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साहित्य

प्रभाष जोशी ने किया किताब का लोकार्पण

संतुष्टि का पाठ पढाती है भारतीय सभ्‍यता : वरिष्‍ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने शुक्रवार को कहा कि शासक वर्ग का काम ही है अपनी सभ्‍यता के वर्चस्‍व को बनाए रखना और गुलामों की  सभ्‍यता को खत्‍म करना। महात्‍मा गांधी का स्‍वराज इसी धारणा पर आधारित था कि लोग अपनी इच्‍छाओं को सीमित रखें ताकि वे उसे खुद के प्रयासों से पूरा कर लें। नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन में डॉ. चंद्रकांत राजू की किताब ‘क्‍या विज्ञान पश्चिम में शुरू हुआ’  का लोकार्पण करते हुए जोशी ने गांधी और हिंद स्‍वराज का जिक्र किया और कहा कि अंग्रेज हिंदुस्‍तानियों के गुणों के कारण उनके खिलाफ थे।

<p align="justify"><font color="#993300">संतुष्टि का पाठ पढाती है भारतीय सभ्‍यता :</font> वरिष्‍ठ पत्रकार <strong>प्रभाष जोशी</strong> ने शुक्रवार को कहा कि शासक वर्ग का काम ही है अपनी सभ्‍यता के वर्चस्‍व को बनाए रखना और गुलामों की  सभ्‍यता को खत्‍म करना। महात्‍मा गांधी का स्‍वराज इसी धारणा पर आधारित था कि लोग अपनी इच्‍छाओं को सीमित रखें ताकि वे उसे खुद के प्रयासों से पूरा कर लें। नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन में <strong>डॉ. चंद्रकांत राजू</strong> की किताब <em>'क्‍या विज्ञान पश्चिम में शुरू हुआ'  </em>का लोकार्पण करते हुए जोशी ने गांधी और हिंद स्‍वराज का जिक्र किया और कहा कि अंग्रेज हिंदुस्‍तानियों के गुणों के कारण उनके खिलाफ थे। </p>

संतुष्टि का पाठ पढाती है भारतीय सभ्‍यता : वरिष्‍ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने शुक्रवार को कहा कि शासक वर्ग का काम ही है अपनी सभ्‍यता के वर्चस्‍व को बनाए रखना और गुलामों की  सभ्‍यता को खत्‍म करना। महात्‍मा गांधी का स्‍वराज इसी धारणा पर आधारित था कि लोग अपनी इच्‍छाओं को सीमित रखें ताकि वे उसे खुद के प्रयासों से पूरा कर लें। नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन में डॉ. चंद्रकांत राजू की किताब ‘क्‍या विज्ञान पश्चिम में शुरू हुआ’  का लोकार्पण करते हुए जोशी ने गांधी और हिंद स्‍वराज का जिक्र किया और कहा कि अंग्रेज हिंदुस्‍तानियों के गुणों के कारण उनके खिलाफ थे।

भारतीय सभ्‍यता व्‍यक्ति को संसाधनों को हड़पने और उद्यमी बनाने के बजाए  संतुष्टि का पाठ पढाती है, जो पश्चिम की सोच के खिलाफ है। गांधी पश्चिमी सभ्‍यता के खिलाफ थे क्‍योंकि यह स्‍वराज के आड़े आती थी। डॉ. आशीष नंदी ने कहा कि विज्ञान को आज जैसे समझा जाता है, इतिहास का उससे कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में पाश्‍चात्‍य प्रभुत्‍व पूरी तरह छाया हुआ है। पर पश्चिमी सोच से हट कर बहुलवाद की ओर जाना है तो विवेक के उस दायरे में रहना है जो मनुष्‍य की सोच की सीमा को नजरअंदाज न करता हो। उन्‍होंने कहा‍ कि पश्चिम का इतिहास हमें बताता है कि विज्ञान है तो सार्वभौमिक लेकिन यह जन्‍मा पश्चिम में जहां से यह पूरे यूरोप में फैला। राजू की किताब में पश्चिम के इस पूर्वाग्रहपूर्ण इतिहास को चुनौती दी गई है और विज्ञान के इतिहास लेखन में मजहब और सियासत के गठजोड की पडताल की गई है। साभार : जनसत्ता

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