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हलचल

पत्रकारिता के छात्र-शिक्षक आंदोलनकारी बने

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्र इन दिनों सड़क पर उतरे हुए हैं। उनका कहना है कि इविवि में पत्रकारिता डिपार्टमेंट के होते हुए उसके समानांतर स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण करने का क्या मतलब है? बीते कई दिनों से पत्रकारिता विभाग के सैकड़ो छात्र काली पट्टी बाधे अपने प्राध्यापक सुनील उमराव के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाल रहे हैं और विभिन्न विभागों की दीवारों पर अपने ज्ञापन को चस्पा कर रहे हैं। इन लोगों ने अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन एनआर फारूकी से पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा और विश्वविद्यालय में नये पत्रकारिता कोर्स के नाम पर हो रहे निजीकरण पर स्पष्टीकरण मांगा। छात्रों ने कला संकाय के सभी विभागों में जाकर छात्र-छात्राओं एंव प्राध्यापकों से अपने पत्रकारिता विभाग को बचाने और निजीकरण विरोधी अपने आन्दोलन के समर्थन में आने की गुजारिश की।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्र इन दिनों सड़क पर उतरे हुए हैं। उनका कहना है कि इविवि में पत्रकारिता डिपार्टमेंट के होते हुए उसके समानांतर स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण करने का क्या मतलब है? बीते कई दिनों से पत्रकारिता विभाग के सैकड़ो छात्र काली पट्टी बाधे अपने प्राध्यापक सुनील उमराव के नेतृत्व में मौन जुलूस निकाल रहे हैं और विभिन्न विभागों की दीवारों पर अपने ज्ञापन को चस्पा कर रहे हैं। इन लोगों ने अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन एनआर फारूकी से पत्रकारिता विभाग की उपेक्षा और विश्वविद्यालय में नये पत्रकारिता कोर्स के नाम पर हो रहे निजीकरण पर स्पष्टीकरण मांगा। छात्रों ने कला संकाय के सभी विभागों में जाकर छात्र-छात्राओं एंव प्राध्यापकों से अपने पत्रकारिता विभाग को बचाने और निजीकरण विरोधी अपने आन्दोलन के समर्थन में आने की गुजारिश की।

विभाग के छात्रों ने सवाल उठाया कि विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के समानान्तर जो पत्रकारिता की दुकान खोली जा रही है, आखिर उसमें कौन लोग पढ़ेंगे। जो डिग्री छात्रों को कुछ हजार रूपयों में मिल रही थी, उसके लिए लाखों रुपये विश्वविद्यालय क्यों वसूलेगा? केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद विश्वविद्यालय के पास अधिक संसाधन हो गये हैं और वो छात्रों को ज्यादा सुविधा मुहैया करा सकता है। पर विश्वविद्यालय आम छात्रों को विश्वविद्यालय पहुंचने से वंचित करना चाहता है। इस सिलसिले में छात्र अपने विभागाध्यक्ष और कला संकाय के डीन प्रो एनआर फारूकी से मिले और एकेडमिक काउंसिल की उस मीटिंग, जिसमें स्ववित्तपोषित पत्रकारिता विभाग चलाने की बात की गयी थी, पर स्पष्टीकरण मांगा। घेराव के दौरान प्रो फारूकी बीच बचाव करते हुए निजीकरण के पक्ष में उतरे जिसका छात्रों ने कड़ा विरोध किया और सवाल किया कि जो विभागाध्यक्ष कभी विभाग नहीं आते हैं वो हमारे भविष्य का निर्धारण कैसे कर सकते हैं? पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने निर्णय लिया है कि जब तक विश्वविद्यालय पत्रकारिता की नई दुकान ‘बीए इन मीडिया स्टडीज’ को बंद नहीं करता, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।

पत्रकारिता विभाग के सैकड़ों छात्र अपनी कक्षा छूटते ही प्लेकार्ड, काला झण्डा और हाथों में काली पट्टी बाधे एवं गुलाब का फूल लिए कला संकाय और विज्ञान संकाय के सभी शिक्षकों से मिले। प्लेकार्डस पर ‘पत्रकारिता विभाग के समानान्तर स्ववित्तपोषित कोर्स क्यों?’, ‘कुलपति जवाब दो?’ तथा ‘पत्रकारिता की निजी दुकान बन्द करो!’ इत्यादि नारे लिखे थे। इस दौरान छात्रों ने अपनी 11 सूत्री मांगों का पर्चा भी वितरित किया। पता चला है कि इविवि के 22 शिक्षकों ने आन्दोलन के पक्ष में अपने हस्ताक्षर किए हैं। सैकड़ों शिक्षकों ने अप्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन का समर्थन किया। छात्रों ने कला संकाय के डीन प्रो एनआर फारूकी को जायज मांग उठाने के बदले नोटिस भेजने पर धन्यवाद देते हुए गुलाब का फूल भेंट किया। छात्रों ने व्यंग्य करते हुए उनसे अपनी लड़ाई में सफल होने का आशीर्वाद मांगा। उन्होंने इस लड़ाई में ही नहीं, जीवन की हर लड़ाई में सफल होने का आशीर्वाद दिया। छात्रों ने बताया कि आंदोलन सिर्फ एक विभाग को बचाने के लिए ही नहीं बल्कि पत्रकारिता की जनपक्षधर स्वरूप को बचाने के लिए है जो अपनी मांगों के पूरा होने तक चलता रहेगा। इस पूरे मुद्दे पर छात्र अजय ने सूचना अधिकार कानून के तहत तीन सवालों का जवाब भी मांगा है। इसमें तुलनात्मक साहित्य विभाग के बंद किये जाने का कारण, पिछले 25 साल से पत्रकारिता विभाग में फैकल्टी नियुक्ति के लिए यूजीसी मानकों के अनुसार किये गये पहल तथा ऐसे विभागों की जानकारी मांगी गयी है जिसमे यूजीसी के मानकों को क्रियान्वित किये बिना ही शिक्षण कार्य चल रहा है।

पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने डेलीगेसी और हास्टलों में भी हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है। पत्रकारिता विभाग के छात्रों के आंदोलन में शरीक शिक्षक सुनील उमराव को शिक्षक दिवस के दिन नोटिस जारी करने को अलोकतांत्रिक व तानाशाही पूर्ण कदम बताया गया। छात्रों ने कुलपति के मीडिया में दिये बयान कि पत्रकारिता विभाग के छात्रों द्वारा जारी मुहिम छात्रों को भड़काने की साजिश है और इस कार्य के लिए विभाग के अध्यापक को दण्ड दिया जायेगा, का विरोध किया। छात्रों ने कहा की कुलपति अगर किसी पर्चा लीक जैसी धांधली को छिपाने के लिए मार्च करते हैं तो वे उसे गलत नहीं मानते और छात्रों की जायज और तर्कसंगत मांग करने पर नोटिस जारी करते हैं। सैकडों की संख्या में छात्र कटरा डेलीगेसी, जीएन झा हास्टल, पीसीबी और सर सुंदरलाल छात्रावास के छात्रों को इस अभियान से जोड़ा। इन जगहों के हजारों छात्रों ने हस्ताक्षर कर आंदोलन को सर्मथन दिया। आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद अकूत धन आने के बावजूद भी अगर विश्वविद्यालय फर्जी दुकान खोलने से बाज नहीं आता तो छात्र आंदोलन को आक्रामक बनाने पर मजबूर हो जाएंगे।


विश्वविद्यालय के छात्रों ने कुलपति, कला संकाय के डीन, विद्यार्थी कल्याण के डीन, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष और इविवि के सभी अध्यापकों व छात्रों को जो पत्र भेजा है, उसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं-


कुलपति,

डीन कला संकाय,

डीन विद्यार्थी कल्याण,

अध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,

विश्वविद्यालय के सभी अध्यापक गण एवं छात्र

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यूजीसी के नियमों को ताक पर रखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा पिछले 25 वर्षों से चल रहे पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के होते हुए भी, ‘मीडिया अध्ययन केन्द्र’ के रूप में एक नये व्यावसायिक संस्थान की स्थापना की जा रही है। इस व्यावसायिक संस्थान में स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम के रूप में बी.ए. (मीडिया अध्ययन) एवं कुछ अन्य सर्टिफिकेट व डिप्लोमा कोर्सेज प्रारम्भ किये जा रहे हैं। दरअसल यह ‘मीडिया अध्ययन केन्द्र’ फोटो जर्नलिज्म एण्ड विजुअल कम्युनिकेशन केन्द्र का ही नया मुखौटा है, जो अब तक एकवर्षीय स्ववित्तपोषित पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स संचालित करता था। लेकिन आज पत्रकारिता विभाग को उपेक्षित कर समानान्तर कोर्स चलाने की कवायद चालू हो गयी है। यूजीसी द्वारा मान्य एम.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम संचालित करने वाले विभाग को छोड़कर उसके कार्य क्षेत्र में ही एक ही विश्वविद्यालय के अंदर ‘बी.ए. मीडिया अध्ययन’ के लिए दूसरे संस्थान एवं स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रम की व्यवस्था समझ से परे है। इस सन्दर्भ में हम, विभाग के विद्यार्थी, कुलपति व विश्वविद्यालय प्रशासन से कुछ प्रश्न पूछना चाहते हैं और कुछ बिन्दुओं की ओर आपका ध्यान इंगित कराना चाहते हैं-

1. जब विश्वविद्यालय के अन्दर पहले से ही पत्रकारिता एवं जनसंचार का एक विभाग मौजूद है, जो एम.ए. कोर्स करा रहा है तो फिर बी.ए. मीडिया अध्ययन के रूप में विभाग के समानान्तर एक व्यावसायिक कोर्स किसी दूसरे केन्द्र या संस्थान में चलाने का क्या औचित्य है?

