Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

भट्ट साहब, आप किस स्वार्थ से आए थे ‘अभी-अभी’?

कोई भी अखबार आज के दिन किसी भी पत्रकार के बच्चों का पेट पालने का ठेका नहीं लेता : त्रिलोचन भट्ट जी, भड़ास4मीडिया पर आपने जो भड़ास निकाली है, वह जायज है। लेकिन सभी को एक साथ कटघरे में खड़ा करना भी उचित नहीं है। अपनी भड़ास निकालने के लिए आपने उस यशवंत भाई को भी कटघरे में खड़ा कर दिया, जिन्होंने भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ लड़ाई में मेरा पूरा साथ दिया था। मेरी तो आज तक उनसे मुलाकात तक नहीं हुई है। अखबार छापना बच्चों का खेल नहीं है। कुलदीप श्योराण व अजय दीप लाठर ने अपना सब कुछ दांव पर लगाते हुए अखबार छापने का रिस्क तो उठाया, लेकिन पत्रकारों व कर्मचारियों के चयन में उनसे जो चूक हुई, उस पर उन्हें आज भी अफसोस है। आप और मेरे जैसे पत्रकारों को इस उम्मीद के साथ मोटे वेतन पर अखबार में लिया गया था कि हम पूरी इमानदारी के साथ कंपनी के साथ काम करेंगे। अगर हम ही अपने काम को सही तरीके से अंजाम नहीं दे पाए, तो इसमें प्रबंधन को कोसने की ज्यादा जरूरत नहीं है।

<p align="justify"><strong>कोई भी अखबार आज के दिन किसी भी पत्रकार के बच्चों का पेट पालने का ठेका नहीं लेता : </strong>त्रिलोचन भट्ट जी, भड़ास4मीडिया पर आपने जो भड़ास निकाली है, वह जायज है। लेकिन सभी को एक साथ कटघरे में खड़ा करना भी उचित नहीं है। अपनी भड़ास निकालने के लिए आपने उस यशवंत भाई को भी कटघरे में खड़ा कर दिया, जिन्होंने भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ लड़ाई में मेरा पूरा साथ दिया था। मेरी तो आज तक उनसे मुलाकात तक नहीं हुई है। अखबार छापना बच्चों का खेल नहीं है। कुलदीप श्योराण व अजय दीप लाठर ने अपना सब कुछ दांव पर लगाते हुए अखबार छापने का रिस्क तो उठाया, लेकिन पत्रकारों व कर्मचारियों के चयन में उनसे जो चूक हुई, उस पर उन्हें आज भी अफसोस है। आप और मेरे जैसे पत्रकारों को इस उम्मीद के साथ मोटे वेतन पर अखबार में लिया गया था कि हम पूरी इमानदारी के साथ कंपनी के साथ काम करेंगे। अगर हम ही अपने काम को सही तरीके से अंजाम नहीं दे पाए, तो इसमें प्रबंधन को कोसने की ज्यादा जरूरत नहीं है। </p>

कोई भी अखबार आज के दिन किसी भी पत्रकार के बच्चों का पेट पालने का ठेका नहीं लेता : त्रिलोचन भट्ट जी, भड़ास4मीडिया पर आपने जो भड़ास निकाली है, वह जायज है। लेकिन सभी को एक साथ कटघरे में खड़ा करना भी उचित नहीं है। अपनी भड़ास निकालने के लिए आपने उस यशवंत भाई को भी कटघरे में खड़ा कर दिया, जिन्होंने भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ लड़ाई में मेरा पूरा साथ दिया था। मेरी तो आज तक उनसे मुलाकात तक नहीं हुई है। अखबार छापना बच्चों का खेल नहीं है। कुलदीप श्योराण व अजय दीप लाठर ने अपना सब कुछ दांव पर लगाते हुए अखबार छापने का रिस्क तो उठाया, लेकिन पत्रकारों व कर्मचारियों के चयन में उनसे जो चूक हुई, उस पर उन्हें आज भी अफसोस है। आप और मेरे जैसे पत्रकारों को इस उम्मीद के साथ मोटे वेतन पर अखबार में लिया गया था कि हम पूरी इमानदारी के साथ कंपनी के साथ काम करेंगे। अगर हम ही अपने काम को सही तरीके से अंजाम नहीं दे पाए, तो इसमें प्रबंधन को कोसने की ज्यादा जरूरत नहीं है।

