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दुख-दर्द

न्यूज रूम में कुर्सियां चलीं, नौकरी गई

अमर उजाला, आगरा के न्यूज रूम में दो पत्रकारों के बीच जमकर गाली-गलौज हुई और कुर्सियां चलीं। प्रबंधन ने दोनों को दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। बाद में एक को नौकरी से निकाल दिया। अमर उजाला से जुड़े सूत्रों ने भड़ास4मीडिया को बताया कि दोनों पत्रकारों के बीच किसी खबर के शीर्षक में गलती जाने को लेकर कहासुनी शुरू हुई। बात बढ़ते-बढ़ते हाथापाई तक आ पहुंची। दोनों सहकर्मियों ने आपस में कुर्सियां तान लीं और एक दूसरे पर पिल पड़े। किसी तरह बीच-बचाव कर दोनों को शांत कराया गया तब तक गंदी-गंदी गालियां लेने-देने व मारने-पीटने का एक त्वरित लेकिन तीखा दौर घटित हो चुका था। प्रबंधन ने दोनों को अगले दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। दोनों संपादकीयकर्मी दो दिन बाद काम पर लौटे तो उनमें से एक को, जिसे स्थानीय संपादक और संपादक का खास बताया जाता है, काम पर रख लिया गया। पर दूसरे पत्रकार, जिसे इस मामले में पीड़ित बताया जाता है, से कहा गया कि माफीनामा लिख कर दो।

<p align="justify">अमर उजाला, आगरा के न्यूज रूम में दो पत्रकारों के बीच जमकर गाली-गलौज हुई और कुर्सियां चलीं। प्रबंधन ने दोनों को दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। बाद में एक को नौकरी से निकाल दिया। अमर उजाला से जुड़े सूत्रों ने <strong>भड़ास4मीडिया </strong>को बताया कि दोनों पत्रकारों के बीच किसी खबर के शीर्षक में गलती जाने को लेकर कहासुनी शुरू हुई। बात बढ़ते-बढ़ते हाथापाई तक आ पहुंची। दोनों सहकर्मियों ने आपस में कुर्सियां तान लीं और एक दूसरे पर पिल पड़े। किसी तरह बीच-बचाव कर दोनों को शांत कराया गया तब तक गंदी-गंदी गालियां लेने-देने व मारने-पीटने का एक त्वरित लेकिन तीखा दौर घटित हो चुका था। प्रबंधन ने दोनों को अगले दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। दोनों संपादकीयकर्मी दो दिन बाद काम पर लौटे तो उनमें से एक को, जिसे स्थानीय संपादक और संपादक का खास बताया जाता है, काम पर रख लिया गया। पर दूसरे पत्रकार, जिसे इस मामले में पीड़ित बताया जाता है, से कहा गया कि माफीनामा लिख कर दो। </p>

अमर उजाला, आगरा के न्यूज रूम में दो पत्रकारों के बीच जमकर गाली-गलौज हुई और कुर्सियां चलीं। प्रबंधन ने दोनों को दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। बाद में एक को नौकरी से निकाल दिया। अमर उजाला से जुड़े सूत्रों ने भड़ास4मीडिया को बताया कि दोनों पत्रकारों के बीच किसी खबर के शीर्षक में गलती जाने को लेकर कहासुनी शुरू हुई। बात बढ़ते-बढ़ते हाथापाई तक आ पहुंची। दोनों सहकर्मियों ने आपस में कुर्सियां तान लीं और एक दूसरे पर पिल पड़े। किसी तरह बीच-बचाव कर दोनों को शांत कराया गया तब तक गंदी-गंदी गालियां लेने-देने व मारने-पीटने का एक त्वरित लेकिन तीखा दौर घटित हो चुका था। प्रबंधन ने दोनों को अगले दो दिनों के लिए फोर्स-लीव पर भेज दिया। दोनों संपादकीयकर्मी दो दिन बाद काम पर लौटे तो उनमें से एक को, जिसे स्थानीय संपादक और संपादक का खास बताया जाता है, काम पर रख लिया गया। पर दूसरे पत्रकार, जिसे इस मामले में पीड़ित बताया जाता है, से कहा गया कि माफीनामा लिख कर दो।

पीड़ित पत्रकार ने ऐसा करने से मना कर दिया। सूत्रों के मुताबिक पीड़ित पत्रकार का कहना था कि वरिष्ठों का संरक्षण प्राप्त पत्रकार उसके साथ आए दिन गाली-गलौच व बदतमीजी करता था, और उस दिन भी बदतमीजी की शुरुआत उसी ने की थी, फिर माफीनामा मैं क्यों लिखूं? माफीनामा तो दूसरे पत्रकार से लिखवाया जाना चाहिए जो उपर वालों के शह पर अमर उजाला कर्मियों से आए दिन बदतमीजी करता फिरता है लेकिन आगरा से लेकर दिल्ली तक सेटिंग रखने के कारण उसके सौ अपराध माफ कर दिए जाते हैं। उसकी पहुंच को देखते हुए ही अमर उजाला के अन्य पत्रकार भी उसकी बदतमीजी सहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक स्थानीय संपादक ने पीड़ित पत्रकार के तर्कों को खारिज कर दिया और माफीनामा न लिखने के कारण, दिल्ली से मिले निर्देशों के अनुरूप, पीड़ित पत्रकार को ही नौकरी से बाहर कर दिया। 

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