समय के साथ मीडिया ने न सिर्फ अपना तेवर बदला है बल्कि अपना चोला भी बदल लिया है। आजादी के पहले का मिशन अब पत्रकारिता से लुप्त हो चुका है। भारत में विलियम वोल्टस के प्रयासों के बाद सर्वप्रथम हिक्की ने समाचार पत्र ‘बंगाल गजट‘ और ‘कोलकता जनरल एडवाईजर‘ 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित कर जो बीजारोपण किया था, वह आज विशाल वृक्ष का स्वरूप ले चुका है। पत्रकारिता के शुरुआती दौर में हिक्की के प्रयासों से बिहार अछूता नहीं रहा था।
1810 में बिहार का पहला समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। बिहार में उस समय एक भी प्रिंटिंग प्रेस नहीं होने से मौलवी अकरम अली ने ‘साप्ताहिक उर्दू अखबार‘ संपादित कर कोलकता से छपवाया। कहते हैं, पत्रकारिता बंगाल में जन्मी और धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में फैल गई। बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र होने के बावजूद, यहां से हिन्दी पत्रों का प्रकाशन उर्दू व अंग्रेजी समाचार पत्रों के बाद ही हुआ। संजय कुमार ने अपनी सद्य: प्रकाशित पुस्तक ‘बिहार की पत्रकारिता तब और अब‘ में विभिन्न और विविध पत्रकारीय गुणों की तफ्सील से चर्चा की है। खासकर बिहार की पत्रकारिता को लेकर साफ समझ बनायी गयी है। किताब की भूमिका लिखते हुए प्रभात खबर, पटना के संपादक अजय कुमार ने ठीक ही लिखा है कि यह किताब उन लोगों के लिए भी जरूरी है जो अखबारों, पत्रकारों के बारे में चर्चा करते हुए देश-समाज सवालों से टकराते हैं। पत्रकारिता के विभिन्न उतार-चढ़ावों को जानने के लिहाज से यह जरूरी दस्तावेज के रूप में है।
लम्बे समय से पत्रकारिता से जुड़े और फिलहाल आकाशवाणी पटना के प्रादेशिक समाचार एकांश में समाचार संपादक, संजय कुमार ने ‘बिहार की पत्रकारिता तब और अब’ की शुरुआत ‘बिहार में पत्र और पत्रकारिता’ से की है। इसमें 1810 में बिहार के पहले समाचार पत्र के प्रकाशन से लेकर अब तक की जानकारी को संक्षिप्त रूप में समेटा गया है। हालांकि लेखक ने पूरा प्रयास किया है कि शुरू से लेकर अब तक बिहार से प्रकाशित पत्रों को समेटा जाये। वैसे यह पूरी तरह से संभव नहीं हैं फिर भी प्रमुख पत्रों का इसमें जिक्र मिलता है। खासकर शुरुआती दौर पर ज्यादा फोकस किया गया। ‘समाचार एजेंसियां’ अध्याय के तहत बिहार में समाचार एजेंसी की शुरुआत से लेकर अब तक की जानकारी है। साथ ही बिहार में ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया’ की दास्तान को भी बखूबी रखा गया है। आकाशवाणी से लेकर खबरिया चैनलों के बारे में सूचना है।
पुस्तक को दो भाग में देखा जा सकता है। एक में इतिहास की बात है तो दूसरे में बिहार में पत्रकारिता के बदलते आयामों पर बात की गयी है। ‘साहित्यिक पत्रकारिकता और साहित्यकार’ में बिहार से प्रकाशित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं की चर्चा की गई है। साथ ही बिहार के यशस्वी पत्रकार जो प्रख्यात साहित्यकार भी थे उनकी चर्चा की गई है। मसलन, ईश्वरी प्रसाद शर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपूरी सहित कई साहित्यकार-पत्रकार ने जिन-जिन साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन आदि किया, उसकी भी चर्चा है।
आज, बदलाव के दौर में मीडिया है और इसे ही विषय बना कर संजय कुमार ने ‘बदलाव के दौर में मीडिया’ में चर्चा की है। इसमें बेव पत्रकारिता को भी विस्तार से स्थान दिया गया है। अक्सर आरोप लगता रहा है कि मीडिया विकास की खबरों को नजरअंदाज कर राजनीतिक और आपराधिक खबरों को ही अहमियत देती है। इन्ही मुद्दों को लेखक ने अखबरों का अध्ययन कर उठाया है। इसके अलावे पुस्तक में ‘बाजारीकृत मीडिया में साहित्य’, ‘मीडिया के लिए हॉट केक’, ‘मीडिया का अतिवाद’ और ‘मीडिया अपनी नीति तय करे’ अध्यायों में मीडिया के बदलते स्वरूप को खंखालने का प्रयास किया है। संजय की यह पुस्तक ‘बिहार की पत्रकारिता तब और अब’ आलेखों का संग्रह है जो शुद्ध रूप से पत्रकारिता पर केंद्रित है। यकीनन पाठकों को पसंद आयेगी। खासकर पत्रकारिता संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों के लिए बेहद उपयोगी है।
किताब डेढ़ सौ रुपये की है। इसे प्रकाशित किया है विशाल पब्लिकेशन (कैलाश मार्केट, दरियापुर, पटना-04) ने।
इस पुस्तक समीक्षा के लेखक हैं कैलाश दहिया जो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग में संपादक पद पर कार्यरत हैं। उनसे संपर्क करने के लिए आप 09868214938 पर रिंग कर सकते हैं। पुस्तक लेखक संजय कुमार से संपर्क उनके मोबाइल नंबर 09934293148 के जरिए किया जा सकता है।