‘नया ज्ञानोदय’ पत्रिका के उस पेज का लिंक हम यहां दे रहे हैं, जिसमें वीएन राय ने एक सवाल के जवाब में हिंदी लेखिकाओं को ‘छिनाल’ कहा. इंटरव्यू में एक जगह वीएन राय ने कहा है- ‘लेखिकाओं में यह साबित करने की होड़ लगी है कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है…यह विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह है।’ एक लेखिका की आत्मकथा,जिसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं,का अपमानजनक संदर्भ देते हुए राय कहते हैं,‘मुझे लगता है इधर प्रकाशित एक बहु प्रचारित-प्रसारित लेखिका की आत्मकथात्मक पुस्तक का शीर्षक हो सकता था ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’।’
इंटरव्यू के इस विवादित अंश को पेज पर अंडरलाइन कर दिया गया है. कई लोग यह कहने लगे हैं कि बिना पूरा इंटरव्यू पढ़े, इस मसले पर रिएक्ट करना गलत है. पूरा इंटरव्यू पढ़कर भी वीएन राय अपराध से मुक्त नहीं माने जा सकते क्योंकि उनका कथन न सिर्फ महिला विरोधी है बल्कि अपना वजूद बनाए रखने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहीं स्त्रियों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है. पूरा इंटरव्यू पढ़ने के लिए क्लिक करें- नया ज्ञानोदय में वीएन राय का इंटरव्यू
chandra prakash
August 3, 2010 at 11:44 am
आज तमाम टी वी चैनेल पर अंतररास्ट्रीय हिंदी विश्वविधालय के कुलपति तथा जाने माने लेखक विभूति नारायण राय की एक टिप्पणी को आधार बना कर बहस करवाई गयी और मुद्दे का शीर्षक रखा गया ;छिनाल ;.एक लेखिका इस बात पर उतारू थी की टिप्पणी में जो कहा गया है की [आज कल हिंदी साहित्य में बहुत सी लेखिकाए आत्मकथाए लिख रही है और उसमे स्त्री विमर्श के नाम पर तमाम मौजू विषयो से इतर केवल देह का और विवाहेत्तर संबंधो का वर्णन कर वे लोकप्रियता और इनाम हासिल करना चाहती है ,यह छिनाल प्रवृत्ति है और इसपर रोक लगनी चाहिए ]यह शब्द जरूर उन्ही के लिए प्रयोग किया गया है .विभूति जी ने स्पस्ट किया की उनकी टिप्पणी किसी व्यक्ति नहीं बल्कि प्रवृति के खिलाफ है .लेकिन ऐसा लगता था की लेखिका यह प्रचार का मौका खोना नहीं चाहती थी .
जब की यह सत्य है की ऐसी बहुत सी लेखिकाओ ने अपने को साहित्य लेखन के स्थान पर पोर्न साहित्य लेखन में झोंक दिया है महज कुछ पैसो के लालच में वे वह सब लिख रही है जो साहित्य की श्रेणी में नहीं आता .कुछ साल पहले मैंने एक किताब कुछ ऐसे लड़को के हाथ में देखा था जिनका पढाई लिखाई से कोई सम्बन्ध नहीं था .जब हाथ में लेकर देखा तों वे जो पन्ना खोलकर पढ़ रहे थे तथा बाकी लडको को सुना रहे थे उसमे [लेखिका ने लिखा था की वो इंतजार कर रही है और अभी वह आएगा और क्या क्या करेगा ,वह तैयारी में क्या क्या कर के इंतजार कर रही है ,जिसमे ना लिखे जाने वाले अंगों के बालो की सफाई से लेकर ना जाने क्या क्या .फिर लिखा था की वह आयेगा तों क्या क्या करेगा ,कहा कहा मुह लगाएगा ,कहा कहा जीभ लगाएगा और कहा जा कर टिक जायेगा इत्यादि ]यह वे लडके पढ़ रहे थे जिनसे पढ़ने की उम्मीद नहीं की जाती .यह तों केवल बानगी है .इससे भी बढ़ बढ़ कर लिखने की फिर तों होड़ मच गई .यथार्थ लेखन के नाम पर वह परोसने की कोशिश की जा रही है जो बेहद शर्मनाक है .
