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साहित्य

लिखने-पढ़ने से ज्यादा बोलने-सुनने का बाजार : नामवर

नामवर सिंह का संबोधन‘बोलना तो है!’ – प्रसिद्ध साहित्कार और समालोचक डॉ नामवर सिंह के हाथों विमोचन के साथ ही ये पुस्तक बाज़ार में आ गई है। जैसा कि पुस्तक का नाम है, यह बोलने यानी वाणी, उसके रूप, प्रकृति, प्रभाव औऱ उसके असरकारी तरीके से उपयोग की विभिन्न विधियों और सुधार के तरीक़ों पर केंद्रित है। पुस्तक विमोचन समारोह सेक्टर 58 नोएडा स्थित मास्को मीडिया इंस्टीट्यूट में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि डॉ नामवर सिंह ने इस मौके पर कहा कि इक्कीसवीं सदी में उन्हीं चीज़ों का बाज़ार तेज़ी से फैल रहा है जो लिखने और पढ़ने से ज्यादा बोलने और सुनने से जुड़ी हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसकी उम्दा मिसाल है।

नामवर सिंह का संबोधन

नामवर सिंह का संबोधन‘बोलना तो है!’ – प्रसिद्ध साहित्कार और समालोचक डॉ नामवर सिंह के हाथों विमोचन के साथ ही ये पुस्तक बाज़ार में आ गई है। जैसा कि पुस्तक का नाम है, यह बोलने यानी वाणी, उसके रूप, प्रकृति, प्रभाव औऱ उसके असरकारी तरीके से उपयोग की विभिन्न विधियों और सुधार के तरीक़ों पर केंद्रित है। पुस्तक विमोचन समारोह सेक्टर 58 नोएडा स्थित मास्को मीडिया इंस्टीट्यूट में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि डॉ नामवर सिंह ने इस मौके पर कहा कि इक्कीसवीं सदी में उन्हीं चीज़ों का बाज़ार तेज़ी से फैल रहा है जो लिखने और पढ़ने से ज्यादा बोलने और सुनने से जुड़ी हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसकी उम्दा मिसाल है।

पुरानी कहावत भी है कि बातन हाथी पांव-बातन हाथी पीठ। यानी आपकी उपलब्धि बहुत हद तक आपकी शैक्षिक योग्यता के साथ ही आपके बोलने और सुनने की तरीके पर निर्भर है। लेकिन हैरत की बात है कि ‘पढ़ो-लिखो’ की सीख देने वाले समाज में अब भी बोलने-सुनने की कला की व्यावहारिक और औपचारिक शिक्षा देने की कोई व्यवस्था नहीं है। डॉ नामवर सिंह विस्तार से हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी के कई उदाहरण देकर बताया कि किस तरह क्रियापदों के कलात्मक प्रयोग से ‘अंदाज-ए-बयां’ बदला जा सकता है, और इन्हीं छोटी छोटी बातों से मिलकर उम्दा बयानी बनती है।

पुस्तक का विमोचन

नामवर जी ने बोलने की कला पर शिक्षा देने वाले इंदौर के अनूठे वाग्मिता संस्थान के संस्थापक, मानद प्राचार्य और पुस्तक के लेखक-संपादक शीतला मिश्र और रवींद्र शाह को बधाई दी। साथ ही कहा कि डॉ. मिश्र ने जीवन के हर कदम पर काम आने वाली बोलने की जिस कला में 50 हज़ार लोगों को प्रवीण किया, ‘बोलना तो है!’ के ज़रिये उसका दायरा और भी विस्तृत हो सकेगा।

पुस्तक के लेखक डॉ. शीतला मिश्र ने बताया कि किस तरह उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर सन 1978 में ‘वाग्मिता संस्थान’ की शुरुआत की और ‘बोलना तो है!’ उनके तीस वर्षों के अनुभव का निचोड़ है। वे कहते हैं कि हम नींद के अलावा बाकी वक्त में से 75 फीसदी बोलने या सुनने में बिताते हैं। ऐसे में यदि इसे बेहतर बना लें तो हमारे जीवन का अधिकांश भी बेहतर हो जाएगा। लेकिन विडंबना यह है कि अब तक सिर्फ नकल और अनुकरण के हवाले है। हालांकि इसे औपचारिक तरीके से सुधारा जा सकता है और यह पुस्तक इसी की पहली सीढ़ी है। डॉ. मिश्र ने कहा कि स्कूली पाठ्यक्रमों की प्रस्तावना में लिखा जाता है कि पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्र की अभिव्यक्ति क्षमता का विकास का है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था इस वादे पर खरी नहीं उतरती। लिहाजा ‘बोलना तो है!’ हर वर्ग की ज़रूरत है।

समारोह में मौजूद विशिष्टजन

उदयपुर के पत्रकार उग्रसेन राव, मास्कोमीडिया के निदेशक दिवेश नाथ और पुस्तक में रेखाचित्र बनाने वाले न्यूज 24 के माधव जोशी ने भी पुस्तक पर चर्चा की। कार्यक्रम में न्यूज 24 चैनल के मैनेजिंग एडीटर अजीत अंजुम, आज़ाद न्यूज के न्यूज डायरेक्टर अंबिकानंदन सहाय, मानव रचना विश्वविद्यालय फरीदाबाद के डॉ. सीपी सिंह, पाठ्यपुस्तक निगम छत्तीसगढ़ के महाप्रबंधक सुभाष मिश्र, अमर उजाला के स्थानीय संपादक गोविंद सिंह, एनडीटीवी के अखिलेश शर्मा, डीडी न्यूज के प्रकाश पंत, एनबीटी के पीयूष पांडे, विजय मिश्रा सहित कई वरिष्ठ पत्रकार, सुधी श्रोता और मास्को मीडिया के छात्र उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन किताब के संपादक और वाग्मिता संस्थान से लंबे समय से संबद्ध आजाद न्यूज चैनल के संपादक रवीन्द्र शाह ने किया। इससे पहले रवींद्र शाह की लिखित/संपादित – पत्रकारिता: एक परिचय, हरसूद : 30 जून, शून्य से शिखर तक, वाह मध्यप्रदेश! आदि पुस्तकें बाज़ार में आ चुकी हैं।  

  • किताब का नाम : बोलना तो है!

  • लेखक/संपादक : डॉ. शीतला मिश्र/रवींद्र शाह

  • प्रकाशक : राधाकृष्ण पेपरबैक्स

  • पेज : 312

  • कीमत : 175 रुपए


‘बोलना तो है!’ पर पत्रकार रवीश कुमार के विचार जानने के लिए उनके ब्लॉग कस्बा पर जाएं, क्लिक करें- बोलना तो है लेकिन कैसे?

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