‘नंदीग्राम डायरी’ भारत के किसानों और खेती को बचाने का प्रयास- प्रभाष जोशी : बीते दिनों ‘नंदीग्राम डायरी’ पर गाँधी संग्रहालय पटना के बादशाह खां सभागार में संग्रहालय की ओर से एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। संग्रहालय के सचिव जाने-माने गाँधीवादी डॉ. रजी अहमद ने कहा कि 1943 में पहली बार नंदीग्राम अकाल-भुखमरी की ऐतिहासिक त्रासदी से सुर्खियों में आया था, आज नंदीग्राम दूसरी वजहों से चर्चे में आया। हम चाहते हैं कि नंदीग्राम डायरी के बहाने एक स्वस्थ संवाद हो और वैकल्पिक समाधान का कोई रास्ता निकाला जाये। इस डायरी के लेखक बिहार की माटी-पानी में जन्मे-पले-बढ़े हैं, इसलिए बिहार में इस विषय पर संवाद जरूरी है कि पुष्पराज किस तरह नंदीग्राम गये और नंदीग्राम डायरी लिखने का जोखिम इन्होंने क्यों उठाया। चर्चित क्रांतिकारी कवि आलोक धन्वा ने नंदीग्राम डायरी के बहाने वामपंथी नैतिकता का सवाल उठाया और बड़ी गहराई के साथ सोवियत संघ के विघटन और क्रांतिकारी लेखकों की रचनाशीलता की चर्चा की।
साम्यवादी आंदोलन के उतार-चढ़ाव के मध्य विचारों की लड़ाई की जो स्वस्थ परंपरा बीसवीं सदी में दीखती है, हमें उसे भी समझना चाहिए। वास्तविक जीवन में कोई दर्शक नहीं होता इसलिए लेखक का जीवन भी इससे अलग नहीं हो सकता है। एक लेखक दोनों ओर से जवाबदेह होता है। वह स्त्री और पुरुष दोनों एक साथ होता है। वह स्त्री होकर नहीं जिऐगा तो उसके भीतर से करूणा की अभिव्यक्ति कैसे होगी। पुष्पराज ने नंदीग्राम डायरी लिखकर किसी खास विचारधारा का अपमान नहीं किया है बल्कि अपने लेखकीय धर्म का निर्वहन किया है। आलोकधन्वा ने कहा कि नंदीग्राम डायरी एक ऐसी पुस्तक है, जिसे हर नागरिक को पढ़ना चाहिए, लेकिन एक वामपंथी को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।
वरिष्ठ आलोचक एवं वामपंथी विचारक खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि गतिशील, प्रवाहपूर्ण और सहज भाषा में यह पुस्तक लिखी गयी है। नंदीग्राम की हिंसा-मारकाट और बलात्कार की चर्चा करते हुए लेखक कहीं आवेग में नहीं आया है। किताब को पढ़ते हुए एक ख्याल मन मस्तिष्क में बार-बार उभरता है कि क्या सी.पी.एम. काडरों का अब एक मात्र काम स्त्रियों का बलात्कार करना ही रह गया है। यह पुस्तक बंगाल के स्याह पक्ष को ही दर्शाती है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद एक पाठक इसी नतीजे पर पहुँचेगा कि बंगाल की वामपंथी सरकार एक दैत्य है, जिसने हत्या के अलावा कुछ नहीं किया। इसका प्रभाव अंतत: वामपंथ के विरुद्ध जाता है। वामपंथ का विकल्प क्या ममता बनर्जी हैं, या कांग्रेस या माओवादी।
वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी ने कहा कि नंदीग्राम की घटना पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ही नहीं बल्कि पूरे सभ्य भारतीय समाज का घाव हो गया है। पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही खेती के खिलाफ हैं और औद्योगिकरण चाहते हैं। सिर्फ उद्योग से ही हमारा विकास हो सकता है, यह झूठ है। विकास और उद्योग के नाम पर देश में अब तक छह करोड़ लोगों को बेघर कर दिया गया है, जिनमें चार करोड़ आदिवासी हैं। विश्वबैंक की एक रिर्पोट के अनुसार 2020 के बाद दुनिया में खेती करने के लिए मात्र 40 करोड़ किसानों की जरूरत होगी। इस देश के सबसे अमीर आदमी और सबसे गरीब आदमी के बीच एक करोड़ गुणा का फर्क है। अमरीका में मात्र 2 फीसदी लोग किसानी में हैं पर भारत में 70 फीसदी आबादी खेती-किसानी पर टिकी है। सवाल यह है कि अगर खेती नहीं बचेगी तो भारत कैसे बचेगा। `नंदीग्राम डायरी´ नंदीग्राम के बहाने भारत के किसानों और खेती को बचाने का प्रयास है। लेखक ने अपनी पुस्तक को राजनीतिक लोभ-लाभ के मोह से दूर रखा है।
