रिटायरमेंट का टाइम नहीं आया : अनिल कुंबले को रिटायर होने से रोका था : ‘न्यूज़24’ की एडिटर-इन-चीफ अनुराधा प्रसाद से ‘आमने-सामने’ बातचीत में सचिन तेंदुलकर हंसे भी और संजीदा भी हुए। अपनी पत्नी, परिवार, साथियों, … सबके बारे में बात की। बात की अपने कैरियर के उतार-चढ़ाव के बारे में। म्यूजिक के अपने शौक के बारे में। सचिन का पूरा ध्यान इस वक्त 2011 वर्ल्ड कप पर है। पेश है अनुराधा प्रसाद की सचिन तेंदुलकर से बातचीत के अंश-
-वर्ल्ड कप की तैयारी किस तरह कर रहे हैं?
–तैयारी तो हर खिलाड़ी अपने तरीके से कर रहा होता है। मैं कहूंगा कि थोड़ा ज्यादा ध्यान दे रहा हूं खाने पर। मैं खाना पसंद करता हूं मगर थोड़ा ख्याल रखकर खाता हूं।
-धोनी कहते हैं कि वो चाहते हैं सचिन 2015 तक खेलें?
–थोड़ा ज्यादा लगता है मुझे। 2015 तक तो नहीं लगता है। मगर जैसा मैंने पहले भी कहा है कि मैं नहीं जानता कि कब तक मुझे रुकना है। जब तक मुझे मज़ा आ रहा है तब तक मैं खेलता रहूंगा।
-क्या डायरी में रिटायरमेंट जैसा शब्द नहीं है?
–बिलकुल नहीं, उस बारे में सोचने का मौका आयेगा तब सोचेंगे। मुझे लगता नहीं कि वो टाइम आया है अभी। कौन जानता है एक टाइम आएगा जहां मैं क्रिकेट के बाद शायद कोई अलग चाहत पैदा करूं। जब वो हो जायेगा तब देखेंगे। अभी तो उस बारे में सोचने की जरूरत नहीं है।
-20 सालों की लंबी पारी के बाद क्या अपने-से बहुत यंग प्लेयर्स के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है? नए प्लेयर बात करने में डरते हैं कि कहीं डांट न पड़ जाए?
–नहीं, ऐसा नहीं। डांट तो बात दूर ही है। वो कभी-कभी मेरी भी टांग खींच लेते हैं। मुझे लगता है, ऐसा संबंध होना भी काफी जरूरी होता है। ड्रेसिंग रूम में हर प्लेयर को आज़ादी है कि अगर मैं किसी का मज़ाक उड़ाता हूं तो वो भी मेरा मज़ाक उड़ाए।
-सबसे ज्यादा मज़ाक कौन बनाता है?
–सभी करते हैं। जो नए क्रिकेटर आए हैं वो दो बार सोचते हैं क्योंकि वो अब तक जानते नहीं मुझे। मगर युवराज, भज्जी इन सबके साथ हमेशा मज़ाक चलता रहता है।
-युवराज तो मज़ाक में ग्रैंडफादर तक कहने लगे थे?
–युवराज ने एक दो बार कहा तो हमारे पास भी उनके लिए काफी सारे नाम हैं। मैं टीवी कैमरे के सामने वो नाम नहीं बोल सकता हूं। उससे मैंने यही कहा कि अगली बार जब तू बोलना तो सोच के बोलना, क्योंकि ग्रैंडपा के पास काफी नाम हैं तेरे जिसे टीवी के सामने बोल सकता हूं। लेकिन अभी बोलूंगा नहीं, थोड़ा चांस दे रहा हूं।
-क्या सचिन अपने पुराने साथियों सौरभ और अनिल को मिस करते हैं?
–हां, उन दोनों के साथ काफी समय खेला हूं। हम याद करते हैं उन दोनों को। उन्होंने इतनी अच्छी पारी दी है देश के लिए। उनके काम को भूलना असंभव है।
-सौरव गांगुली में ऐसा क्या था कि वो इतने सफल कैप्टन बने?
