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भास्कर, भरत और दलाली

[caption id="attachment_16463" align="alignleft"]आलोक तोमरआलोक तोमर[/caption]समूह की असली राम कहानी : बहुत संभव है कि आपने 1956 में भोपाल से प्रकाशित ‘सुबह सबेरा’ और 1957 में ग्वालियर से प्रकाशित ‘गुड मार्निंग इंडिया’ के नाम भी नहीं सुने हों। झांसी से ग्वालियर आए सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने ये दो अखबार शुरू किए थे। अखबार चल निकले तो 1958 में इनका नाम ‘भास्कर समाचार’ कर दिया गया। उसी साल ग्वालियर से जयेंद्र गंज मोहल्ले में एक गली से दैनिक भास्कर की शुरुआत हुई। आज देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक दैनिक भास्कर का पहला संस्करण अब भी उसी गली से छपता है। ग्वालियर में जब मैं दैनिक स्वदेश में काम करता था तो भाई साहब (द्वारका प्रसाद जी को लोग इसी नाम से जानते थे और वे भी अपने चौकीदार से ले कर संपादक तक को भाई साहब ही कहते थे, नाराज हो कर गाली देते तो भी भाई साहब कहते थे) ने नौकरी के लिए बुलाया था। ‘स्वदेश’ में चार सौ रुपए मिलते थे और भाई साहब ने कहा कि पांच सौ रुपए दूंगा।

आलोक तोमरसमूह की असली राम कहानी : बहुत संभव है कि आपने 1956 में भोपाल से प्रकाशित ‘सुबह सबेरा’ और 1957 में ग्वालियर से प्रकाशित ‘गुड मार्निंग इंडिया’ के नाम भी नहीं सुने हों। झांसी से ग्वालियर आए सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने ये दो अखबार शुरू किए थे। अखबार चल निकले तो 1958 में इनका नाम ‘भास्कर समाचार’ कर दिया गया। उसी साल ग्वालियर से जयेंद्र गंज मोहल्ले में एक गली से दैनिक भास्कर की शुरुआत हुई। आज देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक दैनिक भास्कर का पहला संस्करण अब भी उसी गली से छपता है। ग्वालियर में जब मैं दैनिक स्वदेश में काम करता था तो भाई साहब (द्वारका प्रसाद जी को लोग इसी नाम से जानते थे और वे भी अपने चौकीदार से ले कर संपादक तक को भाई साहब ही कहते थे, नाराज हो कर गाली देते तो भी भाई साहब कहते थे) ने नौकरी के लिए बुलाया था। ‘स्वदेश’ में चार सौ रुपए मिलते थे और भाई साहब ने कहा कि पांच सौ रुपए दूंगा।

अपना इरादा दिल्ली आने का था और एमए का रिजल्ट आ चुका था। पूरे विश्वविद्यालय में सबसे ज्यादा नंबर आए थे इसलिए और ज्यादा दिमाग चढ़ा हुआ था। भाई साहब द्वारका प्रसाद अग्रवाल एक बड़े हॉल मे बैठते थे जहां एक ओर संपादकीय विभाग था और दूसरी ओर प्रसार यानी सरकुलेशन। नीचे की मंजिल पर रिपोर्टिंग वाले बैठते थे। पाई-पाई का हिसाब रखने वाले भाई साहब अखबारों के बंडल स्टेशन पहुंचाने वाले ऑटो रिक्शा पर नजर रखने के लिए कई बार उसके साथ अगली सीट पर बैठ कर चले जाते थे। तब तक उनके पास कार नहीं थी।

इसके बाद की बात करने से पहले 2004 की एक कहानी बताना उचित लगता है। इससे भास्कर समूह के वर्तमान चरित्र को समझने मे आसानी होगी। चुनाव की घोषणा हो चुकी थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अंग्रेजी अखबारों को इंटरव्यू दे चुके थे। एक दिन दोपहर सीधे अटल जी का फोन आया। बगैर किसी भूमिका के उन्होंने कहा कि भास्कर से रमेश अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल और कोई भरत अग्रवाल आए थे। शिकायत कर रहे थे कि आप भास्कर को इंटरव्यू क्यों नहीं दे रहे? मैंने उन्हें कह दिया है कि इंटरव्यू मैं जरूर दूंगा मगर सिर्फ आलोक तोमर को दूंगा। उनका फोन आएगा तो बात कर लेना।