आज की बहस को भी सुन कर श्रोता या पाठक के मन से लेखको का सम्मान गिरा ही है .विभूति जी ने तों बार बार बहस को मोड़ने की कोशिश की कि इस शब्द पर नहीं बल्कि इस प्रवृति पर बहस होनी चाहिए तथा इसकी निंदा होनी चाहिए लेकिन लेखिका का मन तथा सत्य कमजोर होने के कारण वे ताकत से कुछ कह भी नहीं पा रही थी लेकिन बहस को खींचना भी चाहती थी .यहा तक कि आज कि बहस कि आंच का शिकार राजेंद्र यादव भी हुए .शायद कोई कमजोरी थी तमाम आरोपों पर वे या तों चुप रहे या जवाब बिना आवाज का था .आज लेखको का एक सत्य बहस के रूप में जब जनता के सामने आ ही गया है तों फिर यह बहस केवल छणिक समाचार बन कर नहीं रहना चाहिए बल्कि इस बहस को फैसलाकुन मुकाम तक पहुँचाने कि आवश्यकता है जिससे साहित्य के नाम पर यह घटिया पोर्न लेखन बंद हो सके ,साहित्य का प्रदुषण रुक सके .यह देश बड़े साहित्यकारों का देश है .क्या प्रेमचंद और निराला के कर्मभूमि अब ऐसे लेखन को साहित्य कहेगी और राजेंद्र यादव जैसे लोग इनके साथ खड़े दिखलाई देंगे .इस बहस का जवाब तों साहित्यजगत ,पाठक और समाज को ढूढ़ना भी होगा और देना भी होगा .
डॉ चन्द्र प्रकाश राय
प्रवक्ता
डॉ बी आर अम्बेडकर विश्वविधालय
आगरा
dodo_toyou
August 3, 2010 at 3:53 pm
भइये चन्द्र प्रकाश जो प्रसंग तुम लिखे हो उस प्रसंग को भी सही तरीके से लिखा जाए तो उसकी एक गरिमा और एक सौंदर्य है। अगर बच्चों ने इसे पढ़ लिया तो कौन सा आसमान टुट पड़ेगा। यह तो बिल्कुल प्राकृतिक और निर्दोष भाव है। इसे गरिमापूर्वक समझना और महसूस करना सीखों न कि घटिया ढंग के किसी स्त्री के मान मर्दन की कोशिक करनेवाले किसी दूष्ट की पैरवी करो।
manik
August 3, 2010 at 4:33 pm
agreed
kamta prasad
August 4, 2010 at 6:56 am
प्लेखानोव ने कहा है कि जिंदा लोग जिंदा सवालों पर सोचते हैं। इस पूरी बहस के दौरान भारतीय प्रगतिशीलों (नारियों और पुरुषों) दोनों ही पूरी तरह से बेपर्दा हो रहे हैं। आज के दौर के ज्वलंत मुद्दे क्या होने चाहिए, इस पर लेखक बिरादरी में कोई हलचल नहीं, मजदूर आंदोलन में इनकी कोई भागीदारी नहीं, व्यर्थ के मसले को संसद तक तक पहुंचा दिया। मजदूरों की मांगों पर दस्तखत तक करने को ई तैयार नहीं। धिक्कार है, ऐसी प्रगतिशीलता पर।
Siddharth Kalhans
August 4, 2010 at 11:45 am
चंद्र प्रकाश जी आप एकदम सही कह रहे हैं
santosh rai
August 5, 2010 at 5:27 am
चंद्र प्रकाश जी आपने जो कहा है सही कहा है। दरअसल कुछ लोगों को उनका कुलपति बनना नही सुहा रहा है। यही वजह है कि पिछले दो सालों से उनके खिलाफ खराब माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
anamisharanbabal
August 16, 2010 at 12:46 pm
vnroy ne aisa kya kah diya yaro ki log lace chillane sahitya ke kok shastra me sab hai ek saman shayad hi aisa hai jo is bahti darya me hath dhona nahi chahta ha vn ne galti ki hai ki is sansar me rahte huye yeha ke niyam kanun ko toda hai hamam me sab nange hone ke bawjud apne ko pak saf dikhne dikhane ki cheshta ki aue is gustakhi ke liye vn ko maf karna aiyash beti ki age wali lkhikao se hambistar hone ka sukh lene wale mahan lekhko aalochako, adi maha aitasho ki kalaie khul jayegi chinal kahne se vbr the great indianwomen writers ka bhed khul jayegi mr vnr aap ipshai phir bhi yeh kyo bhul gaye dost ki bistar ke raste chinale kaha 2 nahi pahuch gayi phir bhi aap bistar puran se hi chipke hai yar vn wakaie 21 century me b aap soch ke lable se itna backward hai it is vvvvshamful mr vn apne simag ko jara develop kare tabhi aap aaj ke jamane ke layak honge mr vn bura mat manna sir warna log bura mamenge