प्रिय यशवंत जी, सबसे पहले भट्ट जी का पत्र छापने के लिए आपको ढेर सारा धन्यवाद। साथ ही हम लोगों के साथ सहयोग करने के लिए आपको धन्यवाद। भट्ट जी का लेटर पढ़ने के बाद मुझे कम से कम इस बात का पता चल गया कि मेरे दोस्त में मेरे लिए कितनी कड़वाहट भरी पड़ी है। यशवंत जी, मैं कुछ बात आपसे कहना चाहता हूं…
आपको कोई भी बात बिना वर्जन लिए नहीं पब्लिश करना चाहिए।
भट्ट जी अपनी मर्जी से अभी-अभी में आए थे, कोई जबरदस्ती नहीं लाया गया था। वे दैनिक भास्कर से ज्यादा सेलरी पर आए थे। वे फरीदाबाद के ब्यूरो चीफ बने थे।
आपको भट्टजी से ये पूछना चाहिए कि उन्होंने आफिस के एडीवीटी बिजनेस में से कितने रुपये का गबन किया?
भट्ट जी से रिकवरी के लिए पूछा गया तो उन्होंने देहरादून में किसी अखबार में ज्वाइन कर लिया। इनकी प्लानिंग पहले से ही देहरादून जाने की थी क्योंकि दोस्त होने के नाते ये बातें हमसे शेयर कर चुके थे।
भट्ट जी ने फरीदाबाद आफिस के कितने स्टाफ की सेलरी अपने पाकेट में रखी?
जाते-जाते भट्ट जी आफिस से क्या-क्या लेकर गए?
प्रिय भट्ट जी, अगर आप या फिर कोई भी आदमी ये साबित कर दे कि मैंने पत्रकारिता की आड़ में कुछ भी गलत किया है तो मैं पत्रकारिता ही नहीं, दुनिया भी छोड़ने की हिम्मत रखत हूं। प्लीज, साबित करें। मैं इंतजार कर रहा हूं।
अजय दीप लाठर
ग्रुप एडिटर
‘अभी-अभी’ हिंदी दैनिक
रोहतक