15 अक्टूबर के दिन मैंने भड़ास4मीडिया में पढ़ा कि सन्मार्ग के पूर्व संपादक श्री ज्ञानवर्धन मिश्र ने प्रबंधन के हस्तक्षेप के कारण अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है। इसे पढ़कर काफी आश्चर्य हुआ। उन्होंने ऐसा क्यों लिखा, यह समझ में नहीं आया। सभी जानते हैं कि सत्य कुछ और है। हर संस्थान के अपने कायदे-कानून होते हैं और प्रबंधन इसी के तहत कार्यों का संचालन कराता है। अनुशासन टूटने पर और कार्य का सही ढंग से संचालन न होने पर प्रबंधन अपने किसी भी कर्मचारी को सेवामुक्त कर सकता है। पूर्व संपादक ज्ञानबर्द्ध मिश्रा के साथ भी ऐसा ही हुआ। जिम्मेदारियों के संचालन में अनुशासनहीनता और प्रबंधन के निर्णयों में दखलंदाजी ने श्री मिश्रा को उनके अंजाम तक पहुंचाया। संस्थान से अलग होने के बाद आक्षेप लगाना अनुचित है। सन्मार्ग परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य होने के नाते मैं उनके बयान से आहत हुआ हूं।
रही बात संस्थान के मुख्य महाप्रबंधक आलोक सिंह की तो उन्होंने संपादाकीय विभाग ही नहीं, सन्मार्ग परिवार से जुड़े हर व्यक्ति को कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता दे रखी है। किसी के भी कार्य में उनका अनावश्यक हस्तक्षेप कभी नहीं रहा। यही वजह है कि सन्मार्ग परिवार आलोक सिंह को अभिभावक की भांति सम्मान देता है। वर्तमान में मुख्य महाप्रबंधक के निर्देशानुसार सन्मार्ग, रांची की पहली ईंट रखने वाले विष्णु शंकर उपाध्याय (समन्वय संपादक) के नेतृत्व में सम्पदाकीय विभाग के कार्यों का सफल संचालन हो रहा है।
प्रकरण का सच यही है कि जिम्मेदारियों के संचालन में विफल रहने के कारण प्रबंधन ने ज्ञानवर्धन को विधिवत नोटिस देने के उपरांत उन्हें सेवामुक्त किया है। इसे ही वो अपना इस्तीफा बता रहे हैं। ज्ञान जी के काम में अगर मुख्य महाप्रबंधक का हस्तक्षेप बढ़ा था तो वे अपनी बात निदेशक प्रेमशंकरम के समक्ष रख सकते थे। महज हस्तक्षेप के कारण तुंरत इस्तीफा नहीं हो जाता है। संस्थान के निदेशक प्रेमशंकरम कभी किसी की सेवा समाप्त करने में विश्वास नहीं रखते। संस्थान की हर बात की जानकारी उन तक पहुंचना भी संभव नहीं क्योंकि उनकी दिनचर्या काफी व्यस्त होती है।
अजय प्रसाद
वरिष्ठ पत्रकार
सन्मार्ग हिंदी दैनिक, रांची
मोबाइल : 09431314041, 09334481583, 09204140071
मेल : [email protected]