: मुंबई विवि के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा : नवभारत टाईम्स के एनबीटी बनने पर चिंता : मुंबई : युवा पीढी के नाम पर कुछ अखबार हिंदी को हिंगलिश बनाने पर तुले हुए हैं. मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की तरफ से आयोजित परिचर्चा में बुद्धिजीवियों की यह चिंता उभर कर सामने आई.
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‘हिंदी को ऐसे कई केशव राय चाहिए’
: विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देने वाले कई युवा व प्रतिभाशाली हस्तियों को विश्व हिंदी सेवा सम्मान से विभूषित किया गया : अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद और विश्व हिंदी सेवा सम्मान अलंकरण समारोह उज्जैन में सम्पन्न :
महाबलशाली देश मजबूर हैं हिंदी सीखने के लिए
[caption id="attachment_18135" align="alignleft" width="151"]दयानंद पांडेय का संबोधन[/caption]”कोई भाषा बाज़ार और रोजगार से आगे बढती है। हिंदी अब बाज़ार की भाषा तो बन ही चुकी है, रोजगार की भी इसमें अपार संभावनाएं हैं। अब बिना हिंदी के किसी का काम चलने वाला नहीं है। बैंक किसी भी बाज़ार की धुरी हैं। तो बैंक हिंदी को आगे बढाने में मह्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि कोई भी भाषा विद्वान नहीं बनाते, जनता बनाती है। अपने दैनंदिन व्यवहार से। इसीलिए बैंकों की भूमिका हिंदी को आगे बढाने में बहुत बड़ी है।”
हिन्दी दीन-हीन नहीं, प्रभावशाली भाषा
: माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में हिन्दी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित : भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में हिन्दी दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने इस अवसर पर कहा कि हिन्दी भाषा को दीन-हीन मानना एक गलत सोच है।हिन्दी भाषा दीन-हीन नहीं बल्कि दिन-ब-दिन प्रभावशाली और सम्पन्न हो रही है।
राजभाषा विभाग के मुखिया ने किया शर्मसार
इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह में चिदंबरम की अंग्रेजियत : देश में इस समय हिंदी पखवाड़ा के साथ-साथ राजभाषा हिंदी के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, स्वायत्त संगठनों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, आदि में हिंदी के प्रचार, प्रसार व कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की हिंदी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। दूसरी तरफ राजभाषा विभाग के मुखिया अर्थात केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम न सिर्फ राजभाषा नियम व कानून का घोर उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि उन्होंने देश के करोड़ों हिंदी भाषियों के मुंह पर जूती मारने का प्रयास किया है। बात 14 सितंबर, 2009 को नई दिल्ली में आयोजित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह की है। हालांकि इस घटना को बीते कई दिन गुजर चुके हैं लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर लोगों का ध्यान कैसे नहीं गया, इसका बेहद अफसोस है। इसलिए एक पत्रकार होने के नाते हमें इसके खिलाफ आवाज उठाने का हक है।
हिन्दी दिवस पर तोहफा, ‘कथादेश’ ऑनलाइन
हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं में अग्रणी ‘कथादेश’ को पाठक अब इंटरनेट पर भी पढ़ पाएंगे। www.HindiLok.com की पहल पर कथादेश ऑनलाइन हो गई। आगरा के केंद्रीय हिन्दी संस्थान के नज़ीर सभागार में कथादेश के ऑनलाइन संस्करण का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं सेंट जोंस कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष (हिन्दी) श्री भगवान शर्मा ने कंप्यूटर पर एक क्लिक के साथ इसे लोकार्पित किया। हालांकि, ‘कथादेश’ का मीडिया विशेषांक भी हिन्दीलोक डॉट कॉम पर उपलब्ध था, लेकिन औपचारिक तौर पर इसकी शुरुआत सितंबर अंक के साथ की गई है।
विश्वविद्यालय ने हिंदी का पेपर खत्म किया
हिंदी दिवस पर विशेष (5) : हिन्दी है हम वतन हैं हिन्दुस्तान हमारा ……इकबाल साहब की इन पंक्तियों को राजधानी दिल्ली का गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय नहीं मानता। तभी तो विश्वविद्यालय ने यह फरमान जारी कर दिया है कि हिंदी का पेपर पत्रकारिता स्नातक पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए। इससे साबित होता है कि इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के लिए हिंदी जैसी राष्ट्रीय सांस्कृतिक भाषा का कोई महत्व नहीं है। हिंदी दिवस महज एक सरकारी एजेंडा बनकर रह गया है। हर साल हिन्दी दिवस से हिंदी सप्ताह शुरू होकर पूरे सात दिन तक चलता है। इस आयोजन पर लाखों रुपये का राजस्व खर्च किया जाता है। सरकार के हिंदी प्रेम की धमक महज कागजी साबित होकर रह जाती है।