–अच्छा कैप्टन रहने के लिए टीम का अच्छा खेलना जरूरी होता है। अगर टीम 150-200 रन में आउट होती है तो वहां पर कैप्टेन भी कुछ नहीं कर सकता। पर जब फैसला लेना होता है वहां पर तो मैं कहूंगा कि सौरव ने बहुत अच्छे फैसले लिए। उनके फैसले लेने के बाद जो परिणाम आए, वो भी अच्छे आए। मुझे लगता है उन्होंने बेहतरीन काम किया। एक समय ऐसा आया भारतीय क्रिकेट में, 2001 के करीब, हमने भारत के बाहर जाकर लगातार जीतना शुरू किया। मैं कहूंगा वहां से एक ट्रेंड शुरू हुआ।
-आप सौरव के अधीन भी खेले और अब धोनी की कैप्टेनशिप में। दोनों की तुलना करें, किसकी क्या यूएसपी रही है?
–मैं तुलना करना पसंद नहीं करता हूं। हर व्यक्ति की अपनी पहचान और सोच होती है। मैं यही कह सकता हूं कि व्यक्तित्व दोनों का अलग है। धोनी मैदान पर बहुत शांत और संयम रहते हैं। सौरव के हावभाव थोड़े अलग हैं धोनी से। मुझे नहीं लगता कि किसी ने हाथ उपर नीचे किए तो इसका मतलब वो आक्रामक है। आक्रामकता हमेशा आदमी के अंदर होती है। कोई आदमी हाथ पैर ज्यादा नहीं हिला रहा है तो इसका हरगिज़ ये मतलब नहीं कि वो आक्रामक नहीं। वो भी आक्रमक होता है लेकिन आक्रामकता आपके गेम में दिखाई देना चाहिए। मैं मानता हूं कि दोनों आक्रामक हैं और दोनों के काम करने का तरीका अलग अलग है। दोनों हर परिस्थिति में अलग तरीके से व्यवहार करते हैं। एक प्लेयर 2000 से कैप्टेन रहा, 4 साल तक इंडियन क्रिकेट टीम की कप्तानी की और काफी अच्छे परिणाम दिए। जो दूसरा कप्तान है वो बहुत अच्छा काम कर रहा है, टी20 के वर्ल्डकप चैंपियन भी हम रहे और काफी सारे मैच धोनी के अंडर जीते। एक ने बेहतरीन काम किया है और दूसरा कर रहा है।
-क्या आपको लगता है सौरव गांगुली और अनिल कुंबले ने जल्दी रिटायरमेंट ले ली?
–ये बात एक व्यक्ति ही बता सकता है कि उसका दिमाग और शरीर साथ दे रहा है या नहीं। अनिल के साथ मेरी बात हुई थी और मैंने अनिल को कहा भी था कि आप अभी और खेल सकते हो। तुम्हारी जरूरत है इंडिया के लिए, मैंने कहा था अनिल को। लेकिन उस समय शारीरिक तौर पर उनको इतनी दिक्कतें आ रही थीं कि आखिर में उन्होंने यही फैसला किया कि मुझे नहीं लगता कि मैं और अधिक खेल पाऊंगा।
-आप भी चोट की वजह से नहीं खेल पाए थे। उस समय मनःस्थिति क्या थी?
–मेरी सोच थी कि मुझे ही क्यों चोट लगती है। चोट हर बार काफी ज्यादा हो रही थी। मैं थोड़ा तंग होने लगा था। अधीर होने लगा था। मगर हर बार अंजलि कहती थी कि तुम्हें भगवान का शुक्रिया करना चाहिए कि इतने साल बिना चोट के भगवान ने तुम्हें खेलने का मौका दिया है। बाकी सारे क्रिकेटर्स को करियर के शुरू में चोट लग जाती है। तुम्हें शुक्रगुज़ार होना चाहिए। इसे पाजिटिवली देखो। परिवार के लोग भी यही कहते हैं। शरीर के अंदर पाजिटिव एनर्जी फैलती है तो चोट भी जल्दी ठीक हो जाती है। मानसिक रूप से भी पाजिटिव रहने की सीख मिली।
-आपने अच्छा प्रदर्शन किया तो भगवान, नहीं किया तो enddulkar कहा-लिखा जाता है आपको?
