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इस बार आलोक तोमर ने तो हद कर दी

[caption id="attachment_16480" align="alignleft"]डा. संतोष मानव डा. संतोष मानव [/caption]अपन राम जनसत्ता के राम बहादुर राय, सुरेंद्र किशोर, हेमंत शर्मा, आलोक तोमर को पढ़ते हुए जवान हुए। तब मूंछ भी नहीं आई थी। झारखंड के झुमरीतिलैया की सड़कों पर कांख में जनसत्ता अखबार दबाए घूमते थे और दिनरात खुद को बुद्धिजीवी कहलाने की फिराक में रहते थे। तब जनसत्ता के इन चार नामों के साथ दर्जन भर और नाम अपने आदर्श हुआ करते थे और सपने में भी अपन राम चाहते थे कि इन जैसा बन जाएं। लेकिन रांची, पटना, नागपुर, दिल्ली, भोपाल और ग्वालियर की यात्रा में चौबीस-पच्चीस साल गुजारने के बाद ढेर सारे भ्रम टूटे हैं। खूब पत्रकारिता की और पत्रकारों को भी खूब जाना-समझा। उनका चाल, चरित्र और चेहरा देखा। जिन्हें दिन के उजाले में सती सावित्री बनते देखा, वे रात के अंधेरे में वेश्यावृत्ति करती पकड़ी गईं। ऐसे संपादक भी देखे, जो संपादकीय विभाग में शेर की तरह गरजते थे और अखबारी सेठों और उनके बिगड़ैल औलादों के सामने बकरी जैसा मिमियाते थे।

डा. संतोष मानव

डा. संतोष मानव अपन राम जनसत्ता के राम बहादुर राय, सुरेंद्र किशोर, हेमंत शर्मा, आलोक तोमर को पढ़ते हुए जवान हुए। तब मूंछ भी नहीं आई थी। झारखंड के झुमरीतिलैया की सड़कों पर कांख में जनसत्ता अखबार दबाए घूमते थे और दिनरात खुद को बुद्धिजीवी कहलाने की फिराक में रहते थे। तब जनसत्ता के इन चार नामों के साथ दर्जन भर और नाम अपने आदर्श हुआ करते थे और सपने में भी अपन राम चाहते थे कि इन जैसा बन जाएं। लेकिन रांची, पटना, नागपुर, दिल्ली, भोपाल और ग्वालियर की यात्रा में चौबीस-पच्चीस साल गुजारने के बाद ढेर सारे भ्रम टूटे हैं। खूब पत्रकारिता की और पत्रकारों को भी खूब जाना-समझा। उनका चाल, चरित्र और चेहरा देखा। जिन्हें दिन के उजाले में सती सावित्री बनते देखा, वे रात के अंधेरे में वेश्यावृत्ति करती पकड़ी गईं। ऐसे संपादक भी देखे, जो संपादकीय विभाग में शेर की तरह गरजते थे और अखबारी सेठों और उनके बिगड़ैल औलादों के सामने बकरी जैसा मिमियाते थे।

नैतिकता और मर्यादा का पाठ पढ़ाने वाले लोग नवयौवनाओं को अपने कक्ष में बैठाकर संपादकीय लिखने के बहाने चूमते-चाटते थे। एक उदाहरण दे रहा हूं, जिससे भास्कर, भरत… जैसे लेख लिखने वालों की कलई खुलेगी। उन दिनों लोकमत समाचार नागपुर में था। संपादक थे आज के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति और कभी जनसत्ता के कार्यकारी संपादक रहे अच्युतानंद मिश्र। आलोक तोमर लोकमत समाचार पत्र से जुड़े नहीं थे, लेकिन उनके आलेख, इंटरव्यू आदि अच्युतानंद जी प्रकाशित किया करते थे। वह रविवार का दिन था और आधे पेज पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का इंटरव्यू छपा था। शीर्षक था- ‘अच्छे-अच्छों की पोल खोल दूंगा : जोगी’।

दफ्तर पहुंचने पर हंगामा मचा था। पता लगा कि अजीत जोगी सुबह से संपादक और अखबार के मालिक को अनेक फोन लगा चुके हैं। और हर फोन में उन्होंने यही कहा कि आलोक तोमर से वे डेढ़ साल से नहीं मिले हैं, तो उन्होंने इंटरव्यू कब ले लिया। दुखी मन से अच्युतानंद जी को उस इंटरव्यू का खंडन छापना पड़ा था। शायद ही किसी अखबार ने कभी इंटरव्यू का खंडन छापा हो। ऐसे महापत्रकारों की लेखनी पर कितना विश्वास किया जाए…।

प्रभु चावला, रजत शर्मा और दूसरे पत्रकारों को गरियाने वाले आलोक तोमर लिखते अच्छा हैं। इसलिए अपन उनके प्रशंसक थे, हैं। लेकिन इस बार आलोक तोमर ने हद कर दी। और अति कभी अच्छी नहीं होती है।


लेखक डा. संतोष मानव दैनिक भास्कर ग्वालियर में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत हैं.

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