सही मायने में अखबार के इन दोनों कर्ताधर्ताओं ने यही चूक कर दी कि गधे और घोड़े में अंतर नहीं कर पाए। गधे घास खाते रहे और घोड़े कुरड़ी में लौटने को मजबूर हो गए। इन दोनों के अतिविश्वास के कारण ही कई नकारा लोग महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हो चुके थे। ऐसे लोगों को अब हरियाणा तो क्या, देश के किसी भी हिस्से में आजीवन न तो वह पद मिल सकता है और न ही वेतन, जो ‘अभी-अभी’ ने उन्हें दिया था। जहां तक बात पत्रकारिता है, किसी जमाने में इसे एक मिशन के रूप में देखा जाता था। पत्रकारिता करने वाले लोग अपनों बच्चों का पेट पालने के प्रति जरा भी चिंतित नहीं होते थे। आप दैनिक भास्कर छोड़कर आए, तो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए। अच्छे वेतन और अच्छे पद की कामना के साथ। कोई भी अखबार आज के दिन किसी भी पत्रकार के बच्चों का पेट पालने का ठेका नहीं लेता। ऐसे में आप किस उम्मीद के साथ ‘अभी-अभी’ में आ गए? क्या आपको इस बात की गारंटी दी गई थी कि आपके बच्चों को भर पेट खाना खिलाने की जिम्मेदारी अखबार की है?

जनाब दूसरों पर लांछन लगाने से पूर्व यह तय कीजिए कि हमें पत्रकारिता करने से पहले बच्चों के भोजन का इंतजाम भी करना है। अगर आप अखबार में काम करके अपने बच्चों का पेट पालने की बात सोचते हैं, तो आपकी यह सोच जरा भी ठीक नजर नहीं आ रही। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि ‘अभी-अभी’ लांच होने से पहले आप जैसे ही कुछ पत्रकारों ने मोटा माल बनाया था। जब इसकी हकीकत प्रबंधन को पता चली, तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

रही बात पुलिस की तो पुलिस इस समय जो भी कर रही है, वह पूरे मीडिया जगत के लिए भविष्य के किसी बड़े खतरे से कम नहीं है।’अभी-अभी’ छोटा समाचार पत्र जरूर है, लेकिन पुलिस की यह शुरुआत बड़े मीडिया हाउसों तक भी पहुंच सकती है। इस समय हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे साथ क्या हुआ। सोचना यह चाहिए कि भविष्य में मीडिया के साथ क्या होने वाला है। जहां तक माल बनाने की बात है तो माल बनाने वाला शख्स एक आंख से काना होता है, जो किसी के खिलाफ कुछ भी छापने की हिम्मत चाहते हुए भी नहीं जुटा सकता। अगर ऐसा कुछ होता तो आपका पत्र भड़ास पर छपने की बजाय किसी रद्दी की टोकरी में पड़ा होता। आप अपने पत्र को नहीं छापे जाने पर कुछ कर भी तो नहीं सकते थे। मैं यशंवत भाई को बधाई देना चाहता हूं कि आप जैसे लोगों को भड़ास को भी उन्होंने पोर्टल पर स्थान देकर यह साबित कर दिया है कि उनके लिए पत्रकारिता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

नरेन्द्र वत्स

ब्यूरो चीफ

‘अभी-अभी’ हिंदी दैनिक

रेवाड़ी, हरियाणा

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement