सूचना का अधिकार कानून के प्रभावी प्रयोग करने वाले कार्यकर्ताओं और इस कानून के आधार पर कारगर निर्णय देने वाले अधिकारियों को सम्मानित करने के उद्देश्य से शुरू किया गए आरटीआई अवार्ड पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कार्यकर्ताओं ने इस संबंध में पारदर्शिता न बरतने का आरोप लगाया है। यही नहीं, कुछ सूचना आयुक्तों ने भी इस अवार्ड पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं।
सूचना के अधिकार पर काम करने वाले कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल ने इस अवार्ड से संबंधित 18 सवाल पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन से पूछे हैं। आमिर खान ने इसमें शामिल होने के लिए कितना पैसा लिया, इस कार्यक्रम में खर्च हुए पैसों का ब्यौरा, पिछले तीन वर्षों में इस संस्थान के लोगों द्वारा की गई यात्राओं के खर्च का ब्यौरा सहित यह अवार्ड जिन लोगों को दिया गया, उनके चयन का आधार क्या था, इस अवार्ड को आयोजित करने के लिए कितना फंड मिला और किसने दिया? सहित कई प्रश्न शामिल हैं।
बिहार के कार्यकर्ता शिवप्रकाश ने इस प्रक्रिया और आयोजकों पर आरोप लगाया कि यह अपने करीबी लोगों को दिया गया है, जिन्होंने कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया है। यह हास्यास्पद है कि बिहार से जिसे नामित किया गया है, उसे न मीडिया के लोग जानते हैं और न ही अधिकारी। इसकी चयन प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए एक पूर्व सूचना आयुक्त ने बताया कि उनके स्वयं के निर्णय बहुत प्रभावी थे और बाद में सरकार ने उनके द्वारा लिए गए आदेशों पर कार्यवाई की, लेकिन इस अवार्ड में कई महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों की अनदेखी की गई।
गौरतलब है कि इस कार्यक्रम के आयोजकों में एक प्रमुख मीडिया चैनल और अखबार भी शामिल था। इस संबंध में कार्यक्रम के आयोजकों में से एक अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अवार्ड में नामांकन से लेकर इसे विश्लेषित करने और अवार्ड देने में कुल 50 लाख का खर्च आया, जिसमें 25 लाख इंफोसिस के नारायण मूर्ति ने और 25 लाख टाटा फाउंडेशन ने दिया। अब चैनल ने कितना खर्च किया, इससे हमारा कुछ लेना देना नहीं है। कुल 1150 नामांकन भारत भर से आए थे। इसके अलावा 52000 आदेशों का भी विश्लेषण किया गया। इसके बाद भी किसी को परेशानी है तो वह संबंधित जानकारियां ले सकता है।