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राजभाषा विभाग के मुखिया ने किया शर्मसार

इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह में चिदंबरम की अंग्रेजियत : देश में इस समय हिंदी पखवाड़ा के साथ-साथ राजभाषा हिंदी के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, स्वायत्त संगठनों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, आदि में हिंदी के प्रचार, प्रसार व कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की हिंदी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। दूसरी तरफ राजभाषा विभाग के मुखिया अर्थात केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम न सिर्फ राजभाषा नियम व कानून का घोर उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि उन्होंने देश के करोड़ों हिंदी भाषियों के मुंह पर जूती मारने का प्रयास किया है। बात 14 सितंबर, 2009 को नई दिल्ली में आयोजित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह की है। हालांकि इस घटना को बीते कई दिन गुजर चुके हैं लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर लोगों का ध्यान कैसे नहीं गया, इसका बेहद अफसोस है। इसलिए एक पत्रकार होने के नाते हमें इसके खिलाफ आवाज उठाने का हक है।

<p align="justify"><font color="#993300">इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह में चिदंबरम की अंग्रेजियत :</font> देश में इस समय हिंदी पखवाड़ा के साथ-साथ राजभाषा हिंदी के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, स्वायत्त संगठनों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, आदि में हिंदी के प्रचार, प्रसार व कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की हिंदी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। दूसरी तरफ राजभाषा विभाग के मुखिया अर्थात केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम न सिर्फ राजभाषा नियम व कानून का घोर उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि उन्होंने देश के करोड़ों हिंदी भाषियों के मुंह पर जूती मारने का प्रयास किया है। बात 14 सितंबर, 2009 को नई दिल्ली में आयोजित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह की है। हालांकि इस घटना को बीते कई दिन गुजर चुके हैं लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर लोगों का ध्यान कैसे नहीं गया, इसका बेहद अफसोस है। इसलिए एक पत्रकार होने के नाते हमें इसके खिलाफ आवाज उठाने का हक है।</p>

इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह में चिदंबरम की अंग्रेजियत : देश में इस समय हिंदी पखवाड़ा के साथ-साथ राजभाषा हिंदी के 60 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों, स्वायत्त संगठनों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, आदि में हिंदी के प्रचार, प्रसार व कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह की हिंदी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। दूसरी तरफ राजभाषा विभाग के मुखिया अर्थात केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम न सिर्फ राजभाषा नियम व कानून का घोर उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि उन्होंने देश के करोड़ों हिंदी भाषियों के मुंह पर जूती मारने का प्रयास किया है। बात 14 सितंबर, 2009 को नई दिल्ली में आयोजित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह की है। हालांकि इस घटना को बीते कई दिन गुजर चुके हैं लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर लोगों का ध्यान कैसे नहीं गया, इसका बेहद अफसोस है। इसलिए एक पत्रकार होने के नाते हमें इसके खिलाफ आवाज उठाने का हक है।

हम अपने कुछ शुभचिंतकों (जो उस समारोह में मौजूद थे) की सलाह पर इस मुद्दे को लिखने का साहस जुटा रहे हैं। दरअसल, स्वयं राजभाषा विभाग के मुखिया और देश के केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने 14 सितंबर, 2009 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार समारोह में अंग्रेजी में भाषण देकर राजभाषा हिंदी का भारी अपमान किया है जो कतई क्षमा के लायक नहीं है। श्री चिदंबरम राजभाषा विभाग के मुखिया हैं और वही हिंदी में न बोले तो फिर बोलने के लिए क्या बचा है।

राजभाषा हिंदी के क्षेत्र में इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार देश का सर्वोच्च राजभाषा पुरस्कार है और इसका आयोजन हर साल हिंदी दिवस के अवसर पर होता है। इसमें उन गिने चुने कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों, संस्थानों को पुरस्कृत किया जाता है जहां राजभाषा हिंदी का कार्यान्वयन सबसे अधिक होता है और भारत सरकार द्वारा निर्धारित राजभाषा के लक्ष्यों को पूरा किया जाता है। इन पुरस्कारों को प्राप्त करने के लिए समारोह में संबंधित कार्यालय के प्रशासनिक प्रमुख/वरिष्ठतम अधिकारी शामिल होते हैं। पुरस्कार विजेता इस पुरस्कार को पाकर अत्यंत गौरवांवित होते हैं लेकिन पी. चिदंबरम ने उस दिन राष्ट्रपति के समक्ष अपना भाषण अंग्रेजी में देकर सभी लोगों का सिर झुका दिया।

हिंदी न आना अलग बात है लेकिन हिंदी के साथ अन्याय करना कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यदि श्री चिदंबरम को हिंदी नहीं आती है तो वे समारोह में अपने भाषण के हिंदी रूप को अंग्रेजी में लिखकर भी पढ़ सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा करना तो दूर लोगों से इतना भी नहीं कहा कि उन्हें हिंदी नहीं आती है इसलिए उन्हें अंग्रेजी में बोलने की इजाजत दी जाए। उन्होंने तो महामहिम राष्ट्रपति महोदया प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के समक्ष फर्राटेदार अंग्रेजी में भाषण देने में ही अपनी गरिमा समझी जिससे पूरा देश शर्मशार हो गया। मेरे जैसे हिंदी भाषियों की राय यही है कि पी. चिदंबरम देशवासियों से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगे। साथ ही, भविष्य में राजभाषा विभाग का मुखिया पी. चिदंबरम जैसे राजभाषा विरोधी व्यक्ति को न बनाया जाए।


लेखक आफताब आलम मुंबई के पत्रकार हैं। उनसे संपर्क 09224169416 या [email protected] के जरिए कर सकते हैं।

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