प्रिय यशवंत जी, आशा है आप अच्छे होंगे। यह पत्र व्यक्तिगत है और आप चाहें तो इसे सार्वजनिक भी कर सकते हैं। किन्हीं बृजेश कुमार सिंह नाम के एक सज्जन के बी4एम पर प्रकाशित एक लेख पर मेरा जवाब आपने प्रकाशित किया था। लेकिन अब मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने जब दोबारा अपने उस लेख को आपकी साइट पर देखा तो उसमें काफी काट-छांट कर दी गई है। मुझे आपके काट-छांट पर कोई आपत्ति इसलिए नहीं है क्योंकि यह संपादक का अपना अधिकार है कि वह क्या प्रकाशित करे और क्या नहीं। मेरा ऐतराज यह है कि अगर संपादन करना ही था तो प्रकाशित करने से पूर्व करना चाहिए था। आपका मैसेज मुझे मिला था जिसमें आपने लिखा था कि –‘भाई अपनी फोटो भेजिए. बढ़िया लिखा है आपने. पब्लिश करा दिया है. यशवंत’। आप फोटो संपादित करते वक्त भी मेरे लेख को संपादित कर सकते थे। लेकिन एक दिन पूरा लेख चलाकर दूसरे दिन काट-छांट मेरी नजर में गलत है। अखबार की लाइन में ऐसा नहीं होता कि एक खबर छप जाए फिर उसी स्थान पर काट-छांट कर छप जाए।
बहरहाल मैं आपकी विवशता समझ सकता हूं कि ‘जागरण’ की तरफ से आप पर दबाव पड़ा होगा और ऐसा वे लोग अक्सर किया करते हैं। यह बात आप भी जानते होंगे क्योंकि आप भी उस संस्थान में रह चुके हैं। इसलिए मुझे आपसे उस तरह की शिकायत नहीं है। लेकिन मुझे निराशा इसलिए हुई कि आप आइसा से जुड़े रहे हैं और मेरी समझ से अभी तक मैंने आइसा से जुड़े लोग बहादुर ही देखे हैं।
यह मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि आप पत्रकारिता जगत के लोगों के विषय में जानकारी दें, लेकिन विवाद में स्वयं पार्टी बनने से परहेज करें। वैसे भी अब पत्रकारिता में टकराव लाला का खास बनने के लिए होते हैं, किसी सिद्धांत या विचार पर नहीं। और कुछ थोड़े से लोग अगर सिद्धांत की बात करते भी हैं तो लाला उसके पीछे अपने पालतू यसमैन लगा देते हैं। बहस इस बात पर होनी चाहिए कि अखबारों ने चुनाव के दौरान जो किया क्या वह पत्रकारिता के उसूलों के खिलाफ है या नहीं फिर चाहे वह जागरण ने किया या किसी और ने। लेकिन बहस प्रभाष जोशी के विरोध और पक्ष में केंद्रित होती जा रही है। बहस न किसी जागरण के खिलाफ है और न किसी जनसत्ता के पक्ष में। अब अगर प्रभाष जी द्वारा छेड़े गए अभियान से इस बहस में जागरण पर हमले हो रहे हैं तो इसमें दोष भी जागरण का ही है। हर संकट एक नया रास्ता भी दिखाता है, इसलिए इस संकट में से भी नया रास्ता निकलेगा लेकिन हमारी प्रतिबद्धताएं डगमगानी नहीं चाहिए।
शुभकामनाओं के साथ
आपका
अमलेन्दु उपाध्याय
19.06.2009
अमलेन्दु भाई,
आपके पत्र का जवाब देर से देने के लिए माफी चाहता हूं। आपके लेख का संपादन इसके प्रकाशन के कुछ घंटे बाद ही कर दिया गया था। संपादन का आधार सिर्फ एक था- बहस जिस मुद्दे पर हो रही है, बात को उसी पर केंद्रित रखा जाए न कि किसी व्यक्ति या संस्थान पर निजी रूप से हमला किया जाए। दैनिक जागरण और बृजेश सिंह से हमारी कोई रंजिश नहीं है और न ही प्रभाष जोशी व आलोक तोमर से कोई खुन्नस है। यहां सिर्फ मुद्दे के आधार पर बात हो रही है। आपने बृजेश सिंह पर जितने निजी किस्म के हमले किए थे, उन्हें आपके लेख से हटा दिया गया। इसके अलावा और कोई संपादन नहीं किया गया।
आपने पत्र में बिलकुल ठीक लिखा है कि बहस सही दिशा में होनी चाहिए न कि प्रभाष जोशी या बृजेश सिंह के समर्थन या विरोध में। आपने यह भी कहा है कि बहस न किसी जागरण के खिलाफ है और न किसी जनसत्ता के पक्ष में। तो आपने जो बातें कही हैं, उन्हीं मानदंडों के आधार पर आपका लेख संपादित किया गया है, एक बार जरा ध्यान से पढ़िए। आपके बाद संजीव का लेख प्रकाशित हुआ जिन्होंने बिलकुल मुद्दे पर बात की है।
आपने अपने ब्लाग पर अपना लिखा जो ओरीजनल पोस्ट प्रकाशित किया है, उसे और बी4एम पर प्रकाशित आपकी संपादित पोस्ट की कोई भी तुलना कर ले तो खुद ब खुद पता चल जाता है कि आपके आलेख से सिर्फ वही अंश हटाया गया है जो बहस को भटकाने वाला है या फिर निजी खुन्नस के चलते लिखे जाने का संकेत देने वाला है। हालांकि मुझे पता है कि आपकी किसी से कोई निजी खुन्नस नहीं है लेकिन अनजाने में ही सही, यह भाव आपके लिखे मूल आलेख से झलक रहा है। रही बात देर से संपादन करने की तो, जब अक्ल आ जाए तभी सवेरा मानना चाहिए। अखबार में छपने के बाद ठीक किए जाने की सुविधा नहीं होती लेकिन अगर यह सुविधा वेब और टीवी जैसे माध्यमों में है तो इस माध्यम के लोगों को इस सुविधा का फायदा उठाना चाहिए।
जागरण की ओर से अभी तक तो दबाव नहीं पड़ा है। अगर आगे ऐसा कुछ होता है तो सभी को सूचित करूंगा।
उम्मीद है आपका प्यार बना रहेगा।
आभार के साथ
यशवंत