सेवा में, श्री यशवंत सिंह, संपादक, भड़ास4मीडिया, सलाम आपको पहले, बाद में हरिवंशजी को। ‘बलिहारी भड़ास4मीडिया आपनो, जिन गुरु दियो बताए।’ धन्यवाद और सलाम आपको, आपके कर्तृत्व को। आपके कारण हरिवंशजी के बारे में ढेर सारी बातों की जानकारी मिली। मैंने पढ़ा कि हरिवंश जी चाहत रखते हैं कि उनका कोई उत्तराधिकारी बने। हम तो, तेवर और कलेवर, दोनों रूपों में ओमप्रकाश ‘अश्क’ जी को ही हरिवंशजी का ‘उत्तराधिकारी’ मान रहे थे। भड़ास4मीडिया में ही पढ़ा कि अश्क भी ‘पैसों के लिए’ उन्हें छोड़ गए। श्री अश्क मेरे (पटना में) स्थानीय संपादक रह चुके हैं। पैसों की औकात उन्हें बाल सफेद होने के बाद समझ में आई! खुदा का शुक्र है। हिन्दुस्तान में पैसों का बड़ा महत्व है।… किशोरावस्था में फिल्म ‘अमरदीप’ देखी थी।
इसमें गाना था, ‘लेने से इनकार नहीं / देने को तैयार नहीं / इस दुनिया में कौन है ऐसा / जो पैसों का यार नहीं।’ इन पंक्तियों में, भविष्य की ही झलक थी। आज पैसा ही सब कुछ है। तन बेचने का कारण भी और खरीदने का जरिया भी ! लेकिन हमारी समझ में एक बात नहीं आती है। ये प्रभाष जोशी जी और हरिवंश जी जैसे लोग मिल बैठकर ये क्यों नहीं सोचते हैं कि उनके प्रधान संपादकत्व में फलने-फूलने वाले, काम करने वालों की ‘फसल’ कैसी है? ये शख्सियत और श्रद्धेय लोग अपनी बोयी फसल में उग आए ‘घास-पतवार’ को छांटने, पहचानने और दुरदुराने का काम सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं करते? मेरी समझ में यह नहीं आता कि हरिवंश जी जैसे लोग, जो मुझ जैसों के श्रद्धेय होने की हैसियत रखते हैं, अभी रिटायर शब्द को जेहन में ला भी कैसे सकते हैं! श्रद्धेय प्रभाष जोशी जी अगर आज की पत्रकारिता को देखकर यह कहें कि उस पर रोड रोलर चलवा देना चाहिए, तो बड़ा क्षोम और बड़ी हताशा होती है। चलवाइये रोलर! पर कहां गई आपकी टीम? इकट्ठा कीजिए सबको। ‘जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’
भ्रष्ट और बाजारू होते जा रहे पत्रकार एवं पत्रकारिता को देखकर प्रभाष जोशी जैसी शख्सियत का ‘दुर्वासा’ के रूप में गरजना समझ में आता है, लेकिन यह समझ में नहीं आता है कि प्रभाष जी और हरिवंश जी जैसी शख्सियतों की ‘ट्रेनिंग’ एक पूरी पीढ़ी पर कारगर क्यों न हो सकी? इन दोनों की ‘ट्रेनिंग’ क्या थी, कैसी थी, इसका सीधा वास्ता मुझे कभी नहीं पड़ा है। लेकिन स्व. राजेन्द्र माथुर और आलोक मेहता की ट्रेनिंग से मेरा पाला पड़ा है। खैर, यहां हमारा आशय उस ट्रेनिंग या किसी भी ट्रेनिंग पर प्रकाश डालना नहीं है। इतना निवेदन करना है कि बी4एम यह मुहिम चलाए कि ऐसे लोग एक मंच पर आएं, वक्त निकालें, जो आज की पत्रकारिता पर रॉलर चलवा देने का खयाल रखले हों। प्रभाष जोशी या हरिवंश जी जैसी शख्सियतों को भक्तों की कमी नहीं है। आवाज तो दें !
बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं, आप यशवंत जी ! चिरायु हों ! ‘ऐश्वर्यशाली’ होने में और मजा आएगा। बस, व्यमविचारू न हों, बाजारू न हों, यही कामना और प्रार्थना है। आपसे भी, अपने प्रभु से भी ! ‘भड़ास4मीडिया’ इन दिनों लुक छिप करके (श्रेष्ठ से लेकर निकृष्ट) सभी प्रकार के पत्रकार जरुर देखते हैं। अभी-अभी दिल्ली में बसे एक ‘सर’ से, उनके ‘सर’ पर तलवार लटकने की खबर (आपही की साइट पर) पढ़कर कुशल क्षेम जानना चाहा तो उन्होंने पूछा, “कोई काम नहीं बचा है क्या? आजकल ब्लॉगों पर आने वाले बकवास बहुत पढ़ने लगे हो!” मैंने समझ लिया यशवंत भाई कि ‘सर’ ने भड़ास4मीडिया पढ़ लिया है और वे चाहते हैं कि इसे अब कोई न पढ़े। यह आपकी सफलता का प्रतीक है, बधाई और नमन ! आपके कारण हरिवंश जी को जो कुछ भेजना मयस्सर हुआ, उसकी बानगी आप भी देखिए। पत्र के साथ संलग्न है। खुला खेल फरुर्खाबादी। वसीयत अभी नहीं लिखा है। पहले ‘बस’ जाने दीजिए, फिर लिखूंगा। फिलवक्त जो लिखता हूं, वह भी यहीं संलग्न है। अवलोकनार्थ एवं फेंकनार्थ।
आपने एसएमएस के जरिए सूचना भेजी (या भिजवाई) थी कि ‘हिन्दुस्तान’ के मामले में मुकदमें की दूसरी तारीख फलां हैं। फिर हमने ई-मेल से पूछा था कि ‘तीसरा तारीख कब पड़ी’ तो जवाब गोल। कमाल है !
सादर
भरत सागर
हैदराबाद
09346803911