पत्रकार श्रीकांत ने `नंदीग्राम डायरी´ को अकाल, भूख और लड़ाई के बीच से तैयार महत्वपूर्ण दस्तावेज बताया। लोक सरोकारों से जुड़ी हिन्दी की यह पहली किताब है जिसे पेंगुइन ने प्रकाशित किया है। इस डायरी को पढ़ते हुए बिहार के अर्द्ध सामंती समाज में हुए पुराने किसान आंदोलनों के चित्र सामने आते हैं। सत्ता का चरित्र गुजरात, बंगाल, बिहार क्या पूरे देश में जनता और जन-आंदोलनों के विरुद्ध एक तरह शत्रुवत रहा है।
पुस्तक के लेखक पुष्पराज ने इस बात का खुलासा किया कि बिहार के एक गांव में जन्मा-पला एक मनुष्य बंगाल के गांवों में खड़ा होकर किसानों के दुख-संग्राम को क्यों नहीं लिख सकता है। बिहार में हमारे पिता एक कुलक किसान हैं पर जब हमने नंदीग्राम को `आमार ग्राम नंदीग्राम´ मान लिया तो नंदीग्राम में हमारे पिता हल जोत रहे थे और उनकी खेती-जीविका पर लगातार हमले होते रहे। हमलावरों के हाथ में लाल झंडा था और उस लाल झंडे की आइडियोलॉजी को दुनिया की सबसे बेहतरीन आइडियोलॉजी मानने वाले इस लेखक ने हमले के विरुद्ध संग्राम को लिखने का फैसला लिया। लिखने का यह फैसला जोखिम भरा था पर लिखना शायद जरूरी भी था। नंदीग्राम और बंगाल के समाज शास्त्र को समझाने में जिसने सबसे ज्यादा मदद की वे भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त सूबेदार मेजर आदित्य बेरा थे। हमने उन्हें नंदीग्राम का आइकॉन लिखा है लेकिन हमारी डायरी के आइकॉन की कॉमरेड हरमातों ने हत्या कर दी है। इस देश में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जिलािधकारी सभी एक तरह के नागरिक हैं फिर यह फैसला भी हमें ही करना है कि सत्ता के साथ खड़े हों या जनता के साथ।
परिचर्चा में प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव राजेन्द्र राजन ने नंदीग्राम डायरी को दुख का एक पिटारा बताते हुए लेखक से विकल्प बताने का आग्रह किया। राजन ने डायरी की रचना प्रक्रिया की चर्चा करते हुए कहा कि इस पुस्तक के लेखक ने अपने पिता और पितामह को मृत्युशैया पर छोड़कर नंदीग्राम की रचना को पहली प्राथमिकता दी। इंडियन डॉक्टरस फॉर पीस एंड डेवलपमेन्ट के बिहार समन्यवयक और प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ. सत्यजीत ने वामपंथी संगठनों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र और अनुशासन की प्राथमिकता को नंदीग्राम का सबक बताया। बिहार राज्य श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के प्रदेश महासचिव अरुण कुमार ने माओ के रेड बुक की चर्चा करते हुए वामपंथी आंदोलनो के सांस्कृतिक पतन पर गहरी आपत्ति जतायी। इस परिचर्चा में मशहूर वामपंथी चिकित्सक डॉ. पी गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर, सुरेन्द्र किशोर, जनकवि दीनानाथ सुमित्र, कथाकार शेखर, राजेश शुक्ल सहित कई गणमान्य बुद्धिजीवी शामिल हुए।
लेखक अरुण नारायण से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.