हिंदी समृद्धि के लिए निश्चल सम्मानित
[caption id="attachment_15761" align="alignleft"]सम्मानित किए जाने के बाद समारोह को संबोधित करते निश्चल भटनागर[/caption]हिंदी भाषा को समृद्ध करने और ग्रामीणों की समस्याओं के निदान में योगदान करने के लिए दैनिक जागरण दिल्ली के स्टेट ब्यूरो के संवाददाता निश्चल भटनागर को हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर सम्मानित किया गया। उन्हें चांदी का मुकुट व पगड़ी पहनाकर यह सम्मान दिया गया। सम्मान समारोह का आयोजन दिल्ली के उप महापौर मास्टर आजाद सिंह की तरफ से मुण्डका स्थित अभिनंदन वाटिका में किया गया था। इस अवसर पर वक्ताओं ने पत्रकार निश्चल भटनागर के कार्य के प्रति समर्पण की तारीफ की। बताया गया कि निश्चल भटनागर के कारण ही नरेला, बवाना के किसानों की समस्याओं का समाधान हो सका।
हिंदी आज वास्तव में ग्लोबल भाषा है
हिंदी दिवस पर विशेष (4) : साइबर युग में हिंदी दिवस का वही महत्व नहीं है जो आज से बीस साल पहले था। संचार क्रांति ने पहली बार भाषा विशेष के वर्चस्व की विदाई की घोषणा कर दी है। संचार क्रांति के पहले भाषा विशेष का वर्चस्व हुआ करता था, संचार क्रांति के बाद भाषा विशेष का वर्चस्व स्थापित करना संभव नहीं है। अब किसी भी भाषा को हाशिए पर बहुत ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता। अब भारत की सभी 22 राजकाज की भाषाओं का फॉण्ट मुफ्त में उपलब्ध है। भारतीय भाषाओं का साफ्टवेयर बनना स्वयं में भाषायी वर्चस्व की समाप्ति की घोषणा है। संचार क्रांति ने यह संदेश दिया है कि भाषा अब लोकल अथवा स्थानीय नहीं ग्लोबल होगी।
उसी हिंदी पट्टी में उदास है हिंदी
हिंदी दिवस पर विशेष (3) : जिस पट्टी के लोगों ने हिन्दी को सिर पर बिठाकर हिन्दुस्तान के माथे की बिन्दी बनाया उसी पट्टी में हिन्दी उदास है। यहां के उभरते लोगों को हिन्दी से लगाव नहीं है। अंग्रेजी की चाह ने उन्हें त्रिशंकु बना दिया है। उनकी जमीन दरक रही है लेकिन वे हैं कि अंग्रेजी के लिए उड़ते जा रहे हैं। तभी तो गली गली में हर दिन कान्वेंट स्कूल खुल रहे हैं। अंग्रेजी स्पीकिंग कोर्स में बैठने की जगह नहीं मिल रही है। खाते पीते घरों में अब बच्चों से अंग्रेजी में बात करने का चलन बढ़ता जा रहा है। गोरखपुर-बस्ती मण्डल हिन्दी का गढ़ रहा है।
विलाप मत कीजिए, संकल्प लीजिए
हिंदी दिवस पर विशेष (2) : राष्ट्रभाषा के रूप में खुद को साबित करने के लिए आज वस्तुतः हिंदी को किसी सरकारी मुहर की जरूरत नहीं है। उसके सहज और स्वाभाविक प्रसार ने उसे देश की राष्ट्रभाषा बना दिया है। वह अब सिर्फ संपर्क भाषा नहीं है, इन सबसे बढ़कर वह आज बाजार की भाषा है, लेकिन हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर होने वाले आयोजनों की भाषा पर गौर करें तो यूँ लगेगा जैसे हिंदी रसातल को जा रही है। यह शोक और विलाप का वातावरण दरअसल उन लोगों ने पैदा किया है, जो हिंदी की खाते तो हैं, पर उसकी शक्ति को नहीं पहचानते। इसीलिए राष्ट्रभाषा के उत्थान और विकास के लिए संकल्प लेने का दिन ‘सामूहिक विलाप’ का पर्व बन गया है।
सरकारी श्राद्ध की नहीं, श्रद्धा की जरूरत
हिंदी दिवस पर विशेष (1) : भाषा न सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन अपितु किसी देश, किसी वर्ग का गौरव होती है। यही वह माध्यम है जिससे किसी से संपर्क साधा जा सकता है या किसी तक अपने विचारों को पहुंचाया जा सकता है। भारतवर्ष की प्रमुख भाषा हिंदी तो जैसे इस देश की पहचान ही बन गयी है। हिंदुस्तान से हिंदी का क्या नाता है यह किसी से छिपा नहीं है। भारतमाता के माथे की बिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी। लेकिन आज अपने ही देश में यह उपेक्षित है। सरकार की ओर से हिंदी की श्री वृद्धि और इसके प्रचार-प्रसार के नाम पर हर साल हिंदी दिवस के दिन इसका सालाना श्राद्ध मनाया जाता है। संयोग से इस साल यह दिवस पितृपक्ष में ही पड़ गया है। लाखों रुपयों का बजट बनता है, जलसे होते हैं, कुछ कर्मचारियों को पुरस्कार बंटते हैं और हो जाता है हिंदी का विकास।