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‘हम लड़ेगें साथी अपने अधिकार के लिए’

इलाहाबाद में चल रहे निजीकरण विरोधी आंदोलन ने छात्रों पर लग रहे ‘करियरिस्ट’ होने के आरोप की छवि को तोड़ते हुए सत्तासीन ताकतों के बाज़ारवादी एजेण्डे को बेनकाब कर दिया है। हम इस आंदोलन का समर्थन करते हुए हर स्तर पर इस आंदोलन में हमकदम बनेगे। आज जब अखबार पैसे लेकर ख़बर छाप रहे हैं उस दौर में पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों और प्रोफेशनलिज्म को इलाहाबाद के पत्रकारिता के छात्र परिभाषित कर रहें हैं। इलाहाबाद से शुरू इस राष्ट्रीय आंदोलन के लिए आज जरूरत है कि इसे देश भर के शिक्षण संस्थानों में ले जाया जाय। जिस तरह से पत्रकारिता विभाग के समानांतर ‘बीए इन मीडिया स्टडीज’ की दुकान खोलने की कवायद चल रही है, ऐसी कवायद पूरे देशभर में चल रही है।

<p align="justify">इलाहाबाद में चल रहे निजीकरण विरोधी आंदोलन ने छात्रों पर लग रहे ‘करियरिस्ट’ होने के <a href="index.php?option=com_content&view=article&id=2557:allahabad-university&catid=27:latest-news&Itemid=29" target="_blank">आरोप</a> की छवि को तोड़ते हुए सत्तासीन ताकतों के बाज़ारवादी एजेण्डे को बेनकाब कर दिया है। हम इस आंदोलन का समर्थन करते हुए हर स्तर पर इस आंदोलन में हमकदम बनेगे। आज जब अखबार पैसे लेकर ख़बर छाप रहे हैं उस दौर में पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों और प्रोफेशनलिज्म को इलाहाबाद के पत्रकारिता के छात्र परिभाषित कर रहें हैं। इलाहाबाद से शुरू इस राष्ट्रीय आंदोलन के लिए आज जरूरत है कि इसे देश भर के शिक्षण संस्थानों में ले जाया जाय। जिस तरह से पत्रकारिता विभाग के समानांतर 'बीए इन मीडिया स्टडीज' की दुकान खोलने की कवायद चल रही है, ऐसी कवायद पूरे देशभर में चल रही है। </p>

इलाहाबाद में चल रहे निजीकरण विरोधी आंदोलन ने छात्रों पर लग रहे ‘करियरिस्ट’ होने के आरोप की छवि को तोड़ते हुए सत्तासीन ताकतों के बाज़ारवादी एजेण्डे को बेनकाब कर दिया है। हम इस आंदोलन का समर्थन करते हुए हर स्तर पर इस आंदोलन में हमकदम बनेगे। आज जब अखबार पैसे लेकर ख़बर छाप रहे हैं उस दौर में पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों और प्रोफेशनलिज्म को इलाहाबाद के पत्रकारिता के छात्र परिभाषित कर रहें हैं। इलाहाबाद से शुरू इस राष्ट्रीय आंदोलन के लिए आज जरूरत है कि इसे देश भर के शिक्षण संस्थानों में ले जाया जाय। जिस तरह से पत्रकारिता विभाग के समानांतर ‘बीए इन मीडिया स्टडीज’ की दुकान खोलने की कवायद चल रही है, ऐसी कवायद पूरे देशभर में चल रही है।

पहले तो संसाधनों का रोना रोकर सुविधाएं कम की जाती है, फिर उसके हल के बतौर खून चूसने वाली दुकानें विश्वविद्यालयों में खोली जा रही हैं। इलाहाबाद के साथी धन्यवाद के पात्र हैं जो उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इस आंदोलन को बहादुराना अंदाज में छेड़ दिया। आज जब व्यवस्था ने छठे वेतन आयोग को लागू कर शिक्षकों को भी तुष्ट कर दिया है, ऐसे दौर में पत्रकारिता के शिक्षक सुनील उमराव ने एक मिसाल कायम की है और उन्होंने ऐलान कर दिया है कि निजीकरण और बाजारीकरण का विरोध सिर्फ मंचों पर ही नहीं, सड़कों पर भी होगा।

विश्वविद्यालय जैसे आधुनिक शिक्षण संस्थान में सामाजिक कार्यकर्ता संपत पाल को परिसर में संगीनों के दम पर घुसने नहीं दिया। इस घटना ने पूरे देश के सामने इस बात को ला दिया है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लोकतंत्र का गला घोट दिया गया है। आधुनिक दौर में विश्वविद्यालयों की क्या संकल्पना होगी, इस पर विचार करने की जरूरत है। कुलानुशासक जटाशंकर त्रिपाठी द्वारा छात्रों को बाहरी कह कर मुर्गा बनवाने की घटना ने  विश्वविद्यालय की पूरी संकल्पना को नेस्तानाबूत कर दिया है। क्या आखिर विश्वविद्यालय को समझने जानने के लिए कोई बाहरी व्यक्ति नही आ सकता। और अपने को बुद्धिजीवी का तमगा लगाये लोग उसे अपमानित करेंगे। हम भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र आंदोलन में हरकदम साथ रहने का वादा करते हुए बीमार कुलपति को जादू की झप्पी देते हुए ‘गेट वेल सून मेंटली’ बोलते हैं।

– ऋषि कुमार सिंह, विनय जायसवाल, अरुण वर्मा, प्रबुद्ध गौतम, अरुण उराव, अर्चना महतो, सौम्य झा, पूर्णिमा उरांव, प्रिया मिश्रा, विजय प्रताप, मणींद्र मिश्रा, हिमांशु शेखर, हेमेंद्र मिश्रा, प्रियभांश

भारतीय जनसंचार संस्थान, इलाहाबाद

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