बात बहुत पुरानी है। एक संपादक के दो चमचे थे। सुविधा के लिए एक का नाम गधा और दूसरे का नाम कुत्ता मान लेते हैं। एक रात जब सारी दुनिया सो रही थी तो संपादक के घर चोर घुस आया। संपादक जी सो रहे थे पर दोनों चमचे जाग रहे थे। कुत्ता इन दिनों संपादक से नाराज चल रहा ता सो उसने तय किया कि चोर को चोरी करने दिया जाए। संपादक को उनके किए की सजा मिल रही है। पर गधे से नहीं रहा गया।
उसने कुत्ते को काफी समझाया बुझाया पर कुत्ते ने एक न मानी। आखिरकार गधे ने तय किया कि वही कुछ करेगा और जोर जोर से रेंकने लगा ताकि संपादक की नींद खुल जाए। गधे की आवाज सुनकर चोर भाग गया। संपादक ने आधी रात बिलावजह रेंकने के लिए गधे की पिटाई कर दी।
कहानी की सीख : आदमी को अपना काम करना चाहिए। दूसरे का नहीं।
काफी समय बाद स्थितियां बदलीं संपादक बदले चमचे बदले …
इस बार के संपादक कॉरपोरेट संपादक थे। सुना है किसी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से आए थे पर बताते नहीं थे। वे चीजों को बड़े फलक पर देखते थे और विज्ञापन से ही नहीं खबरों से भी कमाने की सोचते थे। इस बार चमचों के वही नाम हैं। आधी रात में गधे के रेंकने की आवाज आई तो संपादक को पूरा यकीन था कि आधी रात में गधे के रेंकने की कोई तो वजह होगी। लगे वजह तलाशने। सारे फंडे लगा दिए। और समझ गए कि कोई चोर आया था और निकम्मा कुत्ता सो रहा था। और गधे ने अतिरिक्त श्रम करके अच्छा काम किया है। इस अतिरिक्त प्रयास के मद्देनजर गधे को ढेर सारे ईनाम मिले और वह उनका पसंदीदा चमचा हो गया।
कुत्ते को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। हुआ सिर्फ यह कि गधा अब कुत्ते का काम करने के लिए भी तत्पर रहता था। जल्दी ही कुत्ते को समझ आ गया कि गधा उसके कामों का भी ख्याल रखता है और वह मजे कर सकता है। अब वह सोने और आलस में रहने लगा। दूसरी ओर गधे का काम बढ़ गया और उसे अपने प्रदर्शन का स्तर बनाए रखने के लिए काफी काम करना पड़ता था। वह हमेशा दबाव में रहता है और इसलिए नई नौकरी ढूंढ़ रहा है।
(इस कहानी के पात्रों के नाम वास्तविक चरित्रों के आधार पर रखे गए हैं और अगर इनसे किसी की समानता लगती है तो समझिए उसी के लिए है. इसके पहले के 12 भड़ासी चुटकुले पढ़ने के लिए नीचे कमेंट बाक्स के आखिर में आ रहे शीर्षकों पर एक-एक कर क्लिक करें. इस चुटकुला को भेजा है वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने. मीडिया की वर्तमान दशा-दिशा पर अगर आपके पास भी कोई चुटकुला हो तो हमें भेजिए, [email protected] पर मेल करिए.)
mahandra singh rathore
October 28, 2010 at 2:42 pm
ankur singh
sanjay kumar singh ji bhadasi chutakala bhaut kuch bata raha hai. aajkal sab jagah yahi ho raha hai. agar sanjay ji koi book likh den do kam se kam media mai to wo khub padhi jayegi. acche lakin sargarbhit jok ke leye unnko badhai ho.
vineet kumar
October 29, 2010 at 12:43 am
और संपादक की उस घटना के बाद धारणा बदलती चली गयी। वो सोचने लगा कि सारे कुत्ते निकम्मे और बाहियात होते हैं,इसलिए उसने सिर्फ गदहों की भर्ती शुरु कर दी।.चोरी होने डर से तो वो मुक्त हो गए लेकिन सारे गदहे को जब खबर करने की बारी आयी तो सब जगह एक ही चीज लिखा- ढेंचू,ढेंचूं।.
AKASH MEHRA
October 29, 2010 at 5:21 am
ACTULY. I WANT TO ASK THEN WHAT WE SHOULD DO????? SHOULD WE NOT DO OUR WORK PROPERLY OR BY FAITH?????????????:o:o:o:o