पहले भरत अग्रवाल का फोन आया। बोले कि पापा (रमेश जी) मिलना चाहते हैं। थोड़ी देर बाद खुद रमेश जी का फोन आ गया और आवाज में मिश्री घोल कर बोले कि ग्वालियर के होकर ग्वालियर वालों का ध्यान नहीं रखते हो। खैर, मुलाकात तय हुई। जो बात होनी थी, हुई। रमेश जी ने यह भी कहा कि भास्कर के लिए क्यों नहीं लिखते? अपन लिखने के धंधे में हैं, सो फौरन उनकी बात मान गए। रोज भास्कर में खबरें और लेख छपने लगे। चुनाव के नतीजों का अंदाजा हो चला था इसलिए नतीजे आने के पहले लिख दिया कि यह सोनिया गांधी का चुनाव है। अटलजी प्रधानमंत्री नहीं रहे और अगले दिन भास्कर के संपादकीय विभाग से संदेश आ गया कि आपके लिखे की जरूरत नहीं है। बाद में भरत अग्रवाल ने दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में बुलाया और कहा कि आपकी कलम पर दुर्गा विराजती हैं और हम लोग लक्ष्मी के पुजारी हैं। हमारे तेल, नमक और बहुत सारे धंधे हैं, आप दो तीन केंद्रीय मंत्री पकड़ लीजिए, हमारे काम करवाइए और हर महीने आपके खाते में दो लाख रुपए जमा हो जाएंगे। दलाली का यह सौदा मैंने मंजूर नहीं किया।

इन दिनों भास्कर समूह खबरों में है। भास्कर ने डीबी कार्प के नाम से शेयर बेचने शुरू किए हैं। इस पर बवाल है। अदालत में मुकदमा भी चल रहा है। कहानी यह है कि सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने दैनिक भास्कर चलाने के लिए जो कंपनी रजिस्टर करवाई थी उसका नाम द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स है। यह भागीदारी फर्म है और इसमें उनके भाई महेश अग्रवाल, भाई विष्वंभर अग्रवाल और पुत्र रमेश अग्रवाल शामिल थे। पर अचानक रमेश अग्रवाल ने अपने आपको भास्कर समूह का मालिक घोषित कर दिया। खुद द्वारका प्रसाद अग्रवाल अपने बेटे के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय तक गए जहां कहा गया कि अखबार का मालिक द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स ही है और दैनिक भास्कर नाम पर भी उसका अधिकार है। द्वारका प्रसाद जी की बेटी हेमलता अग्रवाल को भी कंपनी में सर्वोच्च न्यायालय ने भागीदार करार दिया। हेमलता कहती हैं कि रमेश अग्रवाल और भास्कर प्रबंधन ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या करके अवमानना की है और दिल्ली सहित कई जगह उनके नाम जो संपत्ति थी, वह भी बेच डाली। रही बात भास्कर के धंधों की तो हाल ही में उसने दिल्ली के सुपर बाजार की इमारत खरीदने के लिए टेंडर डाला है।

देश के अखबारों को नियंत्रित करने वाले आरएनआई ने जुगाड़ विशेषज्ञ भरत अग्रवाल की कृपा से दैनिक भास्कर का मालिक अचानक डीपी अग्रवाल एंड ब्रदर्स की जगह रमेश अग्रवाल को बना दिया। इसके लिए बाकी भागीदारों का दावा है कि रमेश अग्रवाल ने अपने पिता द्वारा सारी हिस्सेदारी अपने नाम करने का दस्तावेज पेश किया। द्वारका प्रसाद जी को तब तक लकवा मार चुका था मगर उन्होंने अदालत से कहा कि उन्हें ऐसा कोई दस्तावेज याद नहीं है।

द्वारका प्रसाद अग्रवाल की दो पत्नियां थीं। किशोरी देवी और कस्तूरी देवी। सर्वोच्च न्यायालय ने किशोरी देवी और उनकी बेटियों हेमलता और अनुराधा को द्वारका प्रसाद अग्रवाल की हिस्सेदारी सौंपने के लिए भी आदेश दिया जो अब अपील में है। हेमलता दिल्ली में रहती हैं और उनके पास बहुत पैसा भी नहीं है जबकि रमेश अग्रवाल की ओर से कोर्ट में देश के सबसे महंगे वकील खड़े किए जाते हैं।

रमेश अग्रवाल को उनके चाचा महेश अग्रवाल फर्जी चेयरमैन बताते हैं और रमेश अग्रवाल की ओर से इस बारे में कभी कोई जवाब नहीं आया। जब वे अपने बीमार पिता के खिलाफ मुकदमा लड़ सकते हैं, जब वे भास्कर नाम छिनने से डर कर नव भास्कर और दिव्य भास्कर चलाने की अर्जी दे सकते हैं तो वे कुछ भी कर सकते हैं। नव भास्कर का उनका आवेदन जबलपुर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था और दिव्य भास्कर गुजराती का सबसे बड़ा अखबार बन चुका है। जी समूह के साथ मिल कर अंग्रेजी में मुंबई से डीएनए निकाला गया मगर भास्कर समूह की इस मामले में असमर्थता को देख कर अब जी समूह ने इसकी संपादकीय जिम्मेदारी खुद संभाल ली है। रमेश अग्रवाल का नमक और तेल का धंधा अच्छा चल रहा है और खुद इनके आंकड़ों के अनुसार यह समूह ग्यारह सौ करोड़ रुपए का मालिक है। इस रकम में कितनी किसकी है, इसका फैसला तो अदालत ही करेगी।

लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं.

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