आज भाषान्तरण के जरिए एक-दूसरे से आदान -प्रदान कर रही हैं। भाषाओं में तत्क्षण संवाद की संभावना पहले कभी नहीं थीं। व्यक्ति के मिलने के बाद ही संवाद होता था, अब तो व्यक्ति नहीं भाषाएं मिल रही हैं। भाषाओं के लिए संचार क्रांति रैनेसां लेकर आयी है।
नाइन इलेवन की घटना के बाद अमेरिका में जिस तरह के सुरक्षा उपाय किए गए हैं उसके कारण वहां पर सुपर कम्प्यूटर में सारी दुनिया के सभी भाषाओं के ईमेल और तमाम किस्म की सामग्री की छानबीन अहर्निश चलती रहती है। इसके कारण अमेरिका ने तय किया कि वह अपने देश में स्कूलों में चीनी, हिंदी, रूसी आदि भाषाओं के पठन-पाठन की खास व्यवस्था करेगा। सुरक्षा कारणों और सैन्य वर्चस्व को बनाए रखने के लिहाज से अमेरिका में हिंदी के अध्यापन की व्यापक व्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है। न्यूज कारपोरेशन, डिजनी, सीएनएन, सोनी, एमटीवी आदि कंपनियां भारत के मीडिया बाजार में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले हिंदी में चैनल, प्रेस और मीडिया प्रोडक्ट लेकर आए हैं। अब वे देशी समाचारपत्रों में पैसा लगा रहे हैं।
बांग्ला के आनंद बाजार प्रकाशन, जागरण प्रकाशन, अमर उजाला प्रकाशन, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि में विदेशी कंपनियों का पूंजी निवेश इस बात का संकेत है कि भाषायी मीडिया में बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियां नतमस्तक होकर पैसा लगाने आ रही हैं और अंग्रेजी की तुलना में देशज भाषाओं की महत्ता को स्वीकार कर रही हैं। इस क्रम में हिंदी को स्वाभाविक बढत मिली है, अन्य भाषाएं भी इस प्रक्रिया में अपना विकास करेंगी। इस अर्थ में यह भाषाओं के नवजागरण का दौर है। हिंदी में अनुवाद और डबिंग का इतना व्यापक बाजार पैदा हुआ है इसके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं था। तकरीबन 12 हजार करोड़ रुपये का बाजार है। विज्ञापनों में हिंदी विज्ञापन अकेले 7-8 हजार करोड के बाजार को घेरे हुए हैं। पहले अनुदित विज्ञापन होते थे अब हिंदी के मौलिक विज्ञापन तैयार हो रहे हैं।
कोई भाषा कितनी ताकतवर है यह इस बात से तय होता है कि व्यापार और आर्थिक मीडिया उसमें है या नहीं। अंग्रेजी के बाद हिंदी अकेली भाषा है जिसमें व्यापारिक चैनल हैं, जैसे एनडीटीवी प्रोफिट, जी बिजनेस, सीएनबीसी आवाज आदि। इसी तरह बिजनेस स्टैंडर्ड, इकोनॉमिक टाइम्स जैसे आर्थिक अखबार सस्ते दामों पर हिंदी में भी निकल रहे हैं। आर्थिक अखबार और टीवी चैनलों का हिंदी में आना, हिंदी में धड़ाधड़ इंटरनेट सामग्री का आना और तेजी से ब्लॉग संस्कृति का विकास इस बात का संकेत हैं कि हिंदी अब ग्लोबल भाषा है। सही अर्थों में देशी विदेशी नागरिकों और देशों की भाषा है। सैटेलाइट हिंदी चैनलों के करोड़ों दर्शक भारत के बाहर हैं यह सब संभव हुआ है संचार क्रांति, उपग्रह क्रांति, कम्प्यूटर और डिजिटलाईजेशन के कारण।
कहने का तात्पर्य यह है हिंदी आज वास्तव अर्थों में ग्लोबल भाषा है, एक ही साथ ग्लोबल स्तर पर हिंदी मीडिया ग्लोबल स्तर पर संचार कर रहा है। यह हिंदी का नया पैराडाइम है। यह राज्य, कारपोरेट जगत और तकनीकी कैद से मुक्त एक नए रैनेसां की शुरुआत है। आओ हम संचार क्रांति का स्वागत करें और अपने को हिंदी संस्कृति के साथ ‘ई’ साक्षर भी बनाएं। ‘ई’ साक्षर के बिना हम और हमारी भाषा नहीं बचेगी। आज प्रत्येक हिंदीभाषी की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने को संचार क्रांति से जोड़े और अपने ‘ई’ साक्षर बनाएं।
लेखक जगदीश्वर चतुर्वेदी कोलकाता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर हैं। वे पिछले 20 वर्षों से मीडिया और हिन्दी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन और अनुसंधान से जुड़े हैं। मीडिया और साहित्यालोचना पर जगदीश्वर की 30 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हैं। आपसे संपर्क [email protected] या फिर 09331762360 के जरिए किया जा सकता है। जगदीश्वर दुनिया के सबसे बड़े हिंदी ब्लाग भड़ास के सदस्य होने के साथ-साथ खुद का भी एक ब्लाग लिखते हैं। यह आलेख भड़ास ब्लाग से साभार लिया गया है।