–मेरा काम है क्रिकेट खेलना। उनका काम है लिखना। तो जिस पर मेरा कंट्रोल है उसी चीज़ पर मैं ज्यादा ध्यान दूं तो बेहतर कर पाऊं, लेकिन जिस पर मेरा कंट्रोल नहीं है वहां पर ध्यान दूंगा तो क्रिकेट कौन आकर खेलेगा। मैं क्रिकेट खेलता रहूंगा, जिसे जो लिखना है लिखता रहे। ये मेरा फार्मूला है। मेरे पिता ने कहा था कि जब तक तुम्हें पता है कि तुमने दिल से कोशिश की है तो तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है किसी के बारे में। आप गर्व करो कि आपने अपना सौ फीसदी देने की कोशिश की। बेहतर प्रदर्शन उपर वाले के हाथ में होता है। कोशिश अपने हाथ में होती है। जब तक मैं कोशिश कर रहा हूं, मुझे लगता है मैं खुश हूं।
-आपके पिता की कमी को परिवार में किसने पूरा किया?
–पिता की कमी मुझे हमेशा महसूस होगी और मुझे नहीं लगता कि दुनिया की कोई चीज़ उस कमी को पूरा कर सकती है। उनकी जो कमी है यहां पर वो मैं बहुत ज्यादा महसूस करता हूं और खासकर मेरी लाइफ में अच्छे लम्हे आते हैं वहां पर महसूस करता हूं और खराब लम्हे आते हैं वहां पर भी महसूस करता हूं। क्योंकि मेरे पिता हमेशा मुझे रास्ता दिखाया करते थे और एक बड़ा सहारा थे। मेरे पीछे जो भी हो जाए, मेरे कैरियर में या मेरी लाइफ में, रोजाना जो दिक्कतें होती थीं, हर सवाल के जवाब में पूछना। ये सारी पिता की देन थी। तो ये जो कमी है जिंदगी में वो कभी भर नहीं पाउंगा। इसकी कमी मैं हमेशा महसूस करूंगा।
-आप मानते हैं आपकी पत्नी का आपकी कामयाबी में बहुत बड़ा हाथ है। अंजलि को किस तरह से थैंक्स देते हैं?
–मेरी दिक्कत है कि मैं मुंह पर बोल नहीं सकता। थोड़ी वो दिक्कत है। मगर मैं अपनी स्टाइल में कभी बोलता हूं और वो स्टाइल वो जानती है कि मैं कुछ कहना चाह रहा हूं और उसे पता है कि मैं क्या महसूस करता हूं। क्या कहना चाहता हूं तो उसको। जो मैं सोचता हूं उसे पता है।
-आप कभी गुस्सा नहीं करते?
–मैं नहीं करता ज्यादा गुस्सा क्योंकि अनुशासन तो वो (अंजली) रखती हैं घर में।
-क्या डांट पड़ती है सचिन को कभी अंजली से?
–हां, कभी-कभी डांट पड़ती है। बिलकुल कभी-कभी विचार अलग हो जाते हैं। मैं सोचता हूं कि ये इस तरह से होना चाहिए और वो कहती हैं कि ये इस तरह से नहीं, इस तरह होना चाहिए। थोड़ा वक्त लेकर रिएक्ट करो तो आपका विचार अलग हो जाता है।
-झगड़ा होने के बाद मनाने की पहल कौन करता है?
–झगडा नहीं, कभी नहीं होता, विचार अलग होते हैं मगर झगड़ा कभी नहीं होता।
-बात किसकी मानी जाती है अगर विचारों में भेद हो?
–अंजलि भी हैरान होंगी मगर मैं कहूंगा टीवी पर कि मेरी बात ज्यादातर मानी जाती है क्योंकि वो थोड़ी ज़्यादा मुझसे समझदार हैं, शायद इस वजह से वो बोलती हैं कि ठीक है मान लेती हूं तुम्हारी बात।
सचिन तेंदुलकर के साथ अनुराधा प्रसाद की पूरी बातचीत आप देख सकते हैं कार्यक्रम आमने सामने में न्यूज़ 24 पर शनिवार रात 8 बजे। प्रेस रिलीज