2. ऐसे किसी पाठ्यक्रम का औचित्य तब और भी अधिक नहीं रह जाता, जब बी.ए. मीडिया अध्ययन का पाठ्यक्रम और बी.ए. पत्रकारिता एवं जनसंचार का पाठ्यक्रम यूजीसी द्वारा तय किये गये पाठ्यक्रम के समान है।

3. क्या विश्वविद्यालय की प्रशासनिक नीति नये शैक्षिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत को लेकर इस बात से सहमत है कि ‘इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज’ किसी विभाग के समानान्तर बी.ए.व एम.ए. जैसे स्ववित्तपोषित कोर्स चला सकता है? यदि भविष्य में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग अपना भी एक कोर्स शुरू करना चाहता है तो विश्वविद्यालय का क्या जवाब होगा? क्या विश्वविद्यालय एक ही पाठ्यक्रम की दो अलग ­अलग डिग्रियां बांटने की इजाजत देगा? इस बारे में विभागों के लिए क्या दिशा-निर्देश हैं?

4. विभागों के समानान्तर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरुआत से सम्बन्धित केन्द्रीय विश्वविद्यालय के क्या नियम हैं?

5. क्या कोई केन्द्रीय विश्वविद्यालय ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन या डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की शुरुआत विश्वविद्यालय नियमों के अन्तर्गत बिना स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति के कर सकता है?

6. हम विश्वविद्यालय के कुलपति से यह जानना चाहते हैं कि शैक्षिक स्तर को ऊपर उठाने के जिस लक्ष्य की वो बात करते हैं, बिना स्थायी शिक्षकों के पाठ्यक्रमों की शुरुआत करके वे इस दिशा में किस परिपाटी का निर्माण करना चाह रहे हैं?

7. क्या कारण है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नियुक्तियों, कोष एवं अनुदानों के बंटवारे के सिलसिले में लगातार विभाग की अवहेलना की जाती है, मसलन

  • विभाग पिछले 20 सालों से सिर्फ एक स्थायी षिक्षक के द्वारा चलाया जा रहा है।
  • योजनागत एवं गैर योजनागत नियुक्तियों का कोई आवंटन क्यों नहीं हुआ?
  • यूजीसी की ग्यारहवीं योजना समिति के सामने विभाग को प्रस्तुति की अनुमति क्यों नहीं दी गई जबकि सभी नियम कायदों को दरकिनार करते हुए यूजीसी टीम को फोटो जर्नलिज्म विभाग का दौरा कराया गया?
  • जहां कुछ चुनिन्दा विभागों नियुक्ति हेतु चयन समिति का गठन होता है, वहीं पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग एवं इस जैसे अन्य विभागों की अनदेखी की जाती है?
  • जब विश्वविद्यालय विभाग की मूलभूत आवष्यकताओं जैसे कोश एवं शिक्षक इत्यादि की पूर्ति करने में पिछले पांच वर्शों से असफल रहा है, तब एक नये समानान्तर पाठ्यक्रम की शुरुआत के पीछे आखिर क्या तर्क हैं? आखिर ऐसी कौन सी नीतिगत मजबूरियां हैं जो कुलपति का कार्यकाल खत्म होने के ठीक पहले ही और कार्यकारिणी समिति द्वारा औपचारिक रूप से इस निर्णय की संस्तुति से पूर्व ही प्रेस­विज्ञप्ति देने एवं इस पाठ्यक्रम की प्रवेष प्रक्रिया शुरू करने हेतु बाध्य करती है?

9. आखिर क्यों इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज को इतनी तत्परता से पत्रकारिता के डिग्री पाठ्यक्रम की आवश्यकता है? पत्रकारिता के क्षेत्र में शैक्षणिक गुणवत्ता की वृहत परिकल्पना में ये निर्णय क्या प्रयोजन सिद्ध करता है?

10. शैक्षिक समुदाय की जानकारी के लिए हम विनम्रतापूर्वक ये बताना चाहते हैं कि मीडिया अध्ययन मीडिया के समालोचनात्मक अध्ययन का क्षेत्र है, न कि मीडिया पेशेवरों के निर्माण का। जबकि उक्त पाठ्यक्रम मात्र मीडिया पेशेवरों के निर्माण के सम्बन्ध में ही बात करता है।

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11. क्या हमारी आशंका सही नहीं है कि आने वाले समय में कोश, संसाधनों एवं नियुक्तियों के मामलों में हमारा हक भी इस तथाकथित इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज के हाथों हड़पा जायेगा, जबकि इसके निदेशक की कुलपति कार्यालय से घनिष्ठता सर्वविदित है।

अन्ततः हम माननीय कुलपति महोदय से अनुरोध करना चाहेंगे कि वे देश के विभिन्न केन्द्रीय विश्वविद्यालय से वरिष्ट मीडिया शिक्षाविदों की एक समिति का गठन करें जो कि इस मामले का गुणों के आधार पर निस्तारण करने में सक्षम हो। इससे कम कुछ भी विभाग एवं इसके विद्यार्थियों के विकास को अवरूद्ध करने का प्रयास माना जायेगा क्योंकि शैक्षणिक परिषद् एवं कार्यकारिणी परिषद् दोनों में ही इस विषय से सम्बन्धित विशेषज्ञों का सर्वथा अभाव है।

समस्त विद्यार्थी

पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग

इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, इलाहाबाद


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