धीरज जी ने मीडिया और सरकार को आड़े हाथो लेते हुए काफी कुछ लिखा है पर वो जल्दबाजी में एक गलती कर गए. मनु शर्मा उर्फ सिद्धार्थ वशिष्ठ के मामले में मनु को पैरोल मिली, यह बात सही है पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कब फटकार लगाई, यह बात धीरज ही बता सकते हैं? कोर्ट में अभी तक पैरोल को लेकर कोई पत्र नहीं दाखिल किया गया है. किसी भी जुर्म में दोषी व्यक्ति, जिसको कोर्ट ने सजा सुना रखी है, उसके पैरोल पर विचार करने का अधिकार राज्य सरकार के पास सुरक्षित होता है और इसी अधिकार के तहत मनु को दिल्ली सरकार के द्वारा पैरोल पर बाहर जाने की इजाजत मिली. हाई कोर्ट ने सरकार से तिहाड़ में बंद बंदियों की विचाराधीन पैरोल याचिका की सूचना मांगी थी, न कि खास तौर सिर्फ मनु शर्मा की.
दूसरी बात उन्होंने यह कही है कि हरयाणा चुनाव प्रचार में मनु अपने पिता विनोद शर्मा के लिए चुनाव प्रचार कर रहा था, यह किसी ने नहीं छापा न दिखाया? खबर ‘मैनेज’ कर दी गई थी. तो जहां तक मेरी जानकारी है, धीरज जी जिस मीडिया संस्थान से जुड़े़ हैं, उसकी पूरी टीम भी वहां चुनाव प्रचार को कवर करने में जुटी हुई थी. क्या उनकी टीम ने भी खबर को ‘मैनेज’ करने में भूमिका अदा की थी? पत्रकार महोदय, चौथे स्तंभ का कोई भी पहिया अदना नहीं होता है. उसके लिए देश पहले है, मनु शर्मा बाद में. खबर खाना नहीं है, जिसे हम बासी और ताजा समझ कर खाएं. खबर तो खबर है, खबर की अहमियत उसके आने पर पैदा हो जाती है.
मनु की गलती सिर्फ यह थी कि वो मनु शर्मा है, एक धनाढ्य घर का बेटा, एक राजनेता का पुत्र इसलिए सबसे ज्यादा खामियाजा भी उसे उठाना पड़ा है. पर गलती उसने की है, इसलिए वो सजा पाने का भी हक़ रहता है. पर एक कटु सत्य यह भी है कि न जाने कितनी लड़कियां हर रोज़ मौत के घाट उतार दी जाती हैं, कभी इज्जत के नाम पर तो कभी किसी और कारणों से, लेकिन उनके हत्यारों को सजा दिलवाने कोई नहीं आता, न मीडिया, न सरकार और न ही आम लोग. अभी कुछ रोज पहले की ही घटना है. दिल्ली मे सरेराह एक महिला चलती बस में गुंडों के हाथों पिटती रही, पर कोई उसकी मदद करने आगे नहीं आया. यहां यह याद रखने की बात है कि यह वही दिल्ली है जो जेसिका के लिए जस्टिस मांग रहा था, मोमबत्तियां बेचने वालों की आमदनी में इजाफा कर रहा था, पर उस महिला की मदद को आगे नहीं आया, जो गुंडों से पिट रही थी. अफजल जैसे कितने देशद्रोही यहीं इसी दिल्ली में तिहाड़ में रहते हैं, पर हम हैं कि नहीं, बस मनु के नाम पर ही लिखना है. किसी सज्जन ने कहा कि जब मनु को दो महीनों की पैरोल मिली तो विकास को सिर्फ एक दिन की क्यों? मतलब उसे एक महीने के लिए बाहर भेज कर तीसरे कत्ल का इन्तजार करना चाहिये था. पर अभी इस पर चर्चा करने का उचित समय नहीं आया है.
पिछले कुछ दिनों से मनु शर्मा से संबंधित खबरें लगातार मीडिया में सुर्खिया बटोरती रहीं. मनु के साथ एक और भी खबर गौर करने वाली थी कि मनु का झगड़ा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर वाईएस डडवाल के बेटे से हुआ था. अगर वो डडवाल का बेटा नहीं होता तो शायद पुलिस इतनी जल्दी हरकत में नहीं आती और बात आई गई हो जाती. डडवाल का मीडिया प्रेम तो जगजाहिर है. आपने लिखा है उनके पारदर्शी व्यक्तित्व के बारे में. जुर्म तो भाई जुर्म ही है, चाहे डडवाल का बेटा करे या कोई और, पर यहां तो शेर को सवा शेर मिल गया न. एक तरफ मनु तो दूसरी तरफ जूनियर डडवाल. कम कौन है. मीडिया ने इस खबर पर पिछले दस सालों में बहुत रो-पीट लिया है, टीआरपी भी आपके शब्दों मे बटोर ली है, पर अब क्या. शर्मा फेमिली से बड़ी समस्या अभी हमारे सामने चाइना और पाकिस्तान प्रोजेक्टेड आतंकवाद का है, तो आत्ममंथन किसे करना चाहिये, यह आप जरूर सोचियेगा.
श्वेता रश्मि पत्रकार हैं और प्रोड्यूसर के पद पर महुआ न्यूज में कार्यरत हैं. वे फोकस टीवी, हमार टीवी, इंडिया न्यूज और बीएजी में काम कर चुकी हैं. काफी समय से नेट पत्रकारिता में भी सक्रिय हैं. श्वेता कई समाजिक संगठनों और एनजीओ से जुड़ी रही हैं. पत्रकारिता के साथ-साथ पेंटिंग भी उनका